इंडिया गेट से: लोकतांत्रिक व उदारवादी भारत का भविष्य गहरे संकट में
अमरावती में केमिस्ट उमेश प्रहलाद राव कोल्हे की हत्या की असलियत उदयपुर में कन्हैयालाल का सर तन से जुदा करने बाद सामने आई, जबकि उनकी हत्या पांच दिन पहले 21 जून को ही कर दी गयी थी। महाराष्ट्र की तथाकथित सेक्युलर सरकार में यह अपराध दस दिन तक दबा रहा। उमेश की हत्या की साजिश किसी और ने नहीं बल्कि उसके ही एक दोस्त वेटनरी डॉक्टर यूसुफ खान ने रची थी। उमेश के भाई महेश ने दावा किया है कि आरोपी यूसुफ खान उर्फ बहादुर खान उनके भाई का बहुत करीबी दोस्त था। उमेश कई बार यूसुफ़ की मदद कर चुके थे। वो वक्त-वक्त पर यूसुफ को कर्ज भी देते थे। यूसुफ की बहन की शादी और बच्चे के एडमिशन में भी उमेश ने मदद की थी।
इतने अच्छे रिश्ते होने के बाद भी उसने अपने मददगार दोस्त उमेश की हत्या की साजिश रच दी। हत्या के अन्य आरोपियों में कोई मौलाना, कोई एनजीओ संचालक तो कोई दिहाड़ी मजदूर है। डॉक्टर यूसुफ खान न सिर्फ सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा शख्स है बल्कि सबसे उम्रदराज भी है। नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले उमेश कोल्हे के व्हाट्सअप मैसेज पर सबसे पहले यूसुफ की ही नजर पड़ी थी क्योंकि उमेश ने गलती से वो मैसेज उस ग्रुप में शेयर कर दिया था जिसका एडमिन यूसुफ था। इस मैसेज को यूसुफ ने अपने साथियों तक फैला दिया और उमेश के खिलाफ नफरत का माहौल बनाकर दूसरे लोगों को उकसाया। उमेश कोल्हे की हत्या के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि काफिरों के खिलाफ लव जिहाद के बाद क्या अब फ्रेंडशिप जिहाद सामने आ रहा है?
कन्हैयालाल की हत्या हो या फिर उमेश कोल्हे की। इन दोनों ही मामलों में इस्लाम के नाम पर जिन लोगों ने हत्याएं की हैं वो कोई अपरिचित लोग नहीं थे। कन्हैयालाल के हत्यारे उसी मोहल्ले में रहते थे जबकि उमेश कोल्हे की हत्या में उनका अजीज दोस्त ही उनके खिलाफ हत्या का षड्यंत्र रचता है। ऐसी घटनाओं से समाज में विश्वास का गहरा संकट पैदा हो जाएगा। हिन्दू मुस्लिम रिश्तों में आयी दरार भरने की बजाय और चौड़ी होती जाएगी, जिसका नुकसान पूरे देश को होगा।
विश्वास का यह संकट हिन्दू और मुसलमान के बीच ही है, ऐसा भी नहीं है। विश्वास का यह संकट मुसलमान और मुसलमान के बीच भी पैदा हो रहा है। न जाने कब कहां एक मुससमान दूसरे मुसलमान पर ही नबी निंदा का आरोप लगाकर उसकी हत्या कर दे। मार्च 2022 में पाकिस्तान की एक 13 साल की लड़की ने सपने में देखा कि उसकी एक टीचर ने पैगंबर मोहम्मद की शान में गुस्ताखी किया है। उसने वह सपना अपनी एक अन्य टीचर को बताया। इसके बाद तीन टीचरों ने मिल कर उस महिला टीचर को मार डाला जिसने कथित तौर पर सपने में पैगंबर मोहम्मद का अपमान किया था।
विश्वास के इसी संकट और एकतरफा सोच के कारण अलग अलग जगहों पर इस्लाम के नाम पर अपने परिचितों तक को कत्ल किया जा रहा है। इस्लामिक देशों में जो भी मुस्लिम कुरआन और हदीसों पर सवाल उठा रहे हैं, वे काफिर करार दिए जा रहे हैं और मौत के साए में जी रहे हैं। अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, नाईजीरिया, सउदी अरब आदि मुस्लिम देशों में ईशनिंदा पर मौत की सजा का प्रावधान है। इस्लामिक देशों में पिछले बीस सालों में 1200 से ज्यादा लोगों को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है।
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता के साथ अल्पसंख्यकों को अपनी परंपराओं की सुरक्षा का अधिकार है। भारत में आस्तिक व नास्तिक दोनों की परंपरा है जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के रूप में शामिल किया गया है। इसलिए किसी असहमति, विरोध और आलोचना को ईशनिंदा मामना गलत है। अस्पष्ट बातों पर ईशनिंदा को आपराधिक मानना संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 (ए) और 51 (एच) का भी उलंघन है क्योंकि इन अनुच्छेदों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीय गुणों के विकास और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की बात कही गई है।
लेकिन ब्रिटिश जमाने में सीआरपीसी में जोड़ी गई धारा 295 (ए) का आज़ादी के बाद से ही ईशनिंदा के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए दुरूपयोग किया जा रहा है जिससे मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा अन्य धर्माविलन्बियों के खिलाफ हिंसा को बढावा मिला है। इस धारा में धार्मिक भावनाएं भड़काने को अपराध माना गया है और उस पर तीन साल की सजा का प्रावधान है। नूपुर शर्मा अगर माफी नहीं मांगती और हदीस का हवाला देकर मुकद्दमा लड़ती हैं और जज यह मान लेते हैं कि हदीस में लिखी गई बात का उल्लेख करके नूपुर शर्मा ने मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो भी भारतीय क़ानून के मुताबिक़ उन्हें अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है।
कट्टरपंथी मुसलमान भारत में भी इस्लामी देशों की तरह कठोर ईशनिंदा का क़ानून चाहते हैं जिसमें साज-ए-मौत का प्रावधान हो। वे अभिव्यक्ति की आज़ादी को खत्म कर भारत को इस्लामिक देशों की तरह रूढीवादी देश बनाना चाहते हैं ताकि लोगों की सोचने की शक्ति खत्म हो जाए। यह भारत की स्वतंत्र चेतना के विरुद्ध है। संविधान निर्माताओं ने जिस उदारवादी लोकतांत्रिक भारत की कल्पना की थी, उस भारत का भविष्य अब खतरे में नजर आ रहा है।
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