Kota Coaching: कोचिंग फैक्ट्री में पिस रहे नौजवानों में आत्महत्या की प्रवृति क्यों?
सपने देखना बुरा नहीं और उन्हें सच करने की कोशिश तो बिल्कुल भी नहीं। फिर कोटा में कोचिंग करने वाले मासूम छात्रों को किस गलती की सजा मिल रही है, जो उन्हें जिंदगी की बजाय मौत का रास्ता चुनना पड़ रहा है?
Kota Coaching: कोचिंग सेंटरों के शहर के रूप में जाना जाने वाला राजस्थान का कोटा शहर एक बार फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह वही पुरानी है, पढ़ाई के प्रेशर और तनाव के चलते छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं। इस महीने के पूर्वार्द्ध में, महज 12 घंटों के भीतर गया के उज्जवल कुमार (18 वर्ष), त्रिवेणीगंज के अंकुश आनंद (16 वर्ष) और शिवपुरी के प्रणव वर्मा (17 वर्ष) की आत्महत्याओं ने इस शहर को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। इन्हें मिलाकर पिछले एक महीने में आठ और पूरे साल में चौदह स्टुडेंटस सुसाइड कर चुके हैं। ये वे नौजवान थे, जो इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना लेकर कोटा आये थे और शव के रूप में वापस लौटे।
आत्महत्याओं के पीछे तनाव और दबाव हैं प्रमुख कारण
मनश्चिकित्सकों के अनुसार, अच्छी परफॉर्मेंस का प्रेशर और पढ़ाई का तनाव इन आत्महत्याओं के मुख्य कारण हो सकते हैं। लेकिन, वे ये भी मानते हैं कि कच्ची उम्र में प्रेम और इसमें असफलता, परिवार की आर्थिक स्थिति, अभिभावकों की अपेक्षाओं का बोझ, भावनात्मक अकेलापन जैसी और भी कई वजहें हो सकती हैं। वजह चाहे जो हो, लेकिन इस समस्या से संस्थान, अभिभावक, प्रशासन सब परेशान हैं। इसकी गंभीरता को समझते हुए अलग-अलग स्तर पर इसके समाधान तलाशने का प्रयास भी किया जा रहा है।
कई इंस्टिट्यूट बच्चों में पॉजिटिविटी बनाए रखने के लिए मोटिवेशनल स्पीकर और योग गुरुओं की मदद लेते हैं तो कई अपने-अपने क्षेत्र के सफल व्यक्तियों को बुलाते हैं कि वे अपने अनुभव और संघर्ष को छात्रों के साथ साझा कर उनका मनोबल बढ़ायें। कुछ संस्थान अध्ययनरत छात्रों को उन विकल्पों के बारे में भी जागरुक करते हैं, जो वे डॉक्टर या इंजीनियर की पढ़ाई न कर पाने की स्थिति में चुन सकते हैं। कुछ साल पहले शहर में पुलिस और प्रशासन ने संस्थान संचालकों के साथ बातचीत कर इजी एग्जिट पॉलिसी लॉन्च करवायी थी ताकि जो छात्र पढ़ाई बीच में छोड़कर जाना चाहें, उन्हें उनकी बकाया फीस लौटाकर जाने दिया जाये। शहर में एक 'होप सोसाइटी प्रोजेक्ट' और हेल्पलाइन भी है, जो छात्रों की समस्याओं को सुनने और समझने के बाद उनके समाधान में सहायता करता है। इस हेल्पलाइन के जरिये अब तक दस हजार से अधिक छात्रों की काउंसलिंग की जा चुकी है।
क्यों लुभाती है 'कोटा फैक्ट्री'
पिछले दस सालों में कोटा में छात्र आत्महत्याओं की 150 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। इसके बावजूद यह देश भर के अभिभावकों-छात्रों के सपनों का एजुकेशन हब बना हुआ है। इसकी वजह यहां की पढ़ाई ही नहीं, बल्कि वे सुख-सुविधायें भी हैं जो यहॉं आने वाले स्टुडेंट्स को उपलब्ध करायी जाती हैं। बड़े-बड़े परिसर, वातानुकूलित भवन, लिफ्ट, चप्पे-चप्पे पर नजर रखते सीसीटीवी कैमरे, बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस, छात्रों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल, आधुनिक कैफेटेरिया जैसी चीजों का आकर्षण उनकी आशंकाओं पर भारी पड़ता है।
करीब दो हजार करोड़ का कोचिंग उद्योग, कोटा शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यहॉं आधा दर्जन बड़े और डेढ़ दर्जन से अधिक छोटे कोचिंग इंस्टिट्यूट हैं। जेईई और नीट क्लियर कर इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना लेकर, हर साल औसतन डेढ़ से दो लाख छात्र इन संस्थानों में कोचिंग के लिए आते हैं। हर छात्र का सालाना खर्च लगभग ढाई से तीन लाख रुपये आता है। इस साल भी लगभग 1.75 लाख छात्रों ने इन संस्थानों में प्रवेश लिया है। न सिर्फ कोचिंग सेंटरों का कारोबार इन पर टिका है, बल्कि शहर में होस्टल, पेइंग गेस्ट, रेस्टोरेंट इंडस्ट्री और रीयल एस्टेट व ट्रांसपोर्ट सेक्टर भी इन्हीं की बदौलत फल-फूल रहा है। कोटा में दो हजार से अधिक होस्टल हैं और पीजी अकोमोडेशन की तादाद इससे भी कहीं ज्यादा बड़ी बतायी जाती है।
रेगुलेशन बिल ला रही है प्रदेश सरकार
आत्महत्या की ताजा घटनाओं ने, न सिर्फ अपने बच्चों को यहॉं भेजने की योजना बना रहे अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि कोचिंग इंडस्ट्री पर निर्भर लोगों की भी नींद उड़ा दी है। वहीं अभी तक इस मामले में सुस्त नजर आ रही प्रदेश सरकार भी पूरी तरह एक्शन मोड में आ गयी है। खबर है कि विधान सभा के बजट सत्र में सरकार कोचिंग सेंटरों सहित अन्य शिक्षण संस्थानों के रेगुलेशन के लिए राजस्थान निजी शैक्षिक नियामक प्राधिकरण विधेयक-2022 ला सकती है। इसके अंतर्गत एक एजुकेशन रेगुलेशन अथॉरिटी के गठन का भी प्रस्ताव है। किसी प्रतिष्ठित शिक्षाविद की अध्यक्षता वाला यह प्रस्तावित प्राधिकरण छात्रों को तनाव के माहौल से निकालने और उनकी समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने में सहायता करेगा। पढ़ाई के घंटे, छुट्टी के दिन तय करने और परीक्षाओं के बीच उचित अंतर रखने की जिम्मेदारी भी प्राधिकरण की ही होगी। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों को एक करोड़ रुपये, और बार-बार उल्लंघन करने पर पॉंच करोड़ रुपये तक का दंड अदा करना पड़ सकता है। साथ ही प्राधिकरण टॉपर्स का महिमांडन करने वाले, बढ़-चढ़कर दावे करने वाले विज्ञापनों पर भी प्रतिबंध लगायेगा।
कोटा अकेला नहीं, गिरफ्त में है पूरा देश
दरअसल कोटा तो एक रेखांकित शब्द है, जबकि वास्तविकता यह है कि छात्र आत्महत्याएं पूरे देश की समस्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि कैसे देश भर में छात्र-छात्राओं की आत्महत्याओं की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। 2021 में कुल 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की, जो 2020 की 12, 526 आत्महत्याओं की तुलना में 4.5% अधिक और पिछले पॉंच सालों में सर्वाधिक है। इनमें भी पहले स्थान पर महाराष्ट्र, दूसरे पर मध्य प्रदेश और तीसरे पर तमिलनाडु है। इस लिहाज से, छात्र आत्महत्याओं में कोटा का सालाना योगदान 0.2% से भी कम है। इस तथ्य का उल्लेख करने का उद्देश्य कोटा की समस्या को कम करके आंकना नहीं है, बल्कि इस बात पर बल देना है कि निजी शैक्षणिक संस्थानों पर लगाम कसने के लिए एक सख्त कानून की पूरे देश को जरूरत है। ताकि, निराशा और अवसाद के गर्त में जाती युवा पीढ़ी को इनकी लूट और मनमानियों से बचाया जा सके।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)
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