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Navrari 2017: गुरूदेव ने नवरात्रि को कहा-उत्सव और दिव्यता की नौ रातें

By Staff
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नई दिल्ली। संस्कृत में नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ होता है नौ रातें। "नव" शब्द के दो अर्थ हैं पहला - नौ और दूसरा - नया। "रात्रि" का अर्थ है - वह जो सांत्वना और विश्राम दे। रात्रि फिर से उर्जा लाती है। ये हमारे अस्तित्व के तीनो स्तरों - स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर को आराम देती है। ये परिवर्तन का समय है अपने स्त्रोत में वापस जाने का समय। इस समय प्रकृति भी अपने पुराने स्वरुप को छोड़ कर कायाकल्प के दौर से गुज़रती है और नए सिरे से प्रकट होती है।

Sri Sri Ravi Shankar

जैसे जन्म से पूर्व बच्चा अपनी माँ के गर्भ में रहता है, ठीक उसी तरह इन नौ दिन और नौ रातों में, एक साधक उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से अपने सच्चे स्त्रोत की तरफ लौटता है जो कि प्रेम, खुशी और शान्ति है। व्रत या उपवास से शरीर का शुद्धिकरण होता है, मौन से वाणी शुद्ध होती है और विचलित मन को विश्राम मिलता है। ध्यान व्यक्ति को उसकी भीतर की गहराई में ले जाता है।

नवरात्रि की नौ रातों में हमारा ध्यान दिव्य चेतना में होना चाहिए। हमें स्वयं से ये प्रश्न करना चाहिए "मेरा स्त्रोत क्या है? मैं कैसे जन्मा या जन्मी?"। तभी हम सृजनात्मक और विजयी होते हैं। जब नकारात्मक शक्तियाँ हमें घेर लेती हैं, तब हम परेशान हो जाते हैं और शिकायत करते हैं। राग, द्वेष, अनिश्चिता और भय नकारात्मक शक्तियाँ हैं। इन सभी से मुक्त होने के लिए हमें फिर से अपने उर्जा के स्त्रोत की ओर लौटना चाहिए।

इन नौ रातों और दस दिनों में, देवी शक्ति के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के पहले तीन दिन हम देवी दुर्गा - जो की पराक्रम और आत्म-विश्वास की प्रतिमूर्ति हैं, उनका सम्मान करते हैं। अगले तीन दिन हम देवी लक्ष्मी - जो की धन-सम्पदा की प्रतिमूर्ति है, उनका सम्मान करते हैं और अंतिम तीन दिन हम देवी सरस्वती - जो की ज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं उनका सम्मान करते हैं।

कई कहानियाँ हैं की कैसे देवी ने शान्ति की स्थापना और असुर शक्ति (मधु-कैटभ; शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर) का अंत करने के लिए स्वयं को प्रकट किया। ये असुर नकारात्मक शक्ति के प्रतीक हैं जो कभी भी, किसी पे भी हावी हो सकते हैं। मधु - राग का और कैटभ - द्वेष का प्रतीक है। रक्तबिजासुर का अर्थ है आसक्ति और नकारात्मकता में गहराई से डूबे रहना। महिषासुर - अर्थ है आलस्य। यह प्रमाद और निष्क्रियता का प्रतीक है। देवी शक्ति अपने साथ वो बल लाती है जिससे जड़ता समाप्त हो जाती है। शुम्भ - आत्मविश्वास न होना और निशुम्भ - माने किसी पर भी विश्वास न होना। नवरात्रि उत्सव है आत्मा का और प्राण का जो स्वत: ही इन असुरों का नाश कर देती हैं।

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यद्दपि, हमारा जीवन तीन गुणों द्वारा चलायमान है, लेकिन उनकी अनुभूति और उसका विचार हमें कभी कभार ही होता है या आता है। नवरात्रि के नौ दिन हम तीन चरणों में बाँट सकते हैं, प्रथम तीन दिनों में हमारे शरीर में तमो गुण का प्रभाव रहता है ( जिसके कारण अवसाद, भय और भावनात्मक असंतुलन हम पे हावी हो जाता है), अगले तीन दिनों में हमारे शरीर पर रजो गुण का प्रभाव रहता है ( जिसके कारण चिंता और ज्वर हमपर चढ़ जाता है), अंतिम तीन दिनों में हमारे शरीर पर सतो गुण का असर रहता है (इस से हममें स्पष्टता, केन्द्रित्ता आती है और हम शांत और सक्रिय हो जाते हैं)। ये तीन मौलिक गुण इस भव्य सृष्टि की देवी शक्तियाँ मानी जाती हैं।

नवरात्रि के दिनों में देवी माँ की आराधना करने से, हम तीनों गुणों के मध्य तालमेल बैठाते हैं और वातावरण में सत्व को बढ़ाते हैं। जब भी जीवन में सत्व का संचार होता है, तो विजय निश्चित हो जाती है। इसीलिए दसवें दिन हम विजयादशमी - विजय दिवस मनाते हैं। यह दिव्य चेतना की पराकाष्ठा का दिन होता है। इसका मतलब है, अपने आप को सौभाग्यशाली समझना और जो भी हमें मिला है उसके प्रति कृतज्ञ भाव रखना।

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इन नौ प्रवित्र दिनों में कई सारे यज्ञ और होम किये जाते हैं। हाँ, ये हो सकता है की हमें सभी यज्ञ और अनुष्ठान जो यहाँ संपन्न होते हैं उनका अर्थ समझ में न आये, लेकिन फिर भी हमें अपने दिल और दिमाग को खुला रख के, इन यज्ञों और होम से उत्प्पन होने वाली सकारात्मक तरंगो को महसूस करना चाहिए। ये सभी प्रथाएँ और अनुष्ठान चेतना की शुद्धता और उसके उद्धार के लिए करी जाती हैं। पूरी सृष्टि जीवित हो उठती है और सब कुछ सजीव हो जाता है जैसे एक बच्चे के लिए सब कुछ जीता जागता है। देवी माँ या वो शुद्ध चेतना सब जगह समाहित है। उस एक दिव्य चेतना को हर नाम और रूप में देखना ही नवरात्रि का सच्चा उत्सव है।

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English summary
Navratri 2017: Sri Sri Ravi Shankar Defines Nine Days And Its Meaning
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