कोरोना वायरसः नेता अपनी ही सलाह को नज़रअंदाज़ क्यों करते हैं
कोविड-19 वैश्विक महामारी का असर कम करने के लिए दुनिया भर के नेता अपने देश के लोगों से बलिदान मांग रहे हैं. नेताओं के कहने पर लोग कुछ समय के लिए अपनी पसंद की चीज़ों को छोड़ रहे हैं. वे दोस्तों और परिजनों से नहीं मिल रहे, यात्रा नहीं कर रहे, शॉपिंग के लिए नहीं निकल रहे, जलसे नहीं कर रहे. यह सब करना कठिन है लेकिन सरकारें इसे ही सही रास्ता बता रही हैं
कोविड-19 वैश्विक महामारी का असर कम करने के लिए दुनिया भर के नेता अपने देश के लोगों से बलिदान मांग रहे हैं.
नेताओं के कहने पर लोग कुछ समय के लिए अपनी पसंद की चीज़ों को छोड़ रहे हैं. वे दोस्तों और परिजनों से नहीं मिल रहे, यात्रा नहीं कर रहे, शॉपिंग के लिए नहीं निकल रहे, जलसे नहीं कर रहे.
यह सब करना कठिन है लेकिन सरकारें इसे ही सही रास्ता बता रही हैं, इसलिए ज़्यादातर लोग इस पर अमल कर रहे हैं.
इन नियमों को बनाने वालों से इन पर और सख़्ती से अमल करने की अपेक्षा की जाती है. किसी भी आम आदमी की तुलना में नेताओं और सरकारी अधिकारियों को हालात की गंभीरता के बारे में ज़्यादा पता होता है.
उनके कंधों पर दूसरों के लिए मिसाल बनने की अतिरिक्त जिम्मेदारी होती है. फिर ऐसा क्यों होता है कि उनमें से कई लोग अपनी ही सलाह पर अमल नहीं करते?
नियम सिर्फ़ दूसरों के लिए?
स्कॉटलैंड की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. कैथरीन काल्डरवुड लॉकडाउन के दौरान एडिनबर्ग में अपने पारिवारिक घर से दो बार गाड़ी चलाकर अपने दूसरे घर गईं.
प्रेस को इसका पता चला तो डॉ. काल्डरवुड को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
न्यूजीलैंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. डेविड क्लार्क ने अपने परिवार को समुद्र तट पर ले जाने के लिए लॉकडाउन का उल्लंघन किया तो उनका पद घटा दिया गया.
दक्षिण अफ्रीका में एक मंत्री की अपने दोस्त के साथ लंच करने की तस्वीरें आईं तो उनको निलंबित कर दिया गया.
ये चीज़ें मौजूदा संकट तक या मौजूदा सरकारों तक सीमित नहीं हैं.
2019 में मैकडोनल्ड के चीफ़ एक्जीक्यूटिव स्टीव ईस्टरब्रूक को नौकरी से निकाल दिया गया था. वह कंपनी की एक कर्मचारी के साथ रोमांटिक रिश्ते में थे.
उनका रिश्ता सहमति के आधार पर था, लेकिन यह दफ्तर में प्रेम संबंधों के बारे में कंपनी के दिशानिर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन था. इन दिशानिर्देशों की जिम्मेदारी ख़ुद ईस्टरब्रूक पर थी.
किसी नेता का अधिकार उनकी सच्चाई और ईमानदारी के बारे में लोगों की राय पर निर्भर करता है. अपने लिए दोहरा मापदंड अपनाकर वह ख़ुद अपनी स्थिति कमजोर करते हैं.
ज़्यादातर नेता चाहते हैं कि लोग उनको पसंद करें, लेकिन दोहरे रवैये से लोग ख़फ़ा हो जाते हैं. तो आख़िर क्या वजह है कि नेताओं के ऐसे रवैये इतने आम हैं?
सबको खुश करने की कोशिश
सामाजिक मनोविज्ञानी और लंदन बिजनेस स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर डेनियल एफ्रॉन इंसान के दोहरे रवैये का अध्ययन करते हैं.
उनका कहना है कि ऐसे लोगों के काम ग़ैरमुनासिब हो सकते हैं, फिर भी उनको पाखंडी कहना सही नहीं होगा.
यदि कोई नशेड़ी दूसरों को नशा नहीं करने की सलाह दे तो कुछ ही लोग इसकी निंदा करेंगे. लेकिन यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर सदाचार का उपदेश दे और निजी जीवन में कदाचार करे तो लोगों को गुस्सा आएगा.
एफ्रॉन कहते हैं, "लोगों को लगता है कि यह अच्छे आदमी होने का ढोंग करके फायदा उठा रहा है जबकि वह इसके काबिल नहीं है." इस छल से हमें चिढ़ होती है.
अब यदि नेताओं को पता है कि पाखंड को पसंद नहीं किया जाता तो वे लोगों को इल्जाम लगाने का मौका क्यों देते हैं?
इसकी सबसे सरल व्याख्या यह है कि उनको लगता है कि वे इससे बचकर निकल जाएंगे. कुछ मामलों में यह सच भी हो सकता है, मगर एफ्रॉन का कहना है कि ज़्यादातर लोग ख़ुद को सही समझते हैं.
एक और वजह यह है कि वे अलग-अलग वर्ग के लोगों को खुश करने के लिए कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं.
एफ्रॉन कहते हैं, "सभी तरह के संगठनों में लोग विभिन्न स्टेकहोल्डर्स की परस्पर विरोधी मांगों में फंसकर पकड़े जाते हैं."
"कुछ लोग जो चीज़ चाहते हैं उसे दूसरे लोग नहीं चाहते. नेता दोनों तरह के लोगों को संतुष्ट करने की कोशिश करता है. वह कुछ लोगों से बात करता है और कुछ लोगों को अपने काम से मनाता है, भले ही उसका कहना और करना एक-दूसरे के ख़िलाफ़ हों."
नेताओं का पक्ष भी समझिए
आप सोच सकते हैं कि इस जैसे संकट कि घड़ी में राष्ट्रीय नेताओं को सिर्फ़ जनता के बारे सोचना चाहिए.
एफ्रॉन का कहना है कि जरा उनके नज़रिये से भी सोचकर देखिए. "उन्हें जनता के साथ-साथ अपने परिवार को भी देखना है और संतुलन बनाना है."
विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे नेता के लिए ज़रूरी नहीं कि जनता के बीच के उनके काम सही लगें और उनके निजी काम ग़लत लगें.
उनको ऐसा लग सकता है कि वे दो अलग-अलग संदर्भों में सही काम करने की कोशिश कर रहे हैं.
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लोग अनुचित व्यवहार के बारे में क्या सोचते हैं, एफ्रॉन ने इस पर शोध किया है.
उन्होंने पाया कि कुछ एशियाई और लैटिन अमरीकी देशों में जहां सामूहिक ज़रूरतों को निजी ज़रूरतों पर वरीयता दी जाती है वहां अनुचित व्यवहार को उतनी ज़ल्दी पाखंड नहीं समझा जाता जितनी ज़ल्दी व्यक्तिवादी संस्कृति वाले देशों, जैसे ब्रिटेन और अमरीका, में समझ लिया जाता है.
समूहवादी संस्कृतियों में यह माना जाता है कि नेताओं को सभी तरह के लोगों की सेवा करनी है और वे भी अपने रिश्तों को बचाने को अहमियत देंगे- भले ही इसका मतलब कहना कुछ और करना कुछ निकले.
खाते में पुण्य जमा है
नेताओं के पाखंडी व्यवहार का एक और कारण हो सकता है, ख़ासकर जब वे दबाव में हों. मनोवैज्ञानिक इसे "मोरल लाइसेंसिंग" कहते हैं.
2008 में, जिस साल बराक ओबामा अमरीका के पहले अफ्रीकी-अमरीकी राष्ट्रपति चुने गए थे, एफ्रॉन और उनके सहयोगियों ने ओबामा के कुछ गोरे समर्थकों पर एक प्रयोग किया.
सभी प्रतिभागियों से पूछा गया कि क्या कोई विशेष काम किसी अश्वेत या गोरे व्यक्ति के ज़्यादा अनुकूल हो सकता है.
यह सवाल पूछने पहले समूह के आधे लोगों से पूछा गया था कि वे ओबामा के समर्थक हैं या नहीं हैं? (प्रतिभागियों को मालूम नहीं था कि सवाल पूछने वाला पहले से जानता है कि वे ओबामा समर्थक हैं.)
जिन लोगों ने इस अतिरिक्त सवाल का जवाब दिया वे यह बताने के अधिक इच्छुक थे कि यह काम अश्वेतों के मुक़ाबले गोरों के अधिक अनुकूल है.
दूसरे शब्दों में, उनको पूर्वाग्रह से ग्रसित समझे जाने की चिंता नहीं थी क्योंकि उन्होंने ओबामा के प्रति अपना समर्थन जाहिर कर दिया था. उन्हें नस्ल-भेदी कहलाने का ख़तरा नहीं लग रहा था.
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक यह मोरल लाइसेंसिंग सभी तरह के संदर्भों में काम करती है.
मिसाल के लिए, अपने नैतिक व्यवहार के हालिया उदाहरण को याद करने से किसी व्यक्ति के दान करने, रक्तदान करने या वॉलंटियर बनने का इरादा कमज़ोर हो जाता है.
नैतिक पूंजी जमा करना
पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद खरीदना लोगों को धोखा देने या चोरी करने के लिए तैयार कर सकता है.
इसी तरह, सदाचार की बात करने या ऐसे कुछ काम करने के बाद यह लग सकता है कि उनको इसके ठीक उलट कुछ काम करने का लाइसेंस मिल गया है.
मौजूदा संकट की तरह के समय में नेता अक्सर अपनी समझ से लोगों की भलाई के लिए बहुत मेहनत करते हैं.
वे महामारी में लोगों को स्वस्थ रखने या अपने संगठन का भविष्य सुरक्षित के लिए प्रयासरत हो सकते हैं.
मनोवैज्ञानिक रूप से वे इसे पुण्य (नैतिक पूंजी) जमा करने जैसा समझते हैं. इससे वे अपने व्यवहार का मूल्यांकन उदार नज़रिये से करते हैं, भले ही दूसरों को वे अनैतिक लगे.
एफ्रॉन कहते हैं, "मैं अपवाद क्यों हूं- इस सवाल का जवाब हम हमेशा तैयार रखते हैं. हम अपने आपको यह भी समझा लेते हैं कि हम जो वजह सोच रहे हैं वे सही हैं."
इतना ही नहीं, नेता ख़ुद को यह भी समझा लेते हैं कि लोग भी उनके व्यवहार को उसी तरह देखेंगे जैसे वे देखते हैं.
दूसरे क्या सोचते हैं?
एफ्रॉन के एक दूसरे प्रयोग में लोगों को मूल्यों (जैसे पर्यावरणवाद) पर चर्चा करते हुए अपना वीडियो रिकॉर्ड करने को कहा गया.
फिर उनसे एक समय लिखने को कहा गया जब उन्होंने अपनी सलाह भी नहीं मानी.
उनके क़बूलनामे को दूसरों को दिखाए जाने से पहले तक वे अपने ग़ैरमुनासिब रवैये की संभावित आलोचना को कम करके आंक रहे थे.
यह भोलापन लग सकता है, लेकिन हम सभी को यह समझने में परेशानी होती है कि दूसरों के दिमाग में क्या चल रहा है.
जो नेता अपने बनाए नियमों का पालन नहीं करते वे शायद इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि यही उनको सही लगता है.