नोबेल पुरस्कार कमेटी के खिलाफ भारतीय वैज्ञानिक की जंग
नई दिल्ली। फोटोनिक मटीरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी, ऑबर्न यूनिवर्सिटी (यूएसए) के निदेशक प्रोफेसर मृणाल ठाकुर ने रॉयल स्वीडिश अकैडमी ऑफ साइंस पर आरोप लगाया है कि वो नोबेल प्राइज के लिये लोगों का चयन करने में पक्षपात करता है। इसी आरोप के साथ भारतीय वैज्ञानिक प्रो. ठाकुर ने कमेटी के खिलाफ जंग छेड़ दी है।
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प्रो. ठाकुर ने नोबेल कमेटी पर आरोप लगाया है कि यह कमेटी भारतीयों, एशियाई, अफ्रीकियों और लैटिन अमेरिकी लोगों को नोबेल प्राइज़ के लिये नामित करने से कतराती है। इस बाबत प्रो. ठाकुर ने भारत में नरेंद्र मोदी सरकार से दरख्वास्त की है कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करे और इस मुद्दे को स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोवेन के समक्ष उठाये, ताकि वैज्ञानिक खोजों के लिये भारतीय वैज्ञानिकों को नोबेल प्राइज का क्रेडिट मिल सके।
प्रो. ठाकुर को नोबेल पुरस्कार के लिये 2001 से नामित किया जा रहा है। इस साल भी उन्हें केमिस्ट्री में नोबेल प्राइज के लिये नामित किया गया था। "नॉन कंजूगेटेड कंडक्टिव पॉलीमर्स" पर खोज के लिये उन्हें पूरी दुनिया जानती है।
2000 में नोबेल प्राइज में उन्हें इस काम के लिये कोई क्रेडिट नहीं दिया गया। जबकि संगठन ने कंडक्टिव पॉलीमर्स के लिये नोबेल प्राइज दिया था। जिसे इस थियोरी के लिये नोबेल प्राइज दिया गया है, उसे प्रो ठाकुर ने पहले ही गलत साबित कर दिया था।
प्रो. ठाकुर का कहना है कि जब उन्होंने उस थियोरी में गलतियां खोज निकालीं, तो अमेरिकी सरकार ने उनके रिसर्च के लिये दिये जा रहे फंड को अचानक रोक दिया। 2003 से लेकर अब तक रिसर्च के लिये दिया जाने वाला फंड रुका हुआ है। प्रो. ठाकुर का कहना है कि उन्होंने 2014 में सुपर रिसॉल्व्ड फ्लुओरेसेंस माइक्रोस्कोपी की खोज की, उसके लिये भी उन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया गया।