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मदरसा क्या है और इस पर इतना विवाद क्यों होता है?

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आखिर क्या कारण है कि मदरसे हमेशा किसी न किसी कारण से विवाद में बने रहते हैं? जैसे इस समय उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले के कारण मदरसे चर्चा में है जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में उन मदरसों का सर्वे किया जाए जिनका पंजीकरण नहीं है। इस समय उत्तर प्रदेश के हर जिले में मदरसों का सर्वे भी चल रहा है और उस पर वाद विवाद भी हो रहा है। तो सबसे पहले समझते हैं कि मदरसा कहते किसे हैं।

why is there so much controversy over madrasa?

मदरसा का मतलब

अरबी एक ऐसी भाषा है जिसके बहुत से शब्द हिब्रू से आते हैं या फिर अन्य दूसरी स्थानीय बोलियों से जिनका अब अरब में लोप हो गया है। मदरसा शब्द भी हिब्रू से अरबी में आया जिसका अर्थ होता है "महिलाओं के लिए तौरात (यहूदी धर्म ज्ञान) सीखने की जगह।"
हिब्रू में मूल शब्द मिदरसा है जो अरबी में मदारिस या मदरसा हो जाता है। अरबी में भी मदरसा का अर्थ सीखने या पढने की जगह ही होता है लेकिन आमतौर पर इनमें महिलाओं का प्रवेश निषेध होता है। महिलाओं के मदरसे अलग से संचालित होते हैं।

लेकिन जैसे तालिबान शब्द आतंक का पर्याय बन गया वैसे ही मदरसा शब्द भी आतंकी प्रशिक्षण का पर्याय बन गया। ऐसा समझा जाने लगा कि मदरसों में आतंकवाद सिखाया जाता है। जो लोग ऐसा समझते हैं वो बहुत गलत भी नहीं हैं। असल में अफगान वार के समय पाकिस्तान के देओबंदी मदरसों के तालिब (मजहबी छात्र) ही मुजाहीदीन (मजहबी योद्धा) बनकर इस्लामिक जिहाद करने अफगानिस्तान गये थे। इसलिए अफगान वार के समय पाकिस्तान की नीतियों ने तालिबान और मदरसा दोनों शब्दों को आतंकवाद का पर्यायवाची बना दिया।

मदरसा का अर्थ कहीं से यह नहीं रहा है कि वहां सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाएगी। भारत में एक समय ऐसा भी था जब मौलवियों द्वारा चलाये जा रहे मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चे भी शिक्षा पाते थे। लेकिन अठारहवीं सदी के बाद से इस्लामिक संस्थाओं ने इसे धीरे धीरे इस्लामिक शिक्षाओं का केन्द्र ही बना दिया। जिसके कारण अब मदरसा शब्द को इस्लामिक पढाई और चरमपंथ से अलग कर पाना मुश्किल है।

भारत में मदरसों का इतिहास

भारत में मदरसों का इतिहास दिल्ली सल्तनत के समय से मिलता है। जिया-उस-सलाम और मोहम्मद असलम परवेज अपनी किताब "मदरसा इन द एज ऑफ इस्लामोफोबिया" में बताते हैं कि "भारत में इस्लामिक शिक्षा के लिए मदरसों की शुरुआत दिल्ली सल्तनत के समय से होती है। भारत में पहला मदरसा 1192 में अजमेर में बना था।"

असल में तराइन के दूसरे युद्ध में जब अफगान आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया तो उसका उत्तर भारत के राजपुताना पर शासन स्थापित हो गया। सबसे पहले उसने ही मदरसा खुलवाया ताकि इस्लामिक शिक्षा दी जा सके। इसके बाद खिलजी और तुगलक वंश ने भी मदरसों को बनाये रखा।

मोहम्मद बिन तुगलक के समय (1325 से 1351) में अकेले दिल्ली में एक हजार मदरसे थे जिनके मौलवियों की पगार सुल्तान के खजाने से जाती थी। फिरोज शाह तुगलक के समय (1351 से 1388) में दिल्ली में मुस्लिम लड़कियों और गुलामों के लिए भी मदरसे खोले गये थे। जिया-उस-सलाम अपनी किताब में बताते हैं कि फिरोज शाह तुगलक के शासन में लड़कियों के लिए 13 मदरसे दिल्ली में चलते थे।

स्वाभाविक है उस समय मदरसे अशराफिया तबके (मुसलमानों का कुलीन वर्ग) के लिए ही होता था जिनमें ज्यादातर दूसरे मुल्कों से भारत आये थे। गुलामों को इन मदरसों में सिर्फ हुनर सिखाया जाता था, न कि इस्लामी व अन्य दूसरी तालीम। निचली जाति के भारतीय मुसलमानों का इन मदरसों में प्रवेश पूरी तरह से वर्जित था। यह अकबर था जिसके शासन काल में मदरसों को सामान्य शिक्षा का केन्द्र बनाया गया और यहां इस्लामिक शिक्षाओं के साथ दूसरे विषयों के बारे में भी पढाई शरु हुई। हालांकि तब भी यह अशराफिया तबके के लिए ही होता था।

मुसलमानों का अशराफिया तबका निचली जाति के लिए इस्लामिक शिक्षाओं को हराम मानता था, यही कारण है कि मुसमलानों में उन्नीसवीं सदी के शिक्षाविद कहे जानेवाले सर सैयद अहमद भी निचली जाति के मुसलमानों को शिक्षा देने के खिलाफ थे। बहरहाल, जैसे जैसे मुगलों का पतन शुरु हुआ इस्लाम की बागडोर मौलवियों और मौलानाओं के हाथ में आ गयी। ऐसे ही एक इस्लामिक मौलाना थे शाह वलीउल्लाह देहलवी (1703 से 1762), सत्रहवीं सदी में उन्होंने पहली बार मदरसों में इस्लाम के अलावा अन्य शिक्षाओं का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि मदरसे सिर्फ इस्लामिक तालीम के लिए ही हो सकते हैं।

शाह वलीउल्लाह देहलवी की मौत के 96 साल बाद उन्हीं की शिक्षाओं पर अमल करते हुए मोहम्मद कासिम नौतानवी ने 1866 में सहारनपुर जिले के देओबंद कस्बे में दारुल उलूम देओबंद की स्थापना की जिसके निर्धारित पाठ्यक्रम के तहत आज भारत पाकिस्तान में हजारों मदरसे संचालित हो रहे हैं। पाकिस्तान का आतंकवादी हाफिद सईद हो या जैश ए मोहम्मद का अमीर मौलाना मसूद अजहर ये सब पाकिस्तान में देओबंदी मदरसों का लंबा चौड़ा नेटवर्क चलाते हैं। अफगान वार के लिए जो मुजाहिद तैयार किये गये उन्हें भी एक देओबंदी मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया में तैयार किया गया था।

मदरसों के नाम पर झूठ का मायाजाल

आज भारत में कितने मदरसे हैं इसका ठीक ठीक आंकलन किसी के पास नहीं है। किसी भी मदरसे से आलिम की पढाई करके निकला मौलवी अपनी इच्छा से जहां चाहे वहां मदरसा खोलकर इस्लामिक शिक्षाएं देना शुरु कर देता है। भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रलाय द्वारा 2021 में जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 24 हजार 10 मदरसे हैं। इसमें 4,878 ऐसे मदरसें हैं जिनको किसी सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है। निश्चय ही जिस तेजी से भारत में मदरसों का फैलाव हुआ है उसे देखते हुए ये आंकड़े नाकाफी लगते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही अनुमान है कि 16000 से अधिक मदरसे हो सकते हैं। यूपी सरकार द्वारा मदरसों का जो सर्वे करवाया जा रहा है उसके आंकड़े सामने आयेंगे तब तस्वीर और साफ हो जाएगी।

मान्यताप्राप्त मदरसों को सरकार ग्रांन्ट देती है इसलिए उनके बारे में उन्हें बहुत सारी बातें पता होती हैं। इन मदरसों में इस्लामिक शिक्षाओं के साथ सामान्य शिक्षा भी दी जाती है। लेकिन जो मदरसे अपने प्रयास से शुरु हुए, चंदे के पैसे से चलते हैं वहां क्या पढाया जाता है, उनको पैसा कहां से आता है इस बारे में सरकार को कुछ पता नहीं होता। हालात ये हैं कि पहले जिस तरह हर मंदिर के साथ एक गुरुकुल संचालित होता था, आज भारत में लगभग हर मस्जिद के साथ एक मदरसा संचालित हो रहा है।

मदरसों के बारे में सवाल उठने पर मौलवी, मौलाना, इस्लामिक लीडर सब बहकाने वाली बातें ही करते हैं। मानों मदरसों में कुछ ऐसा होता है जिसे वो छिपाने का प्रयास करते है। हालांकि वो बताते यही है कि यहां दीन की तालीम के साथ सामान्य शिक्षा भी दी जाती है लेकिन अगर सामान्य शिक्षा वाली बात इतनी महत्वपूर्ण है तो मुस्लिम बच्चों को सामान्य स्कूलों में क्यों नहीं भेजा जाता? सच्चाई तो ये है कि मदरसों में सिर्फ इस्लामिक दीन की तालीम ही दी जाती है जिसके मूल में बहुत सी आपत्तिजनक बातें भी होती हैं। लेकिन मौलाना बिरादरी आमतौर पर ऐसी बातों का इंकार करती है।

इसके कारण उन पर शक और बढ जाता है कि आखिर वो अपने यहां ऐसा क्या पढा रहे हैं जिसके बारे में उन्हें गोलमोल बातें करनी पड़ती हैं? जैसे, गुरुवार 15 सितंबर को जब मदरसा सर्वे टीम लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल पहुंची तो वहां के जिम्मेदार लोगों ने बताया कि सरकार ने जो जानकारियां मांगी हैं उसे दे दिया गया है। हालांकि जब आप इस मदरसे की अधिकृत वेबसाइट पर जाएंगे और यह जानना चाहेंगे कि आखिर वहां का कोर्स क्या है तो बाकी सारी जानकारी अंग्रेजी में उपलब्ध है लेकिन यह जानकारी सिर्फ अरबी भाषा में है।

स्वाभाविक है भारत में कितने लोग अरबी जानते हैं जो यह जान सकेंगे कि आखिर नदवातुल मदरसे में पढाया क्या जाता है? ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बाकी जानकारी अंग्रेजी में है तो पाठ्यक्रम की जानकारी अरबी में क्यों है?

मदरसों में क्या पढाया जाता है?

आज इस्लामिक मदरसों में मुख्य रूप से अरबी भाषा, कुरान, हदीस और इस्लामिक इतिहास याद करवाया जाता है। इसके साथ कहीं कहीं हिन्दी, उर्दू या अंग्रेजी भाषा की शिक्षा दी जाती है लेकिन मदरसों का मुख्य मकसद मुस्लिम बच्चों को दीन ए इस्लाम (इस्लामिक व्यवस्था) की तालीम देना ही है।

पाकिस्तान के सुधारवादी मौलाना कहे जानेवाले जावेद अहमद घामड़ी इस बारे में सात साल पहले साफ तौर पर कह चुके हैं कि किसी भी मशलक का मदरसा हो अपने यहां चार बातें अनिवार्य रूप से सिखाता है। ये मदरसों के तालीम की बुनियाद हैं। जावेद अहमद घामड़ी के ही शब्दों में:

"पहली बात, अगर दुनिया में कहीं शिर्क (मूर्तिपूजा) होगा, कुफ्र होगा या इर्तिदाद होगा (मुसलमान इस्लाम छोड़कर जायेगा) तो उसकी सजा मौत होगी और वह सजा हमें नाफिज करने का हक है।

दूसरी बात यह सिखाई जाती है कि दुनिया में गैर मुस्लिम सिर्फ महकूम (शासित) होने के लिए पैदा किये गये हैं। मुसलमानों के सिवा किसी को दुनिया पर हुकूमत (शासन) का हक नहीं है। गैर मुस्लिमों की हर हुकूमत एक नाजायज हुकूमत है। जब हमारे पास ताकत होगी। हम उसको उलट देंगे।

तीसरी बात जो सिखाई जाती है वह यह कि दुनिया में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए जिसको खिलाफत कहते हैं।
और चौथी बात यह जो लोकतंत्र है वह कुफ्र है उसके लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है।"

जावेद अहमद घामड़ी इन चार बातों को गिनाने के बाद सवाल पूछते हैं कि "ये चार बातें हमारी मजहबी फिक्र की बुनियाद हैं। मुझे ये बताइये अगर ये आपको सिखा दी जाएं तो आप क्या करेंगे?" स्वाभाविक है, वही करेंगे जिसे आज पूरी दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद कहा जाता है और इस आतंकवाद की जड़े इस्लामिक मदरसों में निहित हैं। इसीलिए भारत के मुल्ला मौलवी मदरसों के बारे में पूछे गये सवालों पर या तो गोलमोल जवाब देते हैं या फिर गाली गलौज पर उतर आते हैं। वो जानते हैं कि वो सभ्य समाज को मदरसों की सच्चाई नहीं बता सकते।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
why is there so much controversy over madrasa?
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