इंडिया गेट से: सावरकर विरोधी कांग्रेसी और कम्युनिस्ट अपने नेताओं के माफीनामे पर चुप क्यों?
इस समय कर्नाटक में सावरकरवादी और जिन्नावादी आमने सामने हैं। सावरकर के खिलाफ मुस्लिम वामपंथी विरोध एक बार फिर खुलकर सामने आ रहा है। कर्नाटक के अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का माहौल अभी से बनना शुरू हो गया है, इसलिए कांग्रेस पूरे जोर शोर से सावरकर के खिलाफ मैदान में कूद गई है। यह वही कांग्रेस है जिसकी नेता इंदिरा गांधी ने कभी खुद की जेब से सावरकर स्मारक के लिए चंदा दिया था और वीर सावरकर पर डाक टिकट निकाला था। लेकिन कांग्रेस में शामिल हुए वामपंथियों ने सावरकर को लेकर कांग्रेस को पूरी तरह दिग्भ्रमित कर रखा है।महाराष्ट्र के वीर सावरकर ने सबसे पहले 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर किताब लिखी थी। वह खुद क्रांतिकारी थे।
1910 में नासिक के कलेक्टर जेक्सन की हत्या और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध बगावत के आरोप में वीर सावरकर को पहले 24 दिसंबर 1910 और बाद में 31 जनवरी 1911 को 50 वर्ष के लिए अंडमान निकोबार की भयावह जेल में दो 'काले पानी की सजा' सुनाई गई थी। ब्रिटिश साम्राज्य में किसी अन्य क्रांतिकारी को इतनी लंबी और कड़ी सजा नहीं मिली थी। हत्या के आरोप में पहले वीर सावरकर के भाई को गिरफ्तार किया गया था। सावरकर उस समय ब्रिटेन में रह रहे थे, उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने भाई को एक पिस्तौल भेजी थी, इसी पिस्तौल से जैक्सन को गोली मारी गई थी।
लन्दन में एक रेलवे स्टेशन से सावरकर को गिरफ्तार कर के उन्हें एसएस मोरिआ नामक पानी के जहाज से भारत लाया जा रहा था। जब जहाज़ फ्रांस के मार्से बंदरगाह पर एंकर हुआ तो सावरकर जहाज़ के शौचालय के पोर्ट होल से बीच समुद्र में कूद गए। वह एक अलग कहानी है कि फ़्रांस की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके अंग्रेजों के हवाले कर दिया।आजादी के आंदोलन में वो क्रांतिकारी जिन्हें गर्म दल कहा जाता था, वे अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए काम कर रहे थे। कांग्रेस उस समय तक अंग्रेजों की पिठ्ठू थी और आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ रही थी। कांग्रेस के नेता आपस में बहस कर रहे थे कि अंग्रेजों से क्या क्या छूट लेने की बात हो। कांग्रेस अधिवेशनों में पूर्ण स्वराज्य की बात तो कई बार उठी थी, लेकिन महात्मा गांधी ने इसका विरोध किया।
कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर पहली बार 1929 में पूर्ण स्वराज्य की बात तब की जब क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी शासन की चूलें हिलाना शुरू कर दिया था। महात्मा गांधी को इस बात का इल्म था कि क्रांतिकारी हर राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ लोहा ले रहे हैं। महात्मा गांधी ने खुद विनायक दामोदर सावरकर को वीर बताया था और उनको हुई सजा पर चिंता जताई थी। गांधी ने कहा था "अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा, तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र (सावरकर और उन के बड़े भाई) सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे। मैं एक सावरकर भाई को अच्छी तरह जानता हूँ (विनायक दामोदर सावरकर) मुझे लन्दन में उन से भेंट का सौभाग्य मिला था।" यह विडंबना ही है कि गांधी को महात्मा मानने वाले आज के कांग्रेसी उनकी ही बात नहीं मानते।
कांग्रेसी, कम्युनिस्ट और इस्लामिक देश की मांग कर देश का बंटवारा करवाने वाले मुसलमान अंग्रेजों को आम माफी के लिए लिखी गई चिठ्ठियों का हवाला देकर सावरकर को अपमानित करने से भी नहीं हिचकिचाते। हाँ, उन्होंने चिठ्ठियाँ लिखीं थी, उनकी कुल छ: चिठ्ठियों में से तीन में तो काला पानी की सजा भुगत रहे सभी देशभक्तों की रिहाई का अनुरोध था। कांग्रेस की तरह पहले विश्व युद्ध में अंग्रेजों के साथ खड़ा रहने के लिए वीर सावरकर ने चिठ्ठी लिखी थी। इसमें गलत क्या था?
सावरकर इस पचड़े में नहीं पड़े की उनके माफ़ी मांगने पर लोग क्या कहेंगे। उनकी सोच यह थी कि अगर वो जेल के बाहर रहेंगे तो वो देश की सेवा में बहुत कुछ कर सकेंगे। सावरकर की कोशिश थी कि भूमिगत रह करके उन्हें काम करने का जितना मौका मिले, उतना अच्छा है। वह एक क्रांतिकारी की रणनीति थी और उस समय क्रांतिकारी तरह तरह की रणनीति अपनाते ही थे। काले पानी की सजा काट रहे सावरकर को इस बात का अंदाजा हो गया था कि सेल्युलर जेल की चारदीवारी में 50 साल की लंबी जिंदगी काटने से पहले ही उनकी मौत हो जाएगी। ऐसे में देश को आजाद कराने का उनका सपना जेल में ही दम तोड़ देगा।
लेकिन अंग्रेज भी उनकी इस चाल को समझते थे, इसलिए उनकी हर याचिका को अस्वीकार किया जाता रहा। इसी माफीनामे को आधार बनाकर सावरकर को कायर साबित करने के लिए अपने इतिहासकारों से मनमर्जी का इतिहास लिखवा कर पाठ्य पुस्तकों में शामिल करवाया। जबकि तथ्य मौजूद हैं कि महात्मा गांधी ने खुद वीर सावरकर से चिठ्ठियाँ लिखवाईं थी। 1920 में अंडमान निकोबार से कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा किया गया था। तब सावरकर के भाई नारायण राव ने 18 जनवरी को महात्मा गांधी को एक चिठ्ठी लिखी।
सावरकर के भाई की मदद मांगने वाले इस चिट्ठी का जवाब गांधी जी ने एक हफ्ते बाद 25 जनवरी 1920 को दिया था। गांधी ने लिखा था- "आपको सलाह देना कठिन लग लग रहा है, फिर भी मेरी राय है कि आप एक संक्षिप्त याचिका तैयार कराएं जिसमें मामले से जुड़े तथ्यों का जिक्र हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था। जैसा कि मैंने आपसे पिछले एक पत्र में कहा था मैं इस मामले को अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं।"
यानि महात्मा गांधी ने इससे पहले भी सावरकर को चिठ्ठी लिखने की सलाह दी थी। क्योंकि इस घटना के बाद 1921 में वीर सावरकर को अंडमान निकोबार जेल से पुणे की येरवडा जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था इसलिए यह संकेत देता है कि इस में गांधी की भूमिका थी। उन्होंने वीर सावरकर का येरवडा जेल में ट्रांसफर करवाया, जहां उन्हें और तीन साल तक रखा था।
आप आज़ादी के बाद के शुरुआती सालों की इतिहास की पुस्तकें पढ़ेंगे तो आपको वीर सावरकर के वीरता की गाथा मिलेगी, लेकिन बाद में वामपंथियों का लिखा हुआ इतिहास पढाया जाने लगा। वे वीर सावरकर को कायर कहते हैं, लेकिन नेहरू के बारे में उन्होंने एक शब्द नहीं लिखा जिन्होंने सिर्फ 16 दिन नाभा जेल में रहने पर माफीनामें की चिठ्ठी लिख दी थी।
1923 में अंग्रेजों ने जवाहर लाल नेहरू को बिना इजाजत गैर कानूनी ढंग से नाभा रियासत में प्रवेश करने पर गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें सिर्फ दो साल कैद की सजा सुनाई गई थी। तब नेहरू ने कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा लिख कर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ़ करवा ली थी और रिहा हो गए थे। इतना ही नहीं जवाहर लाल के पिता मोती लाल नेहरू उन्हें रिहा कराने के लिए वायसराय के पास सिफारिश लेकर भी पहुंच गए थे। पर नेहरू का ये माफीनामा वामपंथी गैंग की नजर में बॉन्ड था और सावरकर का माफीनामा कायरता थी।
वीर सावरकर के माफीनामे की भाषा पर सवाल उठाने वाले लेफ्ट लिबरल गैंग के दोमुंहेपन को भी उजागर करना जरूरी है। इंडियन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1920 में हुई थी। इसके एक प्रमुख सदस्य थे श्रीपद अमृत डांगे और नलिन दास गुप्ता। इन दोनों को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था। इन दोनों वामपंथियों ने भी जेल में बैठकर माफीनामे की दया याचिकाएं लिखीं थी। इन चिठ्ठियों की भाषा भी वैसी ही है, जैसी जवाहर लाल नेहरू और वीर सावरकर की भाषा थी। मजे की बात यह है कि ये दोनों वामपंथी नेता आज़ादी के बाद सांसद भी रहे। 1964 में जब वामपंथियों में आपस में झगड़े हुए तब इनके माफीनामे की ये चिठ्ठियाँ बाहर आई थीं।
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