सीएए पर चुप्पी क्यों साधे हैं दिल्ली के सीएम केजरीवाल, जानिए वजह
Know Why the CM of Delhi is Silent on the Opposition of The CAA, मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए सीएए के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियां है लेकिन विपक्ष में होने के बावजूद आम आदमी पार्टी दिल्ली चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। जानिए इसके पीछे की खास वजह?
बेंगलुरु। नागरिकता कानून (CAA) को लेकर देश भर में प्रदर्शन हो रहा है। पिछले एक महीने से दिल्ली में भी इसका जमकर विरोध हो रहा है। दिल्ली के कई इलाकों में प्रदर्शनकारी इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री शुरु से इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। केन्द्र सरकार द्वारा देश भर में सीएए लागू किए जाने के फैसले पर जहां भाजपा की सभी विपक्षी पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद है वहीं केजरीवाल दस मुद्दे पर खामोश है। संसद में नागरिकता कानून का केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने जमकर विरोध किया था लेकिन दिल्ली चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाने से गुरेज कर रही है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर सीएए के विरोध पर केजरीवाल की चुप्पी की आखिर वजह क्या हैं। आइए जानते हैं.....
बता दें देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों और सीएए को लेकर विपक्ष ने पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की थी। लेकिनआम आदमी पार्टी (AAP) ने भी बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था। आम आदमी पार्टी का कहना है कि उसे इस बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए वह शामिल नहीं होगी। लेकिन सच्चाई कुछ और थी।
इस नुकसान से बचना चाहते हैं केजरीवाल
गौरतलत है कि 2019 लोक सभा चुनाव में बीजेपी को दिल्ली में 56 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले मोदी की लहर में कांग्रेस 22 फीसदी और आप 18 फीसदी पर सिमट कर रह गई। इस चुनाव में बाद केजरीवाल को साफ हो चुका है कि अगर दिल्ली में अगर आप पार्टी की सरकार बनवानी है तो बीजेपी के उन वोटरों को लुभाना ही पड़ेगा जिन्होंने लोकसभा चुनाव में मोदी को चुना था। केजरीवाल को लग रहा हें कि दिल्ली चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे घुसाने से उनका नुकसान होगा। इसलिए वो दिल्ली के चुनाव को लोकल मुद्दों तक सीमित रखना चाहते हैं। सीएए के खिलाफ हो रही राजनीति से अपने आप को दूर बता कर वह जनता को पिछले कार्यकाल में दिल्ली में किए गए कार्यों का प्रचार करके जनता का दिल जीतना चाहते हैं। जनता को वह यह दिखाना चाहते हैं कि उन्हें सिर्फ दिल्ली के विकास और दिल्ली के लोगों की हितों की चिंता है!
वोटरों का मूड भांप चुके हैं केजरीवाल
मोदी सरकार द्वारा पिछले दिनों लिए गए ऐतिहासिक फैसलों के कारण दिल्ली के काफी वोटर केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का शासन ही चाहते हैं। इसमें ताज्जुब करने की बात नहीं है दिल्ली की राजनीति में ऐसा पहले भी हुआ है। 1998 में दिल्ली ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी को वोट दिया मगर कुछ महीनों बाद राज्य में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार बनाई। उसके अगले साल ही फिर से वाजपेयी का हाथ थाम लिया। यही 2014 में हुआ जब दिल्ली ने सभी सातों सीटें मोदी के प्रतिनित्व में भाजपा की झोली में डाल दी लेकिन फिर 2015 में केजरीवाल को 70 में से 67 सीटें देकर शानदार जीत दिलाई।
जानिए सर्वे के अनुसार जनता किसको कर रही पसंद
दिल्ली में पिछले दिनों करवाए गए एक सर्वे में दिल्ली में 69 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पसंद हैं मोदी और 67 फीसदी लोगों ने कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में वह केजरीवाल को देखना चाहते हैं। वहीं 2019 लोक सभा चुनाव के बाद सीएसडीएस ने एक सर्वे किया, उस समय एक चौथाई बीजेपी और कांग्रेस वोटर विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट देना चाहते थे! जो केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार चाहते हैं उन वोटरों के बारे में हम और क्या जानते हैं? इससे साफ है कि दिल्ली में एक बड़ा तबका है तो किसी पार्टी या विचारधारा की तरफ कोई खास झुकाव नहीं है! उसके लिए चुनाव में चेहरा इनके लिया काफी मायने रखता है। सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को लेकर इन्हें कोई खास सहानुभूति नहीं है। वह अपने हितों और सहूलियतों के बारे में सोचते हैं।
इस चक्कर में कहीं गवां न दे ये वोटर
इसलिए जनता का मूड भांप चुके केजरीवाल की आम आदमी पार्टी इस तबके से अपने लिए सबसे ज्यादा वोट हासिल करना चाहती है। सीएए का प्रोटेस्ट को लेकर केजरीवाल की चुप्पी साधने की ये ही खास वजह है।लेकिन अब यह सवाल ये उठता है कि भाजपा और मोदी के समर्थकों का दिल जीतने के चक्कर में कही केजरीवाल एंटी-मोदी या प्रो-कांग्रेस वोटों को गंवा न बैठे।
आप ने वोटरों को साधने के लिए चली है ये चाल
बता दें कांग्रेस मुस्लिम वोटरों के बीच सीएए के मुद्दे पर केजरीवाल के खिलाफ जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं। इस मुद्दे पर मुस्लिमों की खैयख्वाह बनकर दिल्ली चुनाव में उनके वोट बटोरना चाह रही है। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा में तीन सीटें ऐसी हैं जहां आम आदमी पार्टी ने ऐसे उम्मीदवारों को उतरा है जिन्होंने प्रोटेस्ट का समर्थन किया था। जिसमें ओखला में अमानतुल्लाह खां, सीलमपुर में अब्दुल रहमान और मटियामहल में शोएब इकबाल, जो हाल में कांग्रेस छोड़ कर आप में शामिल हुए हैं। ऐसे में चुनाव में सीएए पर खमोशी अपनाकर भाजपा के वोटरों को प्रसन्न करने की कोशिश कर रही वहीं इन तीनों सीटों पर सीएए का विरोध करने वाले नेताओं को मिली लोकप्रियता का फायदा आप को दिलाने की राजनीतिक चाल चल दी है।
ध्रुवीकरण का हिस्सा नहीं बनना चाहते केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल के सीएए का विरोध नहीं करने की वजह है कि वह किसी के भी पक्ष में खड़े होकर ध्रुवीकरण का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं, इस बार अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली चुनाव चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, जिसके चलते वह हर कदम फूक-फूक कर रख रहे हैं। चुनाव की तारीख का ऐलान होने के बाद सीएए के प्रोट्रेस्ट में शामिल न होना इसी का एक हिस्सा है।
जामिया और सीलमपुर नहीं भूले हैं केजरीवाल
कुछ समय पहले ही जामिया (Jamia) और फिर सीलमपुर में सीएए के विरोध-प्रदर्शन में आप विधायकों के विवादित बयान से आम आदमी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था। अरविंद केजरीवाल नहीं चाहते कि जल्दबाजी में कोई बयानबाजी हो जाए और बाद में उसकी वजह से पार्टी को चुनाव कोई नुकसान उठाना पड़े। इसलिए वह चुनाव प्रचार के दौरान भी कुछ ऐसा नहीं बोलते जिससे भाजपा को उनके खिलाफ कोई मुद्दा मिले। इसलिए उन्होंने पिछले दिनो जेएनयू हिंसा मामले से भी दूरी बनाए रखी।
बता दें केजरीवाल के जेएनयू न जाने पर कांग्रेस पहले ही केजरीवाल का एक पुराना ट्वीट निकाल कर उन पर हमले कर रही थी, जिसमें उन्होंने शीला दीक्षित के ऐसे ही मौके पर ना जाने पर कहा था कि दिल्ली को ऐसी सीएम नहीं चाहिए। अब कांग्रेस और लेफ्ट केजरीवाल से कह रहे हैं कि उन्हें ऐसा सीएम नहीं चाहिए। खैर, केजरीवाल को असली खतरा भाजपा से है, ना कि कांग्रेस और लेफ्ट से, इसलिए वह अपनी राजनीतिक सूझबूझ के तहत आगे बढ़ना चाहते हैं।
इसे भी पढ़े- दया याचिका दाखिल करने वाले निर्भया के हत्यारें मुकेश ने निर्भया को लेकर दिया था ये बेशर्मी भरा बयान
CAA के खिलाफ शाहीन बाग धरने को लेकर वायरल वीडियो में दावा, 500 रुपए लेकर धरने में आ रही हैं महिलाएं