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उत्तर प्रदेश चुनाव 2022: योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर से लड़ना, क्या है बीजेपी की रणनीति और चुनौती

गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है. मगर वहाँ के सांसद रहे योगी पहली बार वहाँ से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उतरे हैं.

By BBC News हिन्दी
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को गोरखपुर शहर सीट से अपना पर्चा दाखिल कर रहे हैं. उनकी उम्मीदवारी की वजह से गोरखपुर शहर की सीट यूपी चुनाव की सबसे हाई प्रोफ़ाइल सीट बन चुकी है. योगी आदित्यनाथ के नामांकन में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी मौजूद रहेगा और ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के प्रदेश प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान भी नामांकन के लिए गोरखपुर पहुँच रहे हैं.

Yogi Adityanath will contest from Gorakhpur in UP

प्रोटोकॉल के अनुसार, योगी आदित्यनाथ, अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान गोरखपुर के महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज में एक जनसभा करेंगे जिसके बाद वो कलेक्टरेट के लिए रवाना होंगे.

गोरखपुर की 9 विधानसभा सीटों के लिए अलग-अलग रिटर्निंग ऑफिसर अधिकृत किये गए है. योगी कलेक्टरेट के कमरा नंबर चौबीस में अपना पर्चा दाखिल करेंगे और वहां मौजूद एडीएम राजेश कुमार सिंह पर्चे की जांच करेंगे.

वैसे तो योगी आदित्यनाथ 1998 से 2017 तक लगातार गोरखपुर के सांसद रहे हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव वो पहली बार लड़ रहे हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की अक्सर आलोचना होती है कि वो बैकडोर से यानी एमएलसी बन मुख्यमंत्री बनते हैं और चुनाव लड़ने से कतराते हैं.

लेकिन इस बार यह परंपरा टूटने जा रही है. मुख्यमंत्री पद के दो बड़े दावेदार योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव गोरखपुर शहर और करहल सीटों से मैदान में हैं जो उनकी अपनी-अपनी पार्टियों का गढ़ मानी जाती हैं.

गोरखपुर की संसदीय सीट योगी आदित्यनाथ अपने बल बूते जीतते रहे हैं और उसी से उन्होंने अपनी राजनीतिक शख़्सियत बनाई है. अब विधायक का चुनाव सांसद के चुनाव से छोटा भले दिखता हो लेकिन इसके ज़रिये गोरखपुर के गढ़ को सम्मानजनक तरीके से बचाए रखना शायद भाजपा के लिए इस चुनाव की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.

योगी के बारे में क्या बोले गोरखपुर शहर के मौजूदा भाजपा विधायक?

गोरखपुर शहर से मौजूदा भाजपा विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल की सीट से जब से सीएम योगी को टिकट देने का एलान हुआ तब से अग्रवाल खुल कर सामने नहीं आये थे. लेकिन गुरूवार रात को गोरखपुर क्लब में योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में पार्टी के पदाधिकारी सम्मेलन में उन्होंने अपने संबोधन में योगी का समर्थन किया. उन्होंने कहा, "मैंने 15 जनवरी को ही बयान दिया था कि मैं भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता हूँ और भाजपा के निर्णय का स्वागत करता हूँ. किस प्रकार का कन्फ्यूज़न था? एक बार मैंने अगर कह दिया कि मैं करता हूँ और करूंगा, तो इसके बाद शंका और संशय की जगह क्या रह जाती थी. माननीय मुख्यमंत्री जी, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, आपको चुनाव प्रचार के लिए यहाँ आने की ज़रुरत नहीं हैं. यह हम सबका अपमान होगा कि आप 402 सीटों को छोड़ करके एक दिन भी गोरखपुर में प्रचार करने के लिए आएं."

https://twitter.com/AgrawalRMD/status/1489275302920396807?s=20&t=kjunmzYpi2Kvk3vdrs3Z1w

गोरखपुर के लिए योगी कितने उपयोगी?

गोरखपुर को सीएम सिटी होने का फ़ायदा मिला है. सबसे बड़ी परियोजनाओं में 1000 करोड़ की लागत से बना एम्स अस्पताल और 8,600 करोड़ का गोरखपुर फ़र्टिलाइज़र प्लांट शामिल हैं. गोरखपुर की कनेक्टिविटी सुधारने के लिए 91 किमी लंबा गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का निर्माण, गोरखपुर से आजमगढ़ लिंक एक्सप्रेस-वे का निर्माण शुरू हुआ है.

गोरखपुर शहर में पर्यटन के नज़रिये से रामगढ़ताल के किनारे बसा तारामंडल इलाका है. गोरखपुर के पर्यटन हब, ताल को यूपी का पहला वेटलैंड घोषि‍त करने जैसे कदम उठाये गए हैं और उसे मुंबई के मरीन ड्राइव जैसा संवारने की कोशिश की गई है.

इसके अलावा 50 एकड़ में गारमेंट पार्क बनाया जा रहा है जिसमें आने वाले समय में 500 औद्योगिक इकाई स्थापित होने की उम्मीद है जिससे रोज़गार के अवसर बढ़ सकेंगे. सीएम योगी ने गोरखपुर को विश्व स्तरीय वॉटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स की सौगात देने के साथ ही 1,305 करोड़ रुपये की लागत वाली 114 विकास परियोजनाएं दी हैं.

क्या है गोरखपुर का जातीय समीकरण?

माना जाता है कि गोरखपुर में भाजपा का गेम बिगाड़ने का माद्दा एक ही राजनीतिक दल रखता है और वो है निषाद पार्टी.

योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर की संसदीय सीट पर जब उपचुनाव हुआ तो निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने सपा के टिकट पर भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ल को 22 हज़ार वोटों से हराया था. हालांकि, बाद में निषाद पार्टी ने भाजपा का दामन थाम लिया और प्रवीण निषाद 2019 में संत कबीर नगर से भाजपा के सांसद बने.

निषाद पार्टी की गोरखपुर में ताकत को भाजपा ने भी अहमियत दी और इस बार गोरखपुर की चौरी चौरा सीट से अपनी मौजूदा विधायक संगीता यादव का टिकट काट कर संजय निषाद के छोटे बेटे सरवन निषाद को टिकट दिया है.

गोरखपुर से लम्बे समय से पत्रकारिता करते आ रहे राशाद लारी का कहना है, "यहाँ सबसे बड़ा संगठित वोट बैंक निषाद समुदाय का है. माना जाता है कि गोरखपुर ज़िले में 3.5 लाख से ज़्यादा निषाद वोट हैं. तो यहाँ पर निषाद वोट सीधे तौर पर असर डालते हैं. गोरखपुर ज़िले में 6 फ़ीसदी अनुमानित ब्राह्मण वोट है. इसके अलावा मुस्लिम वोट भी 14 फ़ीसदी के आसपास है. बनिया और वैश्य समाज का भी काफ़ी हद तक वोट है जो सीधे तौर पर भाजपा का वोट माना जाता है."

2017 के विधानसभा में निषाद पार्टी के संस्थापक डॉ संजय निषाद खुद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े थे और उन्हें 44,000 से अधिक वोट हासिल हुआ था. उन्हें हराने वाले भाजपा के बिपिन सिंह को 73,686 वोट मिले थे. तो गोरखपुर में हारने के बाद भी संजय निषाद को मिले 44,000 वोटों से एक संगठित निषाद वोट की झलक मिलती है.

क्या ठाकुर बनाम ब्राह्मण पर घिरेंगे गोरखपुर में योगी?

हिंदुस्तान टाइम्स की लखनऊ की सीनियर रेज़िडेंट एडिटर सुनीता एरन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा कि "जब आप से यह कहा जाता है की आप राजपूतों की पॉलिटिक्स करते हैं तो क्या आपको दुख होता है?"

तो इसके जवाब में योगी ने कहा, "कोई दुःख नहीं होता है. क्षत्रिय जाति में पैदा होना क्या कोई अपराध थोड़े न है. इस देश की ऐसी जाति है जिसमें भगवान भी जन्म लिए हैं, और बार-बार जन्म लिए हैं. अपनी जाति पर स्वाभिमान हर व्यक्ति को होना चाहिए. लेकिन हाँ , प्रदेश में बिना भेदभाव के, बिना चेहरा देख करके, हर जाति, हर मत और हर मज़हब के लोगों के हितों के लिए हमारी सरकार ने काम किया है."

ब्राह्मण बनाम ठाकुर

उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चाओं में अक्सर ये बात उठती है कि भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण वोट बैंक के समर्थन के लिए ख़ास प्रयास कर रही है. मगर साथ ही समाजवादी पार्टी एक दूसरी कहानी बताना चाहती है. गोरखपुर के कद्दावर नेता और ब्राह्मण चेहरा हरिशंकर तिवारी का सपरिवार बसपा छोड़ सपा में शामिल होना गोरखपुर के राजनीति में एक बड़ा फेरबदल बताया गया.

https://twitter.com/samajwadiparty/status/1470004258749648898?s=21

हरिशंकर तिवारी के बेटे और चिल्लूपार विधान सभा सीट से विधायक विनय शंकर तिवारी ने एक और ब्राह्मण नेता और भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष दिवंगत उपेंद्र दत्त शुक्ला के परिवार को भी सपा से जोड़ने का काम किया है. उपेंद्र दत्त शुक्ल को योगी ने अपनी विरासत के तौर पर गोरखपुर लोक सभा सीट से 2017 उपचुनाव का उमीदवार बनाया था लेकिन उपेंद्र शुक्ल वो चुनाव सपा-निषाद पार्टी के गठबंधन से हार गए थे.

https://twitter.com/samajwadiparty/status/1484153876769304580?s=21

तो सवाल यह उठता है कि क्या विपक्ष गोरखपुर शहर में योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मणों से घेराबंदी कर सकता है?

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार हर्ष कुमार कहते हैं कि ब्राह्मण बनाम ठाकुर गोरखपुर और आस पास की राजनीति का एक पहलू रहा है, लेकिन उसमें शायद तख्ता पलट की ताक़त नहीं है.

वो कहते हैं, "यह इलाका बहुत लम्बे समय से ब्राह्मण बनाम ठाकु और उनकी राजनीति से जुड़ा रहा है. एक समय था कि हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही दोनों इन जातियों और उनसे जुड़ी राजनीति का नेतृत्व करते थे. पर वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्री बनाने के बाद यह कमज़ोर पड़ा और उसके बाद यह हिंदुत्व की राजनीति के बाद और कमज़ोर हुआ. यह चीज़ें धीरे धीरे धुंधली होती गर्ईं. यह ख़त्म हो चुकी हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता, पर वो निर्णायक तौर पर बहुत बदलाव लाने की स्थिति में नहीं है."

फिर भी समाजवादी पार्टी को इस जातीय वर्चस्व की खींचतान में एक मौका नज़र आ रहा है. सपा के गोरखपुर ज़िला अध्यक्ष अवधेश यादव कहते हैं कि ठाकुरवाद के आरोप ही पार्टी की गोरखपुर रणनीति तय करेगा.

अवधेश यादव कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ जी ने अपने आपको मठाधीश कम बताया है, क्षत्रिय होने पर गर्व ज़्यादा बताया है. तो कहीं ना कहीं वो जब हिंदू की बात करते थे तो दलित पिछड़े और ब्राह्मण समाज भी अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है. वो यह समझता था कि मंदिर में बैठ कर के योगी आदित्यनाथ पूरे हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने कहा है जी मुझे गर्व है कि मैं क्षत्रिय हूँ, तो यहाँ के जो बाक़ी हिंदू हैं, उन लोगों को तो सोचना पड़ा कि जिस महंत को हम जानते हैं वो सबके थे. तमाम ब्राह्मणों से हम लोग सम्पर्क कर रहे हैं, तो वो यही कह रहे हैं कि हम लोग तो सब उनको अपना मानते थे. वो कहते हैं कि हम लोग यह नहीं जानते थे कि महात्मा की भी कोई जाति होती है."

भाजपा को क्या है गोरखपुर से उमीदें ?

हर्ष कुमार के अनुसार योगी आदित्यनाथ और भाजपा दोनों के लिए गोरखपुर शहर सीट बहुत अहम है.

वे कहते हैं," गोरखपुर और बस्ती मंडल की जो 42 सीटें हैं, इनके परिणाम अक्सर सरकार का चेहरा तय करते हैं. और यह जब-जब यहाँ पर बसपा ने बढ़त हासिल की थी तो बसपा की सरकार बनी थी. जब यहाँ सपा को बढ़त मिली थी तो उनकी सरकार बनी थी और पिछले चुनाव में भाजपा ने इसका लाभ लिया था. इसलिए यह बहुत अहम है.

"योगी आदित्यनाथ इसलिए यहाँ एक बड़ा चेहरा हैं, और इन सब सीटों को प्रभावित करने की कूवत रखते हैं क्योंकि वो मंडल बनाम कमण्डल में जिस हिन्दुत्ववाद का मॉडल था, जो मंदिर का मॉडल था, जिसने उग्र मंडलवाद को भी एक हद तक नियंत्रित किया था, उसका चेहरा रहे थे. तो लगभग वही चीज़ दोहराने के लिए भाजपा को योगी के चेहरे की ज़रुरत पड़ती रही है और आगे भी पड़ेगी. हिंदुत्व एक ऐसी चीज़ है जो जातियों के विभाजन को धुंधला कर सकता है. और इसलिए यहाँ पर योगी आदित्यनाथ का चेहरा अहम हो जाता है."

2017 के चुनाव में भाजपा ने गोरखपुर की नौ में से आठ जीती थीं. सिर्फ़ चिल्लुपार की सीट बीएसपी के खाते में गयी थी जहाँ से विनय शंकर तिवारी बसपा के टिकट से जीते थे. लेकिन पत्रकार राशाद लारी कहते हैं कि, "इस बार नौ में से तीन सीटों पर थोड़ी नाराज़गी देखने को मिल रही है. ऐसा माना जा रहा था कि लोग अपने स्थानीय विधायक से खुश नहीं हैं. लेकिन अब यह माना जा रहा है की योगी जी के यहाँ चुनाव लड़ने से, इन अटकलों पर भी विराम लग गया है. अब माहौल सा बन गया है की योगी जी यहाँ से चुनाव लड़ रहे हैं तो और विकास होगा."

क्या करहल का बदला गोरखपुर में लेगी सपा ?

अखिलेश यादव के मैनपुरी के करहल से पर्चा भरने के चंद मिनटों बाद भाजपा मुलायम सिंह के पुराने क़रीबी रहे और भाजपा के केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतार दिया. उसके बाद चर्चा होने लगी की अखिलेश यादव भले ही करहल का चुनाव जीत जाएँ लेकिन भाजपा उन्हें उलझाने में और करहल में ज़्यादा मेहनत करने पर मजबूर कर देगी.

अखिलेश यादव के मैनपुरी के करहल से परचा भरने के चंद मिनटों बाद उन्होंने मुलायम सिंह के पुराने करीबी रहे और भाजपा के केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतार दिया.

उसके बाद चर्चा होने लगी की अखिलेश यादव भले ही करहल का चुनाव जीत जाएँ लेकिन भाजपा उन्हें उलझाने में और करहल में ज़्यादा मेहनत करने पर मजबूर कर देगी. तो करहल में भाजपा के सरप्राइज का जवाब सपा गोरखपुर में देने के कोशिश करेगी?

गोरखपुर में इस बात की काफी चर्चा है कि सपा, भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष दिवंगत उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव में उतार कर कर ब्राह्मण बनाम बनाम ठाकुर करने की कोशिश कर सकती है. उपेंद्र दत्त शुक्ला 2018 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाने के बाद गोरखपुर से लोक सभा का उपचुनाव लड़े और हार गए. हाल ही में पूरा शुक्ला परिवार सपा में शामिल हो गया है.

बीबीसी ने इस सम्भावना के बारे में उपेंद्र दत्त शुक्ला के बेटे अरविन्द शुक्ला से पुछा तो उन्होंने कहा कि वो सपा के सिपाही हैं और "हमारे नेता अखिलेश जी का जैसा आदेश होगा, हम उसका पालन करेंगे."

सपा दो तीन दिन में प्रत्याशी घोषित करने की बात कर रही है. फिलहाल योगी आदित्यनाथ को टक्कर देने के लिए मैदान में एक मात्र चेहरा भीम आर्मी प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी के प्रत्याशी चंद्रशेखर आज़ाद हैं.

आज़ाद योगी को चुनौती देते हुए कहते हैं, "जैसे गोरखपुर की जनता ने लोक सभा के उपचुनाव में इनको सबक सिखाया था, इस बार विधान सभा के चुनाव में भी गोरखपुर की जनता इनको सबक सिखाएगी, कि ना तो गोरखपुर की जनता गुलाम है, और ना ही मुख्यमंत्री यहाँ के तानाशाह हैं, हिटलर हैं, ना मालिक हैं. मैं लगातार यहाँ रहूँगा."

गोरखपुर शहर का चुनाव छठे चरण में 3 मार्च को है.

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English summary
Yogi Adityanath will contest from Gorakhpur in UP
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