Congress stand on China: चीन सीमा विवाद पर कम्युनिस्टों की भाषा क्यों बोल रही है कांग्रेस?
चीन के साथ तवांग में हुई झड़प के मुद्दे पर जिस तरह से कांग्रेस ने केन्द्र सरकार से असहयोग का रवैया अपनाया है, उससे वह भारत की राजनीतिक पार्टी कम, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की साझीदार ज्यादा नजर आ रही है।
Congress stand on China: राष्ट्र और लोकहित के संवेदनशील मसलों पर सरकार के साथ विपक्ष का खड़ा होना दुनियाभर की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अघोषित रूप से स्वीकार्य परंपरा रही है। जब मामला देश की सीमाओं की सुरक्षा से जुड़ा हो तो उसे लेकर कोई नुक्ता-चीनी नहीं की जाती। अपने देश में भी यही स्वीकार्य राजनीतिक परंपरा रही है। लेकिन 2014 के बाद से इसमें भारी बदलाव नजर आ रहा है।
अरूणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सेना की टुकड़ी से भारतीय सेना की टुकड़ी के साथ हुई झड़प के बहाने चीनी घुसपैठ पर भारत सरकार को घेरने की कांग्रेस लगातार कोशिश कर रही है। कांग्रेस की यह कोशिश भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में आए इसी बदलाव का प्रतीक है।
कांग्रेस कोई पहली मर्तबा ऐसी कोशिश करती नजर नहीं आ रही है। भारतीय सेना ने जब 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तानी सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तब भी कांग्रेस ने उसका सबूत मांगा था। तब भी कांग्रेस का मकसद नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार को झूठा साबित करना था। कांग्रेस की पूरी कोशिश यह थी कि सरकार इस मसले पर झूठी साबित हो।
अगर ऐसा होता तो मोदी सरकार पर बड़बोलेपन का आरोप साबित होता और फिर वैश्विक स्तर पर वह सवालों के घेरे में होती। इससे उसकी साख पर संकट आता और जाहिर है कि मुख्य विपक्षी दल होने के नाते चुनावी मैदान में कांग्रेस को इसका फायदा मिलता।
कांग्रेस ने गलवान झड़प के बाद भी कुछ इसी तरह ही सरकार पर सवाल उठाए। तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की पूरी कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डरपोक और चीन के सामने दुम दबाने वाला साबित करने की थी। उनका मकसद यह जताना नहीं था कि भारत को नुकसान हुआ है, बल्कि मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करना था।
राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ने के घोषित लक्ष्य को लेकर पदयात्रा पर हैं। हालांकि बीच-बीच में वे यात्रा से लौटकर विमान आदि पर सवार हो जाते हैं और अपनी पार्टी के कार्यक्रमों आदि में शामिल होते हैं। बहरहाल इसी यात्रा के दौरान वे बार-बार अपने बयानों के जरिए यह साबित करने की कोशिश करते रहे हैं कि मोदी सरकार चीन का मुकाबला कर नहीं सकती।
राहुल गांधी वैसे भी भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर रहते हैं। लिहाजा उनके बयान पर हंगामा होना ही था। भारतीय जनता पार्टी के तमाम बड़े नेता उनके बयान के खिलाफ उतर गए। लेकिन इस कड़ी में कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तक कूद गए। उन्हें अध्यक्ष पद जब मिला तो कहा गया कि वे परिवारवाद के बाहर के हैं। वे कहीं ज्यादा प्रभावी होंगे और नेहरू-गांधी परिवार की परिधि से बाहर की सोच से लैस होंगे। लेकिन उन्होंने अलवर में प्रधानमंत्री को चीनी झड़प के मुद्दे पर चूहा तक कहने से परहेज नहीं किया। ऐसा कहते वक्त वे भूल गए कि वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। जिस ब्रिटिश पद्धति के लोकतंत्र को हमने स्वीकार किया है, वहां नेता प्रतिपक्ष को छाया प्रधानमंत्री माना जाता है। सवाल यह है कि क्या ऐसी ही जुबान के साथ कांग्रेस राजनीति करेगी?
सरकार के खिलाफ सवाल उठाने के इस नकारात्मक कोरस गान में अब कांग्रेस की अघोषित सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी भी कूद गई हैं। बुधवार को कांग्रेस संसदीय दल को संबोधित करते हुए उन्होंने चीन के मसले पर सरकार को सवालों से तर कर दिया। उनका कहने का लब्बोलुआब यह रहा कि चीन ने भारत के भूभाग पर कब्जा कर लिया है। चूंकि संसदीय चर्चा में सरकार की यह पोल खुल जाएगी, इसलिए वह चर्चा से बचना चाहती है। प्रकारांतर से उन्होंने भी सरकार को डरपोक बताने से परहेज नहीं किया।
वैसे इस मसले पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर संसद में बयान दे चुके हैं। अतीत में ऐसे मसले पर संसद में सरकारी बयान आने के बाद चर्चा को खत्म मान लिया जाता था। संयोगवश अतीत में ज्यादातर मौके उसी कांग्रेस के शासन काल में आए, जो इन दिनों विपक्ष में है।
कांग्रेस नियंता गांधी-नेहरू परिवार के इन दिनों जो सलाहकार हैं, ज्यादातर की राजनीतिक पृष्ठभूमि वामपंथी है। यहां याद दिलाना जरूरी नहीं है कि 1962 में चीन ने जब भारत पर हमला किया और करीब 27 हजार वर्गमील भारतीय भूमि पर कब्जा कर लिया, तब इन वामपंथियों के दिग्गज स्पष्ट तौर पर यह कहने से परहेज करते थे कि चीन ने भारत पर कब्जा किया है।
मशहूर वामपंथी नेता मोहित सेन ने अपनी आत्मकथा 'अ ट्रैवलर एंड द रोड' में लिखा है कि एक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों ने सीपीएम के प्रमुख नेता ईएमएस नंबूदरीपाद से उन दिनों पूछा था कि चीनी हमले के बारे में वे क्या सोचते हैं? तो उन्होंने जवाब दिया था कि "चीनी उस क्षेत्र में घुसे हैं, जिसे वो अपना समझते हैं। भारत भी उस ज़मीन की हिफ़ाज़त करने में लगा है जो उसकी नज़र में उनकी है।"
चीन को लेकर इस वामपंथी छद्म के बारे में मोहित सेन ने आगे लिखा है कि जब नंबूदरीपाद जवाब दे ही रहे थे कि वहां एक अन्य वामपंथी नेता एस ए डांगे ने प्रवेश किया और व्यंग्यात्मक शैली में ईएमएस से पूछ लिया कि इस ज़मीन के बारे में उनकी खुद की राय क्या है? यह बात और है कि इसके बाद डांगे ने तब पत्रकारों से कहा था कि चीनियों ने न सिर्फ़ भारत पर हमला किया है, बल्कि उसकी ज़मीन पर कब्ज़ा किया है।
दुर्भाग्य से आज कांग्रेस नेतृत्व की जो सलाहकार मंडली है, वह ईएमएस नंबूदरीपाद की सोच वाली ही है। चाहे राहुल गांधी हों या सोनिया या प्रियंका या फिर कांग्रेस आलाकमान की लिस्ट में हालिया शामिल हुए मल्लिकार्जुन खड़गे, वे नंबूदरीपाद की परंपरा वाली वामपंथी सोच वाले सलाहकारों से घिरे हैं। इसलिए उन्हें सुरक्षा और विदेश नीति जैसे संवेदनशील मामलों के बहाने भी सरकार को सवालों के बाड़े में लाकर देश की इज्जत को तार करना आसान लगता है।
दिलचस्प यह है कि कांग्रेस की ओर से सुरक्षा संबंधी मामलों पर जब भी प्रश्नचिन्ह लगाए गए, आम लोकमत ने उसका प्रतिकार ही किया। फिर भी कांग्रेस का आलाकमान ऐसे मसलों पर संजीदा होते नजर नहीं आ रहा है। पता नहीं कांग्रेस का प्रथम परिवार क्या सोच रहा है? लेकिन उसके बयानों से ज्यादातर लोकमत को एक ही संदेश मिलता है, कि कांग्रेस को देश की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मसलों की चिंता नहीं है, उसे अपने राजनीतिक नफा-नुकसान की परवाह ज्यादा है।
फिलहाल तो वह साम्यवादी सलाहकारों के बौद्धिक प्रभाव में कुछ ऐसी जबान बोल रही है जिससे यह संदेश जाए कि बार बार चीन भारत पर भारी पड़ रहा है। केन्द्र की सरकार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चीन को चुनौती देने की बजाय वह अपनी ही सरकार को कमजोर दिखाने में जुटी है। मानों, वह भारत की सबसे पुरानी पार्टी न होकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की कोई सहयोगी हो।
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