West Bengal Election: 125 मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी फैक्टर कितना असरदार ?
नई दिल्ली। बिहार में पांच विधानसभा सीटें जीतने के बाद असदुद्दीन ओवैसी के अरमानों को पंख लग गये हैं। भारत के सबसे बड़े मुस्लिम नेता बनने की चाहत ने उन्हें अब पश्चिम बंगाल पहुंचा दिया है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में छह महीने से भी कम वक्त रह गया है। ओवैसी की चुनावी इंट्री से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खतरा महसूस होने लगा है। उन्हें डर हैं कि ओवैसी उनके मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा देंगे। अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी की राह मुश्किल हो जाएगी। इसलिए उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ममता ने आरोप लगाया कि भाजपा ने मुस्लिम वोट को बांटने के लिए ओवैसी को यहां खड़ा किया है और इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। दूसरी तरफ ओवैसी ने कहा, मुझे भाजपा का एजेंट कहने वाले लोगों का बिहार में क्या हाल हुआ, ये सबने देख लिया। मुस्लिम वोटरों को अपनी जागीर समझने वाले नेताओं को इससे सबक सीखना चाहिए।
125 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक
पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी करीब 28 फीसदी है। देश में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या 14 फीसदी है। यानी पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा राष्ट्रीय अनुपात की तुलना में दोगुना है। इससे समझा जा सकता है कि यहां के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर कितने महत्वपूर्ण हैं। यहां की 294 में से 125 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में इन 125 सीटों में से ममता बनर्जी को 90 पर जीत हासिल की थी। यानी अभी पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समुदाय का समर्थन तृणमूल कांग्रेस के साथ है। ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी इस वोट बैंक के कारण संभव हुई थी। बिहार चुनाव में ओवैसी ने जो पांच सीटें जीतीं वहां मुस्लिम वोटरों की आबादी करीब 60 फीसदी थी। मुस्लमानों ने राजद और कांग्रेस को छोड़ कर ओवेसी को अपना रहनुमा मान लिया। इस जीत पर ओवैसी ने कहा था, मुझे वोटकटवा कहने वाले लोगों को जवाब मिल गया। तो क्या पश्चिम बंगाल में ओवैसी उन सीटों पर असर दिखाएंगे जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या पचास फीसदी से अधिक है ?
खुद की ताकत बढ़ाने पर जोर
ओवैसी की कट्टर राजनीतिक शैली मुसलमानों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पश्चिम बंगाल की 125 मुस्लिम बहुल सीटों में से अगर 15-20 पर भी ओवैसी का जादू चल गया तो ममता बनर्जी के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। ये सही है कि ओवैसी के लड़ने से भाजपा को फायदा मिलेगा। ओवैसी के कारण बिहार चुनाव में एनडीए को सीमांचल, मिथिलांचल और कोशी इलाके में फायदा मिला था। लेकिन वे ये कीमत चुका कर भी अपनी पार्टी एआइएमआइएम का पूरे भारत में विस्तार करना चाहते हैं। वे हर कीमत पर खुद को एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटरों की बड़ी संख्या देख कर ही वे चुनावी मैदान में उतरे हैं। ओवैसी को फिलहाल अपनी चिंता है। उनका मानना है कि जब अधिकतर राज्यों में उनके विधायक हो जाएंगे तो वे खुद-ब-खुद गैरभाजपा राजनीति का केन्द्र बन जाएंगे।
मैं वोट काटने नहीं, जीतने आया हूं
क्या ओवैसी भाजपा के एजेंट हैं ? इस सवाल पर ओवैसी ने कहा, तो क्या मैं चुनाव लड़ना छोड़ दूं ? अधितर राज्यों में मुसलमानों का वोट लेकर जीतने वाली पार्टियां परेशान हैं कि एआइएमआइएम कहां से आ गयी ? उन्होंने मुसलमानों का भला नहीं किया इसलिए अब वे डर रहीं हैं। मुसलमान इनका साथ छोड़ रहे हैं तो वे मुझे निशाना बना रहे हैं। अगर मैं केवल वोट काटने के लिए चुनाव लड़ता को क्या मुसलमान मुझ पर भरोसा करते ? कुछ लोग मुझे खामखाह भाजपा का एजेंट बता कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। बिहार में मेरे साथ ऐसा हुआ। अब पश्चिम बंगाल में भी यही राजनीति हो रही है। कोई मुझे भाजपा की बी टीम कहता है तो कोई एजेंट कहता है। इस बात से खफा ओवैसी ने पिछले दिनों कहा था, मैं एक लैला हूं और मेरे हजार मजनूं हैं।
सभी 23 जिलों में ओवैसी का संगठन
पश्चिम बंगाल चुनाव के पहले ही असदुद्दीन ओवैसी ने ममता बनर्जी में ठन गयी है। नवम्बर में इस बात की चर्चा चली थी कि विधानसभा चुनाव के लिए ओवेसी और ममता बनर्जी में तालमेल हो सकती हैं। लेकिन फिर एआइएमआइएम ने खुद इन अटकलों को खारिज कर दिया था। उसने पूरी मजबूती से अकेले चुनाव लड़ने पर जोर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ही ओवैसी ने बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के लिए भी तैयारी शुरू कर दी थी। अब राज्य के सभी 23 जिलों में उनकी पार्टी का संगठन खड़ा हो गया है। पश्चिम बंगाल में एनआरसी और सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में उनकी पार्टी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। यहां बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला एक बड़ा मुद्दा रहा है। असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में बंगाल के सभी जिलों के नेताओं के साथ बैठक की है। यानी उनके ‘मिशन बंगाल' की तैयारी तेज हो गयी है।
राहुल
गांधी
ने
स्पीकर
ओम
बिरला
को
लिखा
पत्र,
बोले-संसदीय
समिति
में
नहीं
मिला
बोलने
का
मौका