Religious conversion in Punjab: पंजाब में बढ़ रहे 'दस्तार वाले मसीह'
पंजाब में धर्मांतरण का खेल कुछ वैसे ही चल रहा है जैसे 1980 और 1990 के दशक में तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में चला था।
Religious conversion in Punjab: पंजाब के बटाला, गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, फतेहगढ़ चूड़ियां, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अजनाला, अमृतसर समेत कई ग्रामीण इलाकों से धर्मांतरण की बहुत ज्यादा खबरें आ रही हैं। सूबे में 'दस्तार वाले ईसाइयों' की लगातार बढ़ती तादाद इसका जीता-जागता सबूत है। वैसे कहने को पंजाब की मात्र 1.26 फीसद आबादी ही ईसाई है, लेकिन यहां नित बढ़ते जा रहे धर्मांतरण के कारण जमीनी हकीकत पूरी तरह बदल चुकी है।
सिख संगठन हुए चिंतित
धर्मांतरण के इस खेल के प्रति प्रदेश सरकार अभी चुप बैठी हुई है, लेकिन अकाल तख्त ने इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करते हुए खुलकर बोला है। अकाल तख्त का कहना है कि ईसाई मिशनरी पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में स्थित गांवों में सिखों और हिंदुओं को ईसाई बना रहे हैं। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कुछ समय पहले कहा था कि सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में ईसाई मिशनरी पैसे का लालच देकर सिख और हिंदू परिवारों का जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं।
जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का कहना है कि हमने पंजाब में कभी धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग नहीं की। हमें यह नहीं चाहिए था, लेकिन हालात ऐसे बन गए हैं कि हम ऐसी मांग करने को मजबूर हैं। जत्थेदार के अनुसार भारतीय कानून में धर्म के नाम पर अंधविश्वास से भरी प्रथाएं चलाने के खिलाफ मुकदमा चलाने का प्रावधान है, लेकिन कोई भी सरकार वोट बैंक की राजनीति के चलते उनके खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
इधर, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एचएस धामी का कहना है कि लोग जिंदगी की समस्याओं के हल के लिए पादरियों के पास जाते हैं। देर-सबेर उन्हें सच्चाई पता चलेगी और वे मूल धर्म में लौट आएंगे। लेकिन 'घर घर अंदर धर्मसाल' जैसे अभियान बताते हैं कि स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है। इस अभियान के तहत अब सिख स्वयंसेवक अपने धर्म का प्रचार करने घर-घर जा रहे हैं। शिरोमणि कमेटी ने सिखों के धर्मांतरण के मामले में कमेटियां तैयार की हैं। ये कमेटियां कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं और ईसाई मिशनरियों के प्रति कड़े कदम उठाएंगी।
दलित जातियों पर नजर
ख्याल रहे, पंजाब में धर्मांतरण खासतौर पर दलित व पिछड़ी जातियों में देखने को मिल रहा है। मजहबी सिखों और वाल्मीकि हिंदू समुदायों से जुड़ी तमाम जातियों के लोग लालच और प्रलोभन में आकर ईसाई धर्म अपना रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इसका मुख्य कारण जट्ट सिखों का मजहबी सिखों को अपने बराबर न मानना भी है। इसी के चलते मजहबी सिखों के साथ ठीक बर्ताव नहीं होता है। इसी कारण मजहबी सिख और वाल्मीकि हिंदू ईसाई बनते जा रहे हैं। रही-सही कसर ईसाई मिशनरियों की चिकनी-चुपड़ी बातें और प्रलोभन पूरा कर रहा है।
विभिन्न चर्चों के मिशनरी इन लोगों को अच्छी जिंदगी का सपना दिखाकर उनका धर्म और ईमान छीन लेते हैं। कहने का मतलब यह है कि अपनों का बुरा बर्ताव और ईसाई मिशनरियों की चालाकी धर्मांतरण का प्रमुख वजह बनकर सामने आ रही है। यही कारण है कि आज पंजाब में ईसाई धर्म अपनाने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। हालात ऐसे होते जा रहे हैं कि सूबे के गुरदासपुर जिले के कई ग्रामीण इलाकों के अनेक घरों की छतों पर छोटे-छोटे चर्च बने हुए नजर आते हैं।
यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के आंकड़ों पर नजर दौड़ाने पर पता चलता है कि पंजाब के 12,000 गांवों में से कम से कम 8,000 गांवों में ईसाई धर्म की मजहबी समितियां हैं। जानकारी के अनुसार अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में चार ईसाई समुदायों के 600-700 चर्च हैं। हैरानी की बात है कि इनमें से करीब 60-70 फीसद चर्च पिछले पांच बरसों में वजूद में आए हैं।
धर्मांतरण का गोरखधंधा
धर्मांतरण के इस गोरखधंधे पर गहराई से नजर डाली जाए तो पता चलता है कि ईसाई मिशनरी सोची-समझी रणनीति के तहत बेहद चालाकी से धर्म परिवर्तन के इस गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं। मिशनरियों द्वारा रणनीति के तहत पहली पीढ़ी के धर्मांतरित होकर नए नए ईसाई बने लोगों को उनकी परंपराओं, रीति-रिवाजों मान्यताओं, पहनावे और रहन-सहन से अलग नहीं किया जा रहा है। इसी से भ्रमित होकर लोग ईसाई बन रहे हैं।
मिशनरियों की इस चालाकी के चलते आम लोगों में भ्रम पैदा होता है। क्योंकि सामान्य तौर पर देखने के बाद सिख या हिंदू से ईसाई बने किसी भी पंजाबी को पहचानना आसान नहीं है कि वह अपना धर्म छोड़ चुका है। अपनी रणनीति के तहत ईसाई मिशनरियों ने धर्मांतरित पहली पीढ़ी के लिए पगड़ी से लेकर टप्पे तक कई सांस्कृतिक प्रतीक अपनाने की छूट दे रखी है।
इसी तरह चर्च के प्रति अपनी निष्ठा आदि जताने के लिए ज्यादातर ईसाई अपने नाम के साथ 'मसीह' उपनाम लगाते हैं, लेकिन मिशनरियों ने सिख या हिंदुओं से ईसाई बने बहुत से लोगों को अपने पिछले नाम बदलने का दबाव नहीं डाला है। हालांकि नाम न बदलने की एक बड़ी वजह दलितों को मिलने वाला आरक्षण भी है, क्योंकि धर्मांतरण करने की स्थिति में उन्हें यह आरक्षण नहीं मिल सकता है। यही कारण है कि धर्मांतरण करने के बाद भी जनगणना में पंजाब में ईसाइयों की आबादी का ज्यादातर भाग आंकड़ों में दर्ज नहीं हो पाता है।
पंजाब में ईसाइयों की आबादी
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब की आबादी 2.77 करोड़ थी। कुल आबादी में सिखों की तादाद 57.70 फीसद है। सूबे के कुल 23 जिलों में से 16 में सिख बहुसंख्यक हैं, शेष 7 में हिंदुओं का बहुमत है। हिंदुओं की आबादी 38.40 फीसदी है, मुसलमानों की संख्या 1.90 फीसदी है, जबकि ईसाइयों की तादाद मात्र 1.30 फीसद है।
2001 में पंजाब में 1.20 प्रतिशत ईसाई थे जो 2011 के आंकड़ों में मामूली रूप से ही बढे दिखाई देते हैं। लेकिन पंजाब में ईसाई मिशनरियों के ट्रेंड देखें तो पिछले 11 बरसों में ईसाइयों की संख्या इससे कहीं अधिक बढ़ी है। लेकिन यह आंकड़ा इस कारण सामने नहीं आ पाता है क्योंकि कई लोग ईसाई बनने के बाद भी कागजों में अपना नाम नहीं बदलते हैं।
ईसाई धर्म के कितने संप्रदाय हैं
पंजाब में ईसाई धर्म के भीतर भी विभिन्न संप्रदाय हैं। इनमें से प्रमुख है कैथोलिक, ऑर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टेंट। इसके अलावा चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई), साल्वेशन आर्मी, मेथोडिस्ट चर्च, और कुछ अन्य। इसके अलावा कई मिशनरी और पादरी ऐसे भी हैं जो निजी तौर पर काम करते हैं। वे किसी के नियंत्रण में नहीं हैं। पंजाब में ईसाई धर्म को संगठित करने के लिए मसीह महासभा भी है। इसका नेतृत्व वर्तमान में बिशप डॉ. पी के सामंतराय कर रहे हैं।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)