छोड़ दीजिए नौकरी की उम्मीद! आपकी परीक्षा वाली 'कॉपी फाड़ दी गई है'
ये जानकारी खुद आयोग को जन सूचना अधिकार के चलते देनी पड़ी है।
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग फिर विवादों में घिर गया है। आयोग ने पीसीएस-2014 की कॉपियां नष्ट कर दी हैं। जबकि इस भर्ती से संबंधित मामला कोर्ट में विचाराधीन है। माना जा रहा है घपले के सुबूत मिटाने के लिए सीबीआई आहट पर ये खेल हुआ है। ये जानकारी खुद आयोग को जन सूचना अधिकार के तहत दाखिल हिमांशु सिंह के प्रत्यावेदन पर बतानी पड़ी है। इसकी जानकारी मीडिया को देते हुए प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने आयोग पर सीधा हल्ला बोल दिया है और आयोग की कार्यप्रणाली पर तीखे सवाल उठाए है। तो आयोग के अफसरों का दावा है कि कॉपियां नियमों के तहत ही नष्ट की गईं।
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क्यों मचा है बवाल?
दरअसल इस बवाल और सवाल के पीछे एक जन सूचना है। जिसे पीसीएस-2014 की परीक्षा में शामिल हुए अभ्यर्थी हिमांशु सिंह ने हासिल की है। हिमांशु सिंह ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में प्रत्यावेदन देकर अपनी उत्तर पुस्तिकाओं को देखने का अनुरोध किया था। आयोग ने हिमांशु के प्रत्यावेदन पर जनसूचना अधिकार के तहत बताया कि निर्धारित समय सीमा तक सुरक्षित रखे जाने के बाद उस परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं को नष्ट कर दिया गया है। ऐसे में उत्तर पुस्तिकाओं को दिखाना असंभव है।
हिमांशु
ने
इस
बावत
जानकारी
प्रतियोगी
छात्र
संघर्ष
समिति
को
दी
तो
बखेड़ा
खड़ा
हो
गया।
छात्रों
ने
सवाल
उठाया
कि
जब
मामला
न्यायालय
में
लंबित
है
तो
कॉपियों
किस
आधार
पर
नष्ट
की
गईं?
छात्रों
ने
आयोग
की
कार्यप्रणाली
पर
सीधा
हमला
बोला
है
और
अब
एक
नया
केस
भी
हाईकोर्ट
पहुंच
सकता
है।
गौरतलब
है
कि
सूबे
में
योगी
सरकार
बनने
के
बाद
आयोग
में
हुई
भर्तियों
की
सीबीआई
जांच
की
मांग
ने
जोर
पकड़
रखा
है।
पिछले
दिनों
सरकार
ने
आयोग
से
भर्तियों
का
रिकॉर्ड
तलब
किया
था।
जिसके
बाद
से
भर्ती
पर
सीबीआई
जांच
की
मंशा
और
प्रगाढ़
हो
गई
थी।
लेकिन
अब
इस
मामले
ने
फिर
से
भूचाल
ला
दिया
है।
जब बदल दिया गया नियम
आयोग की भर्ती के बाद पहले नियम था कि उत्तर पुस्तिका 10 साल तक सुरक्षित रखी जाती थी। विधि परामर्शी का कहना है कि मामला अगर न्यायालय में लंबित है तो नियमों से भी ज्यादा समय तक कॉपियां सुरक्षित रखी जाएंगी। लेकिन सपा सरकार में जब अनिल यादव अध्यक्ष बने तो कॉपियों को सुरक्षित रखे जाने की समय सीमा घटाकर एक वर्ष कर दी गई। इस संशोधन का जबर्दस्त विरोध हुआ था और आरोप लगे कि नियमों में संशोधन संविधान के खिलाफ है। इसे घपलेबाजी के लिए ही किया जा रहा है।
ऐसे मामलों में आ चुका है भूचाल
2012 की पीसीएस परीक्षा में अवनीश ने उत्तर पुस्तिकाओं को देखने के लिए आयोग में आवेदन किया था। उस वक्त उन्हें भी आयोग ने जवाब दिया कि कॉपियां नष्ट कर दी गई हैं। इस पर छात्रों ने बवाल शुरू किया तो आयोग ने कहा कि सभी उत्तर पुस्तिकाएं सुरक्षित हैं। सिर्फ अवनीश की उत्तर पुस्तिका ही नहीं मिल रही है। इस घटना के बाद ही जुलाई 2013 में अनिल यादव के अध्यक्ष पद पर कार्यभार संभालने के बाद नियमों में संशोधन हुआ और कॉपियों को सुरक्षित रखे जाने की समय सीमा घटाकर एक वर्ष कर दी गई। जबकि 2015 की पीसीएस-परीक्षा में शामिल सुहासिनी बाजपेयी के फेल होने के बाद जब आयोग ने उत्तर पुस्तिकाएं दिखाई तो पता चला कि उनकी कॉपी ही बदल दी गई। बाद में सुहासिनी को पास कर कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई थी। छात्रों ने सवाल उठाए कि अगर सुहासिनी की भी कांपी नष्ट कर दी जाती तो गड़बड़ी कभी सामने नहीं आती।
न्यायालय में हैं ये मामले
आयोग की भर्तियों कि बात करें शायद ही कोई ऐसी भर्ती होगी जो न्यायालय न पहुंची हो। 2011 से लेकर 2015 तक की सभी पीसीएस परीक्षाएं, यानी सपा सरकार में हुई हर पीसीएस परीक्षा कोर्ट पहुंची। जबकि 2009, 2013, 2015, यूडीए-एलडीए 2011, 2013, 2015 समेत कई परीक्षाओं से जुड़े मामले न्यायालय में लंबित हैं। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिरुद्ध यादव का कहना है कि कॉपियों को नियमों के तहत ही नष्ट किया गया। जबकि छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय का कहना है कि घपलों को छिपाने के लिए सब किया गया है।