कत्ल के पांच मामले और नाराज़ नौकरशाहों की चिट्ठी
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के 67 रिटायर्ड अधिकारियों ने एक खुला पत्र सरकार के नाम लिखा है.
विभिन्न सेवाओं में काम कर चुके और अलग—अलग बैच के सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने देश में घर हिंसा और अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव को लेकर सरकार के नाम एक खुला पत्र लिखा है.
इस पत्र का पूरा अनुवाद हम यहां दे रहे हैं.
हम, अलग-अलग सेवाओं और बैच के सेवानिवृत्त नौकरशाह देश में हो रही हिंसा की निरंतर घटनाओं, ख़ासकर जिनमें अल्पसंख्यक निशाने पर हैं, और इन हमलों को लेकर कानून लागू करवाने वाले तंत्र के ढीले रवैये को लेकर गहरी चिंता दर्ज कराना चाहते हैं.
बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की 25वीं बरसी पर राजस्थान के राजसमंद में पश्चिम बंगाल के एक कामगार मोहम्मद अफ़राज़ुल की हत्या ने हम सभी को अंदर तक हिला कर रख दिया.
इस जघन्य कृत्य का वीडियो बनाना और फिर इंटरनेट पर इस हत्या को सही ठहराने की कोशिश उस समावेशी और बहुलता भरे समाज की जड़ों को काटने के समान है, जिसे बुद्ध, महावीर, अशोक, अकबर, सिख गुरुओं, हिंदू संतों और गांधी की शिक्षाओं से प्रेरणा मिलती है.
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पहलू ख़ान और ज़फ़र ख़ान
पिछले नौ महीनों में, हमने 3 अप्रैल को पहलू ख़ान की मौत होते हुए देखी जिस पर 1 अप्रैल को अलवर में बेहरोर के पास कथित गौर रक्षकों ने की एक भीड़ ने हमला कर दिया था.
उसने जिन हत्यारों का नाम लिया था उन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. हालांकि, अन्य सात लोगों को गिरफ्तार किया गया था और बाद में उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया.
दूसरी हत्या ज़फ़र ख़ान की हुई थी जिसे 16 जून को स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर मार डाला गया.
प्रतापगढ़ में म्यूनिसिपल चेयरमैन और अन्य सफाई कर्मचारियों ने कथित तौर पर उसे मार डाला, जब वह प्रतापगढ़ को खुले में शौच मुक्त बनाने के अभियान के नाम पर लोगों को अपमानित किए जाने का विरोध कर रहा था.
इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई क्योंकि पुलिस दावा करती है कि ज़फ़र ख़ान की मौत हार्ट अटैक से हुई.
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'बिना किसी जांच के हत्याएं जारी'
जून 2017 में तीसरी हत्या हुई 16 साल के जुनैद खान की, जो दिल्ली में ईद की खरीदारी करने के बाद ट्रेन से वापस लौट रहा था और ट्रेन में उसका सीट को लेकर झगड़ा हो गया.
झगड़े में दुर्व्यवहार और अपमान करने के बाद उसे चाकू मार दिया गया और असोति स्टेशन पर ट्रेन से फेंक दिया गया, जहां उसकी मौत हो गई.
देश के अंदर और बाहर इस घटना को लेकर मचे हंगामे के बाद प्रधानमंत्री ने एक बयान में कहा था कि 'गोभक्ति के नाम पर लोगों को मारना' अस्वीकार्य है.
उन्होंने बीजेपी की अखिल भारतीय बैठक में 15 जुलाई 2017 को संसदीय सत्र शुरू होने से एक दिन पहले भी यह बात दोहराई, जहां उन्होंने राज्य सरकारों को इन मामलों में कठोर कार्रवाई करने पर जिम्मेदारी सौंपी. हालांकि, बिना किसी जांच के हत्याएं जारी रहीं.
चौथी हत्या 27 अगस्त, 2017 को हुई, जब 19 साल के अनवर हुसैन और हफिजुल शेख पश्चिम बंगाल के धुपगुड़ी से खरीदे गए मवेशियों को कूच बिहार में तूफ़ानगंज ले जा रहे थे. वो रास्ता भूल गए तो तड़के सुबह उनका सामना एक भीड़ से हुआ.
भीड़ ने 50,000 रुपये मांगे और जब वे दे नहीं सके तो उन्हें पीट-पीट कर मार दिया गया. इस हत्या के लिए तीन लोगों को गिरफ्तार तो किया गया लेकिन भीड़ में और कौन शामिल था, इसका अब तक पता नहीं चला है.
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हिंसा की भाषा
पांचवी हत्या 10 नवंबर, 2017 को हुई, जब गाय ले जा रहे उमैर खान और उसके दोस्तों को कथित गो रक्षकों ने अलवर जिले की गोविंदगढ़ तहसील में गोली मार दी थी.
उमैर खान को मारकर सबूत मिटाने के लिए उनकी लाश को रेलवे ट्रैक पर ले जाया गया. सात में से केवल दो हत्यारे गिरफ्तार किए गए. हालांकि, पीड़ितों में से दो ताहिर और जावेद को भी जेल में रखा गया.
25 दिसंबर के इंडियन एक्सप्रेस में राजस्थान के रामगढ़ से बीजेपी एमएलए ज्ञान देव आहूजा के बयान का ज़िक्र किया गया था. इस बयान में उन्होंने कहा था कि 'अगर कोई गाय की तस्करी या हत्या में शामिल है तो उसे मार दिया जाएगा.'
इस तरह की भाषा हिंसा को खुला उकसावा देना है, जो धीरे-धीरे देश में ज़हर घोल रहे हैं और इसके उदाहरण ऊपर दिए गए हैं.
ऐसे शब्दों और कार्यों के लिए सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है और यह न्यायिक व्यवस्था के मुंह एक तमाचे की तरह हैं. कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति असहाय लोगों पर टूट पड़ी है जिसके बहुत भयंकर परिणाम दिख रहे हैं.
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नाराज़गी का कारण
हत्याओं के अलावा, मुसलमानों को संपत्तियों की बिक्री के संगठित प्रतिरोध या उन्हें किराये पर न रखने के जरिए उन्हें सीमित करने की प्रक्रिया में तेजी को देखकर हम बेहद चिंताजनक हैं.
मीडिया में हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें मेरठ के मालीवारा इलाके में घर खरीदने के बावजूद एक मुसलमान को घर में आने नहीं दिया गया.
मुस्लिम इस तरह और अन्य तरीकों से जो रोज अपमान झेल रहे हैं वो इस धार्मिक समुदाय में नाराजगी का कारण बनेगा जो पहले से खराब माहौल को और बिगाड़ देगा.
कट्टरवादी हिंदू समूहों का 'लव जेहाद' अभियान भी बहुसंख्यक धर्म के कट्टरवादी तत्वों का नागरिकों के अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने के संवैधानिक अधिकार में दख़ल के प्रयासों का ही लक्षण है.
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क्रिसमस न मनाने की धमकी
कुछ सप्ताह पहले दिसंबर में हमने क्रिसमस पर्व के आसपास ईसाइयों पर बढ़ते हमले देखे.
15 दिसंबर को सतना में पुलिस ने क्रिसमस गीत गा रहे समूह को हिरासत में ले लिया.
पादरियों का एक समूह जब जांच करने गया तो उसे भी हिरासत में ले लिया गया.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हिंदू जागरण मंच ने ईसाई स्कूलों को क्रिसमस न मनाने की धमकी दे डाली.
राजस्थान में विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने कथित रूपस से एक क्रिसमस समारोह को धर्मपरिवर्तन का प्रयास बताकर रोक दिया.
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क़ानून का शासन
हम इन मुद्दों पर माननीय प्रधानमंत्री और उनकी सरकार से बिना किसी देरी के स्पष्ट प्रतिक्रिया चाहते हैं.
साथ ही देश के अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत से प्रेरित ऐसे अपराध करने वालों पर संबंधित प्रशासनिक संस्थाओं को तुरंत सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए.
हाल के दिनों की ये घटनाएं हमारे संवैधानिक मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं और ये एक नए सामान्य समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी क़ानून के शासन को कमज़ोर करती हैं.
हमारे देश में पहले से मौजूद क़ानून पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं बशर्ते उन्हें ज़रूरी इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता के साथ लागू किया जाए.
सांप्रदायिक वायरस जब समाज में व्यापक स्तर पर फैल गया है तब सिर्फ़ क़ानूनी सुरक्षा पर्याप्त नहीं है.
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किसी की हत्या करने में भीड़ क्यों नहीं डरती?
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विकास और प्रगति
हम से हर एक के लिए ये ज़रूरी है कि हम उन परिस्थितियों के परिणामों के बारे में गंभीरता से विचार करे आज चल रहे ट्रेंड से पैदा हो सकती हैं.
ये विकास और प्रगति के लिए ज़रूरी शांति और एकजुटता के लिए ख़तरा हो सकता है.
और हम सबके लिए, ख़ासकर जो बहुसंख्यक समुदाय से हैं, उन्हें सिर्फ़ विचार नहीं करना है बल्कि देश और समाज का जिस तरह से सांप्रदायीकरण हो रहा है उसके ख़िलाफ़ खड़ा होना है और सार्वजनिक रूप से इसकी आलोचना करनी है.