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अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने से पहले लंबी बहस चली थी एनडीए में

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हाल ही में भारत ने अपने 15वें राष्ट्रपति का चयन किया है। भाजपा की ओर से द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाये जाने की चारों ओर प्रशंसा हो रही है क्योंकि वो एक वनवासी समाज की महिला हैं। लेकिन देश के बारहवें राष्ट्रपति के रूप में एपीजे अब्दुल कलाम के चयन पर भी भाजपा और एनडीए की बहुत प्रशंसा हुई थी। वो एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे जो आज हमारे देश के आदर्श राष्ट्रपतियों में गिने जाते हैं। लेकिन उनकी उम्मीदवारी भी बहुत राजनीतिक उतार चढ़ाव के बाद तय की गयी थी। आज उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर आइये जानते हैं कि एनडीए द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए एपीजे अब्दुल कलाम का चयन किस प्रकार हुआ।

How Abdul Kalam became President

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1999 में केन्द्र में एनडीए की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। हालांकि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं था लेकिन सहयोगी दलों के सहयोग से भाजपा केन्द्र मे सत्ता बनाने में कामयाब रही। 2002 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए विभिन्न नेताओं पर भाजपा और विपक्ष के नेताओं ने नजर दौड़ानी शुरू कर दी। वाजपेयी और उनके सहयोगी किसी ऐसे उम्मीदवार की तलाश में थे जो एनडीए के माकूल हो और जिसकी व्यापक राजनैतिक स्वीकार्यता भी हो। गठबंधन की सरकार चला रहे अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि विपक्ष भी एनडीए के उम्मीदवार को सहमति दे जिससे चुनाव की नौबत न आए और अगर चुनाव की नौबत आती भी है तो विपक्ष के लिए एनडीए के उम्मीदवार का विरोध करना आसान न हो।

राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने एक कमेटी का गठन किया था जिसमें वाजपेयी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीस, विदेश मंत्री जसंवत सिंह, संसदीय कार्यमंत्री प्रमोद महाजन और ग्रामीण विकास मंत्री एम वैकेया नायडु शामिल थे। पहली बार यह कमेटी 5 जून 2002 को बैठी तो उनकी सूची में कृष्णंचद पंत, लक्ष्मीमल सिंघवी, अब्दुल कलाम, वीरेन शाह और पीसी एलेग्जेंडर के नाम थे। सबसे पसंदीदा उम्मीदवार एलेग्जेंडर थे, जिनके नाम पर शरद पवार, बाल ठाकरे के अलावा वाजपेयी के करीबी प्रमोद महाजन सहमत थे। एलेग्जेंडर के नाम पर समिति में सहमति थी।

महाराष्ट्र के राज्यपाल और इंदिरा गांधी के सचिव रहे पीसी एलेग्जेंडर का नाम चर्चा मे आया तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी एलेग्जेंडर के नाम पर सहमति दे दी। सोनिया के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल ने भाजपा को संदेश भेजा कि एलेग्जेंडर के नाम पर कांग्रेस तैयार हैं। लेकिन संघ की ओर से एलेग्जेंडर के नाम पर आपत्ति आ गयी और प्रमोद महाजन को भी सोनिया गांधी के समर्थन पर शक पैदा हो गया।

एलेग्जेंडर के नाम की चर्चा जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के कानों में पड़ी तो नायडू ने विरोध किया। नायडू ने लगभग धमकी दी कि अगर महाराष्ट्र के राज्यपाल एलेग्जेंडर के नाम पर सहमति बनती है तो वह अपनी अलग राह भी पकड़ सकते हैं। नायडू के विरोध को देखते हुए 6 जून 2002 को आडवाणी ने अपने घर एक भोज आयोजित किया जिसमें वाजपेयी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के अलावा प्रमोद महाजन भी मौजूद थे। नायडू ने उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का पक्ष लिया और उनको राष्ट्रपति बनाने पर जोर दिया। इस पर वाजपेयी और आडवाणी भी कृष्णकांत को राष्ट्रपति बनाने के लिए तैयार हो गए। आडवाणी के घर हुए भोज के बाद कृष्णकांत के नाम पर विचार शुरू हुआ। रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीस से सहयोगी दलों से बात करने और उनकी राय जानने के लिए कहा गया।

अगले 16 घंटे तक फर्नाडीस सहयोगी दलों से बात करते रहे लेकिन ममता बनर्जी से लेकर नवीन पटनायक तक किसी भी सहयोगी ने कृष्णकांत का पक्ष नहीं लिया। बाल ठाकरे ने कृष्णकांत के नाम पर सरकार से समर्थन वापसी की धमकी तक दे दी। कृष्णकांत के नाम पर सहमति न बनने के बाद एलेग्जेंडर के नाम पर फिर विचार किया गया। फिर वाजपेयी ने चंद्रबाबू नायडू से बात की। नायडु ने कहा कि वह कल दिल्ली आ रहे है और उनके दिल्ली आने और वाजपेयी से मुलाकात के बाद एलेग्जेंडर के नाम की घोषणा की जाए।

दूसरे दिन वाजपेयी पीसी एलेग्जेंडर के नाम की घोषणा करने के लिए नायडू की दिल्ली में राह देखते रहे, लेकिन नायडू नहीं पहुचे। नायडू से संपर्क करने पर नायडू का फोन भी कवरेज के बाहर था। देर रात चद्रबाबू नायडू से भाजपा के वरिष्ठ नेताओं वाजपेयी, आडवाणी, महाजन, और वैकेया नायडू की बातचीत हुई लेकिन एलेग्जेंडर के नाम पर चंद्राबाबू नहीं माने। भाजपा चंद्राबाबू को नाराज नहीं करना चाहती थी। ऐसे में फिर से नायडू के पंसद के कृष्णकांत या किसी नए नाम पर विचार करना शुरू हुआ।

महाराष्ट्र के राज्यपाल एलेग्जेंडर और उपराष्ट्रपति कृष्ण्कांत के नाम पर विचार और विवाद के चलते कांग्रेस ने अपनी नाराजगी जाहिर की। कांग्रेस ने कहा कि अगर राष्ट्रपति को लेकर भाजपा को आम सहमति नहीं बनानी है और राजनीति करनी है तो हम अपना उम्मीदवार उतारेंगे। विपक्ष ने नारायणन से बात की। नारायणन अस्सी साल के हो जाने और खराब स्वास्थ के चलते फिर से राष्ट्रपति बनने को तैयार नहीं हुए। फिर विपक्ष की तरफ से नटवर सिंह ने उपराष्ट्रपति कृष्णकांत से मिलकर उन्हे चुनाव लड़ने के लिए मनाया।

कृष्णकांत के विपक्ष के उम्मीदवार होने की चर्चा ने भाजपा के कान खड़े कर दिए। भाजपा को भय सताने लगा कि अगर कृष्णकांत चुनाव लड़ते हैं और चन्द्रबाबू नायडू कृष्णकांत के पक्ष मे मतदान करने का फैसला ले लेते हैं तो सत्तारूढ गठबंधन का उम्मीदवार हार भी सकता है। अगर सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार हारता है तो गंठबधन का टूटना तय है और केन्द्र सरकार के लिए बचना भी मुश्किल होगा।

एक बार फिर आडवाणी के घर प्रमोद महाजन, जार्ज फर्नाडीज, वैंकेया नायडू की बैठक हुई। इस बैठक में शामिल होने से पहले प्रमोद महाजन प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिले थे। वाजपेयी ने प्रमोद महाजन से बैठक में अब्दुल कलाम का नाम रखने के लिए कहा था। विभिन्न उम्मीदवारों पर आम सहमति बनते न देख अंत मे अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार पद से रिटायर हो चुके अब्दुल कलाम के नाम को आगे किया। आडवाणी के घर पर बैठक में अब्दुल कलाम के नाम पर सहमति बन गयी।

बैठक के बाद आडवाणी, महाजन, फर्नाडीज और वैकेया नायडू सीधे प्रधानमंत्री आवास पहुचे। प्रधानमंत्री ने फोन कर अब्दुल कलाम के नाम की सूचना चंद्राबाबू नायडू को दी। चंद्राबाबू ने भी कलाम के नाम पर सहमति दे दी। इसके बाद मिसाईल मैन अब्दुल कलाम के नाम पर सहमति बनने के बाद स्वयं प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चेन्नई में रह रहे कलाम को फोन कर राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनने की सूचना और बधाई दी।

कलाम के नाम पर सहमति होते ही राजनैतिक दलों को समझ में नहीं आ रहा था कि अब्दुल कलाम का विरोध कैसे करे? वरिष्ठ माकपा नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के निवास पर 11 जून 2002 को लोक मोर्चा के नेता मिले तो मोर्चा में भी अब्दुल कलाम के नाम पर मतभेद थे। देवगौड़ा अब्दुल कलाम को भाजपा का उम्मीदवार बता रहे थे, लेकिन मुलामय सिंह यादव ने जनेश्वर मिश्र के माध्यम से वाजपेयी को संदेश भेजा कि समाजवादी पार्टी अब्दुल कलाम जैसे योग्य मुस्लिम के उम्मीदवारी का समर्थन करेगी। कांग्रेस के पास भी अब्दुल कलाम का विरोध करने का कोई आधार नहीं था। अब्दुल कलाम को सबसे पहले समर्थन मुलायम सिह ने दिया। मुलायम सिह जब रक्षा मंत्री थे तब कलाम उनके सलाहकार रह चुके थे।

ज्यादातर दलों द्वारा अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन देने के बाद कांग्रेस के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे और कांग्रेस ने भी कलाम को राजनीतिक रूप से हार्मलेस मानते हुए अपना समर्थन दे दिया। बाकी दलों ने भी अपने मुस्लिम वोट बैक ध्यान मे रखते हुए कलाम के नाम पर सहमति दे दी। संघ ने भी कलाम के नाम पर सहमति जता दी।

कलाम द्वारा भारत को परमाणु शक्ति बनाने पर जोर देना और मिसाईल कार्यक्रम को पूरा करना ऐसी दो वजहें थी जिसने कलाम को सर्व स्वीकार बनाया और इसी आधार पर 70 वर्षीय अब्दुल कलाम देश के 12 वे राष्ट्रपति बने। हालांकि इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टियों ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्हें सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टियों का ही वोट मिला और वो बुरी तरह से चुनाव हार गयीं। बारहवें राष्ट्रपति के लिए एपीजे अब्दुल कलाम को रिकार्ड 90 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। उनका चयन लगभग सर्व सहमति का चयन था।

राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अपनी सादगी और सच्चाई जैसे गुणों के कारण एपीजे अब्दुल कलाम जन जन के मन में बस गये। 27 जुलाई 2015 को जब शिलांग में एक कार्यक्रम के दौरान हृदयगति रुक जाने से उनकी मौत हो गयी तो मानों कुछ क्षणों के लिए पूरा देश रुक गया था। आज भी उनको लोग बहुत श्रद्धा से याद करते हैं और भविष्य में भी कलाम अपनी सादगी, सच्चाई और भारत के विकास में अपने योगदान के लिए सदैव याद किये जाते रहेंगे।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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How Abdul Kalam became President
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