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कैडर आधारित पार्टी से दलबदलू नेताओं की पार्टी कैसे बन गयी भाजपा?

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भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हिमाचल प्रदेश के ऊना में भाजपा कार्यालय का उद्घाटन करते हुए कहा है कि हम हर किसी को पार्टी में शामिल नहीं करेंगे, फिर वह चाहे कितना ही बड़ा नेता हो। सिर्फ ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल किया जाएगा जो पूरी निष्ठा से भाजपा की विचारधारा का समर्थन करते हों। नड्डा का यह बयान ऐसे समय में आया है जब दूसरे दलों से भाजपा में आने के लिए नेताओं में भगदड़ मची हुई है।

BJP transformation from cadre based to defectors loving

लेकिन नड्डा के इस बयान से बहुत पहले 6 अप्रैल 1980 को मुम्बई में भाजपा स्थापना दिवस के दिन उसके पहले अध्यक्ष बने अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि 'हम संघ के संस्कारों से निकले स्वयंसेवक हैं। हमारे लिए संघ से वैचारिक जुड़ाव सबसे महत्व का है। आज हमने जिस भारतीय जनता पार्टी को जन्म दिया है, इस पार्टी के सभी नेता अपने चाल, चरित्र और चेहरे से पहचाने जाएंगे।'

अटल बिहारी वाजपेयी ने यह भी कहा था कि 'हमारी पार्टी कोई दुकान नहीं है जिसमें कोई भी बेधड़क चला आए। जो व्यक्ति संघ की शाखाओं से निकला हो और दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद को अपना मूल मंत्र मानता हो, वही हमारी पार्टी में रह सकता हैं।' अटल बिहारी ने उस समय घोषणा की थी कि 'भाजपा एक पार्टी नहीं एक विचार है इसलिए इसके दरवाजे सबके लिए नहीं खुल सकते।'

समर्पित कैडर से आयातित नेताओं तक

1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी अपने जन्म से कैडर आधारित पार्टी के रूप में जानी जाती थी और इसका पूरा सिस्टम शुरू से ही आरएसएस की विचारधारा और तौर तरीकों में रचा बसा था। लेकिन 1980 में बनी यह पार्टी 2022 तक आते आते आयातित नेताओं की भरमार वाली पार्टी बन चुकी है।

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भारतीय जनता पार्टी सिर्फ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं बनी बल्कि दूसरे दलों के नेताओं को सबसे ज्यादा अपने दल में शामिल कराने वाली पार्टी भी बन चुकी हैं। भाजपा आज अपने सहयोगी दलों के साथ 17 राज्यों में राज कर रही है, जहां भारत की आधी से ज्यादा आबादी रहती है।

पूरे भारत पर राज करने के भाजपा के जुनून और हर हाल में सत्ता हासिल करने की होड़ ने कैडर आधारित भाजपा को नदी के ऐसे घाट में परिवर्तित कर दिया है जहां संघ और भाजपा के समर्पित स्वयंसेवक तथा सत्ता सुख की खोज में दूसरों दलों से आए नेता एक साथ पानी पी रहे हैं।

2014 में भाजपा अध्यक्ष बने अमित शाह से जब पूछा गया था कि कांग्रेस के साथ दूसरे दलों के नेताओं को सत्ता के लिए धड़ाधड़ भाजपा में शामिल कराने को क्या आप उचित मानते है? अमित शाह ने जवाब दिया था कि 'राजनीति में हम गंगा स्नान करने नहीं आए है। कई बार सत्ता के लिए घाट घाट का पानी भी पीना पड़ता है। हमें किसी से परहेज नहीं।'

भाजपा को किसी से परहेज नहीं की बात को इस तरह भी देख सकते हैं कि भाजपा ने विधानसभा चुनावों में 833 दलबदलुओं को टिकट दिए, उनमें से 355 के करीब जीते। भाजपा ने दूसरे दलों से आए नेताओं को सिर्फ विधायक और सांसद ही नहीं बनाया बल्कि दूसरे दल के नेता भाजपा में आकर मंत्री और मुख्यमंत्री भी बने।

यह भी पढ़ें: इंडिया गेट से: बिहार, महाराष्ट्र और यूपी में दलित वोटर भाजपा के साथ क्यों?

मोदी मंत्रिमंडल में दलबदलुओं का बोलबाला

नरेन्द्र मोदी सरकार के वर्तमान मंत्रिमंडल में ऐसे 16 मंत्री हैं जो दूसरे दलों से आए हैं। उनमें अर्जुन मुंडा जेएमएम से 1998 में भाजपा में आए, सर्वानंद सोनोवाल और किरेन रिजिजू जो असम गण परिषद और कांग्रेस से 2012 में भाजपा में आए। सर्वानंद सोनोवाल असम में भाजपा के मुख्यमंत्री भी रहे और अब केन्द्र सरकार में मंत्री भी हैं।

लघु उद्योग मंत्री नारायण राणे जिन्होंने अपनी पार्टी महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष का 2019 में भाजपा में विलय किया, मोदी सरकार में मंत्री हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनवाने वाले सिंधिया 2020 में भाजपा में आए और आज मोदी सरकार में मंत्री है। 2017 में बसपा से भाजपा में आए सत्यपाल सिंह बघेल मोदी सरकार में मंत्री है।

दलबदलुओं को मिला मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री का पद

2015 में कांग्रेस से भाजपा में आए हिंमत बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री बने। अरूणाचल प्रदेश के पेमा खांडू और मणिपुर के एन बीरेन सिंह और त्रिपुरा के माणिक साहा 2016 और 2017 में कांग्रेस से भाजपा में आए और आज भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्री हैं।

कर्नाटक के बसवराज बोम्मई जो 2008 में समाजवाद का चोला उतार भगवा पहनने में कामयाब रहे और आज कर्नाटक में भाजपा के मुख्यमंत्री है। बसपा के पूर्व सांसद और 2016 में भाजपा का दामन थामने वाले ब्रजेश पाठक आज उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री है।

शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के घाट का पानी पीकर भाजपा को कोसने वाले राहुल नार्वेकर 2019 में भाजपा में आए और भाजपा ने इस युवा नेता को देश का सबसे युवा स्पीकर बना दिया। राहुल नार्वेकर आज महाराष्ट्र के स्पीकर है। इसी तरह कर्नाटक में 2019 में, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के तत्कालीन सत्तारूढ़ गठबंधन के 16 विधायक एच.डी. कुमारस्वामी के साथ मिलकर राज्य सरकार को गिराने के लिए भाजपा में शामिल हो गए थे।

कांग्रेस मुक्त भारत, कांग्रेसी युक्त भाजपा

मोदी के कांग्रेस मुक्त नारे ने ऐसा असर दिखाया कि कांग्रेस के ज्यादातर नेता खुद ही कांग्रेस मुक्त मुहिम के ब्रांड एम्बेसेडर बन गए। आज देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं और कोई ऐसा प्रदेश नहीं जहां अन्य दलों के नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण न की हो।

मोदी शाह के नेतृत्व वाली भाजपा आज पूरे देश में विपक्षी दलों के नेताओं के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। इसलिए पानी पी पीकर भाजपा को कोसने वाले नेता भी आज भाजपा के घाट का पानी पी रहे है और सत्ता पाकर तृप्त हो रहे है।

उत्तर प्रदेश से ब्रजेश पाठक, सत्यपाल सिंह बघेल, रीता बहुगुणा जोशी, जितिन प्रसाद, नंद गोपाल गुप्ता, नरेंन्द्र भाटी और कौशल किशाेर जैसे विपक्ष के नेता आज उत्तर प्रदेश में योगी के साथ है।

उत्तराखण्ड से सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा जोशी, सुबोध उनियाल, सरिता आर्य, किशोर उपाध्याय कांग्रेस से भाजपा में आए और इनमें से ज्यादातर उत्तराखण्ड की धामी सरकार में मंत्री है।

दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी सपा से भाजपा में आए है। पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ अब भाजपा में हैं। केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह के भाई और नेशनल कांफ्रेस के नेता रहे देविंदर राणा ने 2021 में भाजपा का दामन थामा।

हरियाणा के रोहतक से भाजपा सांसद अरविंद शर्मा कांग्रेस से भाजपा में आए। हरियाणा कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता रहे राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में आए और मोदी सरकार में मंत्री बनें।

हरियाणा से दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे चौधरी वीरेन्द्र सिंह 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ आए और मोदी सरकार में मंत्री भी रहे। भाजपा के गढ़ रहे गुजरात में भी कांग्रेस के नेता रहे जवाहर चावड़ा, राघवजी पटेल और बृजेश मेरजा ने भाजपा का साथ लिया और आज गुजरात सरकार में मंत्री है। पटेल आंदोलन के नेता रहे और बांद में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने हार्दिक पटेल आज भाजपा के पाले में है।

गोवा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के बेटे और कांग्रेस के नेता विश्वजीत राणे अब गोवा भाजपा सरकार में मंत्री है। सुभाष शिरोड़कर ने भी 2018 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और आज गोवा की सावंत सरकार में मंत्री है। महाराष्ट्र में नारायण राणे और राधाकृष्ण विखे पाटिल जेसे कांग्रेस के बड़े नेता आज भाजपा के साथ है। नारायण राणे, भारती पवार, कपिल मोरेश्वर पाटिल जैसे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आज मोदी सरकार में मंत्री है।

सच्चाई यही है कि दलबदलुओं ने सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही खाली किया है। भाजपा का विस्तार और संवर्धन मुख्यत: कांग्रेस की कीमत पर ही हुआ है। आज भाजपा दलबदलुओं के लिए सबसे अधिक डिमांड में रहने वाली पार्टी बन चुकी है। विपक्षी दल भाजपा पर भले 'संसाधनों' प्रलोभनों के साथ-साथ सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन विपक्ष को सोचना होगा कि क्या सचमुच इन्हीं कारणों से उनके नेता भगवा खेमे का दामन थाम रहे हैं या कारण कुछ और है?

सबका साथ भाजपा का विकास

कभी नवीन पटनायक के करीबी रहे बैजयंत पांडा आज भाजपा में है। झारखण्ड से आने वाले अर्जुन मुंडा, बाबू लाल मंराडी और अन्नपूर्णा देवी विपक्ष में रहने के बाद भाजपा में आए। अन्नपूर्णा देवी केन्द्र में मंत्री है। ममता बनर्जी की टीएमसी से सुवेंदु अधिकारी, निसिथ प्रमाणिक, जॉन बारला, लॉकेट चटर्जी और सौमित्र खान ने ममता को छोड़ भाजपा का दामन थामा, इसमें से सुवेदु बंगाल में विपक्ष के नेता बने, लॉकेट चटर्जी, सौमित्र खान और जॉन बारला सांसद बने। निसिथ प्रमाणिक केन्द्र में मंत्री है।

अभी कुछ दिनों पूर्व ही नीतीश ने बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बनाई, उधर मणिपुर के छह जनता दल (यूनाइटेड) के विधायकों में से पांच राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इसके साथ ही 2014 से भाजपा में शामिल होने के लिए अपनी पार्टियों को छोड़ने वाले विधानसभा सदस्यों और सांसदों की संख्या 211 तक पहुंच गई है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य भाजपा के लिए अनुकूल है। विभिन्न दलों के दलबदलुओं ने पूरे भारत में भाजपा का परचम फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिलहाल भले ही भाजपा कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में लेकर कांग्रेस मुक्त होने की उम्मीद बांध रही हो, लेकिन दूसरे दलों से भाजपा में आए नेता भाजपा के पुराने समर्थकों और निष्ठावान नेताओं के राजनीतिक भविष्य के लिए बहुत बड़ी बाधा बनते जा रहे हैं। संगठन के प्रति निष्ठावान नेताओं की अनदेखी भाजपा के भविष्य के लिए बड़े संकट का कारण भी बन सकती है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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BJP transformation from cadre based to defectors loving
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