वुहान की बदनाम लैब ने पाकिस्तानी मिलिट्री से किया सीक्रेट करार, भारत के खिलाफ हो सकता है इस्तेमाल
बीजिंग। वुहान के जिस इंस्टीट्यूट को कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है, अब वहां पर पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन, भारत के खिलाफ बायो वॉरफेयर की रणनीति तैयार करेगा। इंटेलीजेंस सूत्रों के हवाले से क्लाक्सॉन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन ने पाकिस्तान मिलिट्री के साथ एक बड़ी डील है। इस समझौते के जरिए संभावित बायो वॉर की क्षमताओं को बढ़ाने पर रिसर्च की जाएगी। यह समझौता तीन साल का होगा जिसमें खतरनाक एजेंट एंथ्रेक्स पर रिसर्च के साथ ही कई और प्रोजेक्ट्स पर रिसर्च की जाएंगी।
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वुहान लैब पर लग रहे हैं कई आरोप
कई विशेषज्ञों ने हालांकि इस बात को मानने से इनकार कर दिया है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कोरोना वायरस को तैयार किया गया था। महामारी को जिस तरह से चीन ने डील किया, उसकी वजह से उसे अब दुनियाभर में आलोचनाओं का झेलना पड़ रहा है। वेबसाइट क्लाक्सॉन के तरफ से एंथोनी क्लैन ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। उन्होंने लिखा है कि इस वुहान लैब ने पाकिस्तान मिलिट्री की डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गनाइजेशन (डेस्टो) के साथ डील की है। इस डील का मकसद आने वाली संक्रामक बीमारियों पर रिसर्च के लिए आपसी सहयोग को आगे बढ़ाना है और साथ ही बीमारियों को बायोलॉजिकल विकल्प के जरिए फैलने कैसे रोका जाए, इस पर भी रिसर्च की जाएगी।
चीन के बाहर होगी टेस्टिंग
क्लाक्सॉन एक ऑस्ट्रेलियाई वेबसाइट है और एंथोनी क्लैन एक इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट हैं। सूत्रों के हवाले से वेबसाइट ने लिखा है कि 'कोवर्ट' प्रोजेक्ट्स को लेकर इंटेलीजेंस ऑफिसर्स ने खासी चिंता जताई है। इन प्रोजेक्ट्स में चीन के शामिल होने और बायोलॉजिकल एजेंट्स की टेस्टिंग चीन से बाहर होगी। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली आलोचनाओं की आशंका को कम करना है। यह जानकारी ऐसे समय में आई है जब चीन पर आरोप लग रहे हैं कि उसने कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों को छिपाया और शुरुआती दिनों में इसे सार्वजनिक ही नहीं किया। अगर चीन ऐसा करता तो शायद महामारी से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था।
पाकिस्तान के प्रोजेक्ट को चीन की मदद
विशेषज्ञों का कहना है कि वुहान लैब को हर तरह की वित्तीय और वैज्ञानिक मदद प्रोजेक्ट के लिए हासिल थी। पाकिस्तान के प्रोजेक्ट को पूरी तरह से चीन की तरफ से आर्थिक मदद दी जाएगी। इंटेलीजेंस सूत्र की मानें तो डेस्टो पहले भी कई ऐसे प्रोजेक्ट में शामिल रही है जो एंथ्रेक्स से जुड़े हैं। एजेंसी बायोलॉजिकल वेपन प्रोग्राम की आड़ में ऐसे प्रोजेक्ट्स को अंजाम दे रही थी। क्लाक्सॉन की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन-पाकिस्तान के इस प्रोजेक्ट के तहत हर तरह के टेस्ट्स को पूरा कर लिया गया है। इन टेस्ट्स के जरिए बेलिलस थूरिंगजेनसिस (बीटी) को अलग करने का काम किया गया है। यह एक एजेंट है जो एंथ्रेक्स जैसा ही है। वुहान लैब की तरफ से पाकिस्तान को बीटी के लिए री-एजेंट्स सप्लाई किए गए हैं।
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भारत पर बढ़ रहा है बड़ा खतरा
प्रोजेक्ट में चीन के शामिल होने पर भारत करीब से नजर रख रहा है। इसके अलावा पश्चिमी देशों की कुछ इंटेलीजेंस एजेंसियों की भी इस पर नजरें हैं। उनका मानना है कि चीन, पाकिस्तान को शामिल कर भारत के खिलाफ अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में उसकी खासी रूचि से उसकी मानसिकता का पता चलता है। चीन-पाकिस्तान के इस प्रोजेक्ट ने क्रिमियन-कांगो होमोरेजिक फीवर वायरस (सीसीएचएफवी) पर कुछ प्रयोग पहले ही कर लिए हैं। यह वायरस इबोला वायरस जैसा ही है और इसकी वजह से 25 प्रतिशत मौतें हो चुकी हैं। पाकिस्तान की जिन लैब्स में प्रयोग हो रहे हैं, वो बायो-सेफ्टी लेवल-4 सुरक्षा इंतजामों से लैस नहीं हैं।