इंडिया गेट से: राष्ट्रपति बनने के लिए चाहिए नौ मन तेल
देश में इन दिनों यह चर्चा गर्म है कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा। कई नामों पर अटकलबाजी चल रही है। अखबारों में जो नाम छपते हैं, वे सिर्फ अटकलबाजी होते हैं। राजनीति का वह जमाना और था, जब राजनीतिक नेताओं को थोड़ी बहुत जानकारियाँ हुआ करती थीं, और उन्हीं से छन कर खबरें आतीं थी। तब कई बार खबरें सही भी हो जाया करती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी अंतिम समय तक रहस्य बनाये रखते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी के समय तक राजनीतिज्ञों को अधिकांश जानकारियाँ हुआ करती थीं। उस समय जब राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के उम्मीदवारों के नाम चल रहे थे, तो अब्दुल कलाम का नाम बहुत बाद में चर्चा में आया था। अब्दुल कलाम ने खुद अपनी पुस्तक में इस का खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री का फोन आने के बाद ही उन का नाम उजागर हुआ। लेकिन राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत को इस की जानकारी थी। वाजपेयी के बुलावे पर वह दिल्ली आए थे। वाजपेयी से मुलाक़ात के बाद उन्होंने मुझे राजस्थान हाउस बुला कर बताया था कि वाजपेयी ने उन के सामने उप-राष्ट्रपति पद की पेशकश रखी है।
शेखावत जी का संसदीय अनुभव नाममात्र था। इस लिए उन्होंने वाजपेयी से कहा कि उन के नाम पर राष्ट्रपति पद के लिए विचार क्यों नहीं किया जा सकता। तब वाजपेयी ने उन्हें बताया था कि राष्ट्रपति पद के लिए बाहरी समर्थन की जरूरत पड़ेगी, इस लिए वह किसी मुस्लिम के नाम पर विचार कर रहे हैं, ताकि चुनाव जीतने में मुश्किल न आए। मेरा तुरंत खबर न छापने का वायदा था, लेकिन अगले दिन शेखावत को राष्ट्रपति बनाए जाने की अटकलें छपीं थीं। हालांकि चार दिन बाद उन्हें उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की खबर मैंने ही ब्रेक की थी।
शेखावत को उप-राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए भी शरद पवार का सहारा लेना पड़ा था। शरद पवार ने शेखावत को वोट दिलाने के लिए नजमा हेपतुल्ला के घर पर बैठ कर कांग्रेसी सांसदों तक को फोन किए। लेकिन अगली बार 2007 में जब शेखावत राष्ट्रपति पद के लिए खड़े हुए तो वही शरद पवार कांग्रेस के साथ खड़े थे, क्योंकि सोनिया गांधी ने मराठी प्रतिभा पाटिल का दांव खेल दिया था, जो उस समय राजस्थान की राज्यपाल थीं। कांग्रेस के मराठी दांव के कारण शिव सेना ने एनडीए में रहते हुए भी शेखावत को वोट नहीं किया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और कांग्रेस ने सुरेश पचौरी के माध्यम से शेखावत को उप राष्ट्रपति बनाए रखने की पेशकश की थी, जो उस समय संसदीय राज्य मंत्री थे।
इसलिए यह जरूरी नहीं कि जिन नामों पर अटकलबाजी चल रही है, उन्हीं में से कोई भारत का अगला राष्ट्रपति हो। वैसे तो किसी मुसलमान को राष्ट्रपति बनाए जाने की अटकल पिछले एक महीने से लगाई जा रही है। पहले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और गुलाम नबी आज़ाद का नाम चल रहा था। नूपुर शर्मा की टिप्पणी का विवाद खड़ा हो जाने के बाद आरिफ मोहम्मद का नाम बड़ी तेजी से चला है, क्योंकि नरेंद्र मोदी के सामने अरब जगत के साथ भारत के संबंध बनाए रखना अहम है। फर्क यह है कि आरिफ मोहम्मद खान के साथ अब गुलामनबी की जगह मुख्तार अब्बास नकवी का नाम अटकलों में शुमार हो गया है। वह शुरू से ही भाजपा के वफादार रहे हैं और इस बार उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजा जाना उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की अटकल के लिए काफी है। लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय जगत को संदेश देना है , तो उन्हें उप-राष्ट्रपति बना कर भी दिया जा सकता है। उप-राष्ट्रपति को राज्यसभा की कार्रवाई चलानी होती है और नकवी को लंबा संसदीय अनुभव है। उन के शिया मुसलमान होने के कारण कम से कम शिया समुदाय के भाजपा के साथ जुड़ने के आसार बनेंगे।
पहले अटकल यह चल रही थी कि नरेंद्र मोदी दक्षिण भारत से किसी पिछड़े वर्ग के नेता को राष्ट्रपति बनाने को तरजीह देंगे। इस की दो वजहें थी, पहली यह कि दक्षिण भारत में भाजपा के पाँव जमाने में मदद मिलेगी, दूसरी यह कि नीतीश कुमार की ओर से बनाया जा रहा पिछड़े वर्ग की जनगणना का दबाव कम होगा। इस लिए तेलंगाना की राज्यपाल तमिलीसाई सुंदरराजन का नाम सुर्ख़ियों में आया।
एक संकेत यह आ रहा है कि राष्ट्रपति दक्षिण से ही होगा, तमिलनाडु नहीं, तो आंध्र या केरल से भी हो सकता है। सच यह है कि नरेंद्र मोदी के दिमाग को कोई नहीं पढ़ सकता, पिछली बार जब उन्होंने रामनाथ कोविंद का नाम घोषित किया था, तो उन के नाम की अटकल दूर-दूर तक नहीं थी। वह तो राजनीति के बियाबान से निकल कर राज्यपाल बने थे और फिर अचानक दलित कार्ड के कारण राष्ट्रपति पद तक पहुंच गए।
इस लिए मोदी के सामने अटकलबाजी लगाना सिर्फ तुक्केबाजी ही होगा। ममता की बैठक का वामपंथी दलों, आम आदमी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति के बायकाट के बावजूद विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार तय हो भी जाए, और बायकाट करने वाले ये तीनों दल उसे समर्थन कर भी दें , तो भी जीतेगा एनडीए का उम्मीदवार ही। इस की वजह यह है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन देने का मन बनाया हुआ है। राष्ट्रपति का चुना जाना बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस पर निर्भर करता है। एनडीए को सिर्फ एक दल का भी समर्थन मिल जाए तो उसी का उम्मीदवार जीतेगा, जबकि विपक्ष के साझा उम्मीदवार को तीनों दलों का समर्थन मिले तभी वह जीत पाएगा। इसलिए न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।
अजय सेतिया एक वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार के रूप में जाने जाते हैं। अपने लंबे पत्रकारिता जीवन में वे कई बड़े मीडिया समूहों के लिये वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं। कई वर्षों से वे अपने नियमित स्तंभ "इंडिया गेट से" द्वारा देश की राजनीति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी अपने पाठकों को देते आये हैं। 2011 से 2014 के दौरान तीन वर्षों तक अजय सेतिया उत्तराखंड राज्य के बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
यह भी पढ़ें: Presidential election: कब BJP पर भारी पड़ सकता है विपक्ष ? जानिए