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राजेश खन्ना नहीं, इस हीरो को 'आनंद' बनाना चाहते थे ऋषिकेश मुखर्जी

1971 में आई 'आनंद' फिल्म में राजेश खन्ना ने जहाँ अपने अभिनय की एक नई बुलंदी को छुआ, वहीं अमिताभ बच्चन के करियर में भी ये फ़िल्म एक मील का पत्थर साबित हुई. 'पिक्चर अभी बाकी है' की 7वीं कड़ी में रेहान फ़ज़ल बता रहे हैं इस फिल्म के बनने की कहानी.

By BBC News हिन्दी
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अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना
NN Sippi
अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना

1 जनवरी, 1971 के शुक्रवार के दिन मुंबई (तब बंबई) के एक कॉलेज में बहुत कम छात्र पहुँचे थे. स्टाफ़ रूम में मौजूद अध्यापकों की समझ में नहीं आया कि माज़रा क्या है. इस दिन न तो कोई राष्ट्रीय छुट्टी थी और न ही कोई त्योहार. सारे छात्र आख़िर थे कहाँ?

कमरे में चाय लेकर दाख़िल हुए एक कैन्टीन ब्वॉय ने सारा राज़ उगला था. उस दिन राजेश खन्ना की फ़िल्म 'आनंद' रिलीज़ हुई थी और सभी छात्र वो फ़िल्म देखने गए थे.

ये सिर्फ़ एक कॉलेज की कहानी नहीं थी. उस दिन बंबई के कई कालेजों के छात्रों ख़ासकर लड़कियों ने अपने क्लास बंक कर अपने पसंदीदा स्टार की फ़िल्म 'आनंद' देखी थी.

उनके साथ कुर्ता और आँखों में धूप का चश्मा लगाए लड़के भी इस उम्मीद में फ़िल्म देखने पहुंचे थे कि शायद राजेश खन्ना की दीवानी लड़कियों में किसी एक की नज़र उन पर भी पड़ जाए.

फ़िल्म के निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने कहानी में हँसी और आँसुओं के इमोशंस को इस अंदाज़ में बुना था कि फ़िल्म देख कर हॉल से बाहर निकलने वाले हर शख़्स की आँखें भीगी हुई थीं.

यासिर उस्मान राजेश खन्ना की जीवनी 'राजेश खन्ना - द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ इंडियाज़ फ़र्स्ट सुपरस्टार' में लिखते हैं, 'राजेश खन्ना ने आनंद सहगल के चरित्र में जान फूँक दी थी. दर्शक उस चरित्र से पूरी तरह प्रभावित होकर फ़िल्म का डायलॉग बोलते हुए हॉल से बाहर निकले थे, 'ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए बाबू मोशाय, लंबी नहीं.''

राजेश खन्ना का जानदार अभिनय

आनंद के निर्माता थे एन एन सिप्पी. आनंद की कहानी एक ज़िंदादिल इंसान के इर्दगिर्द घूमती है जिसे कैंसर की बीमारी है. वो अपना इलाज कराने दिल्ली से बंबई आता है जहाँ उसकी मुलाक़ात डॉक्टर कुलकर्णी (रमेश देव) से होती है. आखिरी चरण में कैंसर होने के बावजूद आनंद मौत का ज़िक्र आने पर भी हमेशा हँसता रहता है और उसका मज़ाक उड़ाता है. लाचार होकर बिस्तर पर लेटने के बजाए आनंद दूसरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने और उन्हें ख़ुशियाँ देने के प्रयास में लगा रहता है.

भावनाओं का जो चित्रण राजेश खन्ना ने 'ख़ामोशी' और 'सफ़र' फ़िल्मों में खींचा था वो अपने चरम पर 'आनंद' में पहुंचा था.

फ़िल्म की एक अभिनेत्री सीमा देव ने फिल्म के एक दृश्य को याद करते हुए बताया था, "फ़िल्म में मेरी शादी की सालगिरह का एक दृश्य था. राजेश खन्ना मुझे आशीर्वाद देने आते हैं और कहते हैं, 'मैं तुझे क्या आशीर्वाद दूँ बहन. ये भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उमर तुझे लग जाए.' राजेश खन्ना ने ये शॉट इतने अच्छे ढंग से दिया था कि शॉट ख़त्म होते ही मैं बाहर जाकर रोने लगी थी."

आनंद फ़िल्म का पोस्टर
NN Sippi
आनंद फ़िल्म का पोस्टर

ऋषिकेश मुखर्जी ने बंबई और राज कपूर को समर्पित की थी फिल्म

ऋषिकेश मुखर्जी ने आनंद का ऐसा चरित्र गढ़ा कि वो हिंदी सिनेमा प्रेमियों के दिल में हमेशा के लिए अंकित हो गया. ये फ़िल्म उन्होंने बंबई शहर को समर्पित की.

हालांकि, ये फ़िल्म उन्होंने राज कपूर के सम्मान में बनाई थी. उनसे ऋषिकेश मुखर्जी की गहरी दोस्ती थी. कोई ऐसा दिन नहीं जाता था जब वो एक दूसरे से न मिलते हों. उन्होंने सिर्फ़ एक ही फ़िल्म 'नौकरी' में साथ काम किया जो बहुत अधिक चली नहीं.

गौतम चिंतामणि अपनी किताब 'राजेश खन्ना - डार्क स्टार' में लिखते हैं, "राजकपूर और ऋषिकेश मुखर्जी में बहुत पुरानी दोस्ती थी. 'एक बीमार शख़्स जो पूरी तरह अपनी ज़िंदगी जीता है' का विचार ऋषिकेश के मन में तब आया जब राज कपूर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. उस समय ऋषिकेश का मानना था कि शायद राज कपूर जीवित नहीं बचेंगे लेकिन आनंद के चरित्र के ठीक उलट वो मौत के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतने में सफल रहे थे.'

राजेश खन्ना द डार्क स्टार
Harper Collins
राजेश खन्ना द डार्क स्टार

पहले किशोर कुमार को हीरो बनाना चाहते थे ऋषिकेश

कहानी लिख लेने के बाद भी ऋषिकेश मुखर्जी लंबे समय तक उस पर फ़िल्म नहीं बना पाए. वजह थी कहानी में रोमांस नहीं था, इसलिए वितरक इस फ़िल्म के प्रति बहुत उत्साहित नहीं थे.

पहले तय हुआ कि आनंद की भूमिका किशोर कुमार करेंगे. मगर बात बनी नहीं. अफ़वाह थी कि किशोर कुमार से उनकी कुछ ग़लतफ़हमी हो गई थी. इसके बाद शशि कपूर को इस रोल के लिए सोचा गया लेकिन उनके पास तारीख़ें नहीं थीं.

ऋषिकेश मुखर्जी ने एक इंटरव्यू में बताया था, "मैं चुपचाप बैठा था. एक दिन राजेश खन्ना आ गए. आकर बोले, 'ऋषि दा सुना है, आप एक ज़ोरदार कहानी पर फ़िल्म बना रहे हैं. मैं ज़रा सुनना चाहता हूँ.' मैंने राजेश से कहा, 'कहानी तो मैं किसी को सुनाता नहीं. मगर तुम्हें एक शर्त पर सुना सकता हूँ. तुम्हें एक साथ अपनी तारीख़ें देनी पड़ेंगीं. राजेश ने कहा कहानी पसंद आएगी तो कोई भी शर्त मान लूँगा.' मैंने राजेश को कहानी सुना दी. वो तुरंत तैयार हो गया."

राजेश खन्ना ने इस फ़िल्म में अपनी फ़ीस के तौर पर बंबई क्षेत्र में 'आनंद' के डिस्ट्रीब्यूशन राइट्स ले लिए. नतीजा ये हुआ कि उन्हें इससे अपनी फ़ीस से कहीं ज़्यादा पैसे मिले.

पिछले दिनों एक इंटरव्यू में धर्मेंद्र ने कहा कि वो ऋषिकेश मुखर्जी से बहुत नाराज़ हो गए जब उन्हें ये पता चला कि ये रोल उन्हें न देकर राजेश खन्ना को दे दिया गया.

उन्होंने शराब पी और पूरी रात ऋषिकेश को फ़ोन कर कर के सोने नहीं दिया. बाद में ऋषिकेश मुखर्जी ने इसकी भरपाई 'गुड्डी' और 'चुपके चुपके' में धर्मेंद्र को रोल देकर की.

राजेश खन्ना
Harper Collins
राजेश खन्ना

बाबू मोशाय के रोल के लिए अमिताभ बच्चन चुने गए

अब डॉक्टर पात्र के लिए एक उपयुक्त कलाकार की तलाश थी. ख़्वाजा अहमद अब्बास साहब मुखर्जी के घर इस किरदार को निभाने वाले अभिनेता को उपहार में दे गए.

अमिताभ बच्चन की जीवनी लिखने वाले सौम्य बंद्योपाध्याय ने एक बार ऋषिकेश मुखर्जी से पूछा था, "क्या पहली बार देखते ही अमिताभ बच्चन को उस रोल के लिए आपने पसंद कर लिया था?"

ऋषिकेश मुखर्जी का जवाब था, "ऐसी बात नहीं थी. पर लगा कि वो इस रोल के लिए उपयुक्त रहेगा. मैंने मुँह से कुछ नहीं कहा. उससे बाद में आने के लिए कहा. मैंने 'सात हिंदुस्तानी' भी देखी. लेकिन ऐसा कुछ ख़ास लगा नहीं. मगर मिलते जुलते धीरे धीरे वो मुझे अच्छा लगने लगा. मुझे इसका अहसास होने लगा कि जैसे बाबू मोशाय के अंतर्मुखी चरित्र के लिए ही वो पैदा हुआ है."

राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन
HARPER COLLINS
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन

दिलचस्प बात ये थी कि बाबू मोशाय शब्द वास्तविक ज़िंदगी से लिया गया था. राज कपूर अपने दोस्त ऋषिकेश मुखर्जी को अक्सर इसी नाम से पुकारते थे.

आनंद के दिनों से ही ऋषिकेश अमिताभ बच्चन को 'महाराज' कहने लगे थे. कवि हरिवंशराय बच्चन के बेटे अमिताभ का शुरुआती नाम अमिताभ श्रीवास्तव था.

जब उन्होंने कलकत्ता में अपनी नौकरी छोड़ी थी तो उन्होंने अपने पिता का सरनेम बच्चन अपने नाम के आगे लगा दिया था.

शुरू शुरू में उन्होंने मृणाल सेन की फ़िल्म 'भुवन शोम' में नैरेशन का काम किया था.

इसके बाद ख़्वाजा अहमद अब्बास ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'सात हिंदुस्तानी' में एक रोल दिया था. इस फ़िल्म से उन्हें नई प्रतिभा का राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिला लेकिन फ़िल्म को दर्शकों ने पसंद नहीं किया.

राजेश खन्ना
Harper Collins
राजेश खन्ना

महमूद की अमिताभ बच्चन को सलाह

ये वो ज़माना था जब राजेश खन्ना अपने साथ पर्दे पर आए हर शख़्स पर छा गए थे, लेकिन दो फ़िल्म पुराने अमिताभ बच्चन ने भी सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा था. उन्होंने भास्कर बनर्जी का रोल किया था जिसे बीमार आनंद प्यार से 'बाबू मोशाय' कहते थे. 'आनंद' का क्लाइमेक्स राजेश खन्ना के जीवन का सबसे बड़ा क्षण था. आनंद अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहा है.

डाक्टर बनर्जी कुछ होम्योपैथिक दवाएं ख़रीदने बाहर आता है. जब वो दवा लेकर लौटता है तो आनंद इस दुनिया से जा चुका होता है. वो मृत शरीर पर चिल्लाता है, "बातें करो मुझसे."

तभी टेप रिकॉर्डर पर आनंद की आवाज़ गूँजती है, "बाबू मोशाय, ज़िंदगी और मौत तो ईश्वर के हाथों में है. हम लोग तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं." जैसे ही ये सीन ख़त्म होता है पर्दे पर मोशाय और हॉल में दर्शकों की आँखें भर आती हैं.

अमिताभ बच्चन अपनी बैरीटोन आवाज़ में कहते हैं, 'आनंद मरा नहीं... आनंद मरते नहीं.'

इस फ़िल्म के यादगार डायलॉग गुलज़ार ने लिखे थे. इस सीन की शूटिंग को याद करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा था, "मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं आख़िरी सीन किस तरह करूँ? मैंने महमूद भाई की मदद माँगी जिनके घर में मैं उन दिनों रह रहा था. मुझे अभी तक याद है, उन्होंने कहा था, 'बस ये समझो कि राजेश खन्ना वास्तव में मर गया है.''

अमिताभ बच्चन की 1971 में रिलीज़ हुई फ़िल्म आनंद का एक दृश्य, फ़िल्म हेरीटेज फ़ाउंडेशन ने आनंद की प्रिंट को भी संरक्षित किया है
FILM HERITAGE FOUNDATION
अमिताभ बच्चन की 1971 में रिलीज़ हुई फ़िल्म आनंद का एक दृश्य, फ़िल्म हेरीटेज फ़ाउंडेशन ने आनंद की प्रिंट को भी संरक्षित किया है

राजेश खन्ना की 'मौत' पर अमिताभ का गुस्सा

सौम्य बंधोपाध्याय अमिताभ बच्चन की जीवनी में लिखते हैं, 'राजेश खन्ना की मृत्यु का शॉट जिस दिन लिया जाना था, उसके कुछ दिन पहले ही अमिताभ ऋषिकेश से अपने संवादों के लिए ज़िद करने लगे. ऋषिकेश उन्हें समझाते, 'तुम इतना घबरा क्यों रहे हो? तुम आ जाना. सब ठीक हो जाएगा.' मगर अमित फिर भी ज़िद पर अड़े रहे.

आख़िरकार, ऋषि दा को कहना पड़ा, 'दरअसल होता क्या है, कलाकार ज़्यादा तैयार होकर आता है तो निर्देशक को असुविधा होती है. तुम अगर कोई ग़लती करोगे तो उसे ठीक करने में ज़्यादा दिक्कत आएगी. बहरहाल सीन से पहले अमिताभ ने रिहर्सल किया. ऋषि दा को वो पसंद नहीं आया.

उन्होंने अमिताभ से कहा, "मुझे ऐसा नहीं चाहिए. मृत राजेश से लिपट कर रोने से बात नहीं बनेगी. तुम नाराज़ हो जाओ. तुम गुस्से में जो कहना चाहते हो, कहो कि इतने दिनों बकबक करके तुमने मेरा दिमाग चाटा है.' निर्देशक के कहने पर अमिताभ ने उस दृश्य में गुस्से का ही अभिनय किया था."

राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ ऋषिकेश मुखर्जी
TWITTER/@INDIANHISTORYPICS
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ ऋषिकेश मुखर्जी

राजेश खन्ना को 'लंबू' के साथ काम न करने की सलाह

जब 'आनंद' रिलीज़ हुई तो राजेश खन्ना इस फ़िल्म के बारे में बहुत उत्साहित थे. वो पूरी मीडिया को ये फ़िल्म दिखाना चाहते थे. इसके लिए विक्टोरिया टर्मिनस के पास 'एक्सलसियर' थियेटर में फ़िल्म का एक ख़ास शो रखा गया.

जैसे ही फ़िल्म समाप्त हुई मशहूर पत्रकार देवयानी चौबल ने सुधीर गाडगिल के पास आकर उनसे खाना छोड़कर बाहर खड़ी कार के पास आने के लिए कहा. जब सुधीर नीचे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ राजेश खन्ना की कार खड़ी हुई थी. थोड़ी देर बाद देवयानी राजेश खन्ना के साथ वहाँ आईं.

देबयानी चौबल
Pradeep Chandra
देबयानी चौबल

यासिर उस्मान लिखते हैं, "कार के अंदर बैठते ही राजेश खन्ना ने देवयानी से पूछा, क्या तुम्हें फ़िल्म अच्छी लगी? देवयानी ने कुछ क्षण उनकी तरफ़ देख कर कहा, 'उस लंबू के साथ कभी दोबारा काम मत करना. वो तेरी छुट्टी कर देगा.' साफ़ था लंबू से उनकी मुराद अमिताभ बच्चन थी. राजेश खन्ना ये सुन थोड़े आश्चर्यचकित हुए. फिर उन्होंने देवयानी से पूछा, क्या हुआ, उस लंबू में ऐसा क्या है? इस पर देवयानी बोलीं, 'तुमने उसकी आँखें देखीं? तुमने उसकी आवाज़ सुनी? मैं तुमसे कह रही हूँ तुम उसके साथ कभी काम मत करना.'

राजेश ने ठहाका लगाया और ज़ाहिर है उन्होंने देवयानी की बात को गंभीरता ने नहीं लिया.' वैसे भी आनंद से पहले राजेश की नज़र में अमिताभ बच्चन का महत्व इतना नगण्य था कि उन्होंने निर्देशक मुखर्जी से उसका नाम पूछने की ज़हमत भी गवारा नहीं की."

राजेश खन्ना पर आधारित किताब
Penguin
राजेश खन्ना पर आधारित किताब

फ़िल्मफ़ेयर के अलावा राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला 'आनंद' को

आनंद फ़िल्म का हर गाना क्लासिक माना जाता है. सबसे ज़रूरी बात ये थी कि इस फ़िल्म को कोई गाना किशोर कुमार ने नहीं गाया था.

उस समय तक राजेश खन्ना के लगभग सभी गाने किशोर कुमार गाने लगे थे. संगीतकार सलिल चौधरी की राय थी कि आनंद के चरित्र को देखते हुए मुकेश की आवाज़ उनपर ज़्यादा फबेगी.

उनका विश्वास सही साबित हुआ और मुकेश ने 'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने' और 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए' गाकर इन गानों में जान फूंक दी.

मुकेश
BBC
मुकेश

मन्ना डे ने एक एक गीत 'ज़िदगी कैसी है पहेली' गाकर लोगों का दिल जीत लिया. उस साल फ़िल्मफ़ेयर के अधिकतर पुरस्कार 'आनंद' को मिले.

राजेश खन्ना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का पुरस्कार मिला. इसके अलावा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार भी 'आनंद' के ही हिस्से आया.

सर्वश्रेष्ठ कहानी और संपादन का पुरस्कार ऋषिकेश मुखर्जी को मिला. उस साल 'आनंद' को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.

ऋषिकेश मुखर्जी
Harper Collins
ऋषिकेश मुखर्जी

'मिडिल सिनेमा' की नुमाइंदगी

'आनंद' फ़िल्म सिर्फ़ एक महीने के अंदर शूट की गई थी, वो भी बहुत कम बजट में. लेकिन ये फ़िल्म इसमें काम करने वाले हर शख़्स के लिए मील का पत्थर साबित हुई.

वो साल की तीसरी सबसे अधिक पैसा कमाने वाली फ़िल्म साबित हुई.

राजेश खन्ना
Harper Collins
राजेश खन्ना

सत्तर के दशक में हिंदी सिनेमा में एक आंदोलन चला था जिसे 'मिडिल सिनेमा' का नाम दिया गया था. ये सिनेमा मुख्य धारा सिनेमा और समानांतर सिनेमा के बीच का सिनेमा था.

ऋषिकेश मुखर्जी इस शैली के सबसे बड़े पैरोकार थे जो अपनी फ़िल्मों में मनोरंजन के साथ साथ उस समय के सामाजिक मुद्दों को उठाया करते थे.

आनंद इस तरह की फ़िल्मों की नुमाइंदगी करने वाली फ़िल्म थी.आनंद की कहानी को सबसे बड़ा उस फ़िल्म के एक डायलॉग के ज़रिए दिया जा सकता है - दुख अपने लिए रख, सुख सबके लिए.

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English summary
Hrishikesh Mukherjee wanted to make this hero 'Anand'
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