क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

सीएए-एनआरसी: मुसलमान धार्मिक पहचान को लेकर दुविधा में?

इसकी शुरुआत शशि थरूर के साथ हुई जब उन्होंने एक ट्वीट करके कहा कि "हमारी लड़ाई हिंदुत्व की अतिवादी शक्तियों से है, इस लड़ाई में हम इस्लाम की अतिवादी शक्तियों को बढ़ावा नहीं दे सकते." शशि थरूर ने यह बात जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कथित तौर पर लगे 'ला इलाहा इल लल्लाह' के नारे के बारे में कही थी. उनका कहना था कि धार्मिक अतिवाद 

By टीम बीबीसी हिंदी दिल्ली
Google Oneindia News
सीएए-एनआरसी
Getty Images
सीएए-एनआरसी

इसकी शुरुआत शशि थरूर के साथ हुई जब उन्होंने एक ट्वीट करके कहा कि "हमारी लड़ाई हिंदुत्व की अतिवादी शक्तियों से है, इस लड़ाई में हम इस्लाम की अतिवादी शक्तियों को बढ़ावा नहीं दे सकते."

शशि थरूर ने यह बात जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कथित तौर पर लगे 'ला इलाहा इल लल्लाह' के नारे के बारे में कही थी. उनका कहना था कि धार्मिक अतिवाद चाहे हिंदुओं का हो, या मुसलमानों का, उसका विरोध होना चाहिए.

उनकी इस बात पर अच्छी-ख़ासी प्रतिक्रिया हुई, सोशल मीडिया पर थरूर के समर्थन और विरोध दोनों में लोगों ने विचार व्यक्त किए.

यह बहस काफ़ी आगे बढ़ी जिसमें हिंदुओं और मुसलमान, दोनों प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे.

रविवार की शाम को जामिया मिल्लिया के प्रदर्शनकारियों के बीच जब शशि थरूर पहुँचे तो वहां उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ लेकिन कई लोगों ने उनका विरोध भी किया, ये विरोध उनकी पिछली टिप्पणी को लेकर था.

सोमवार सुबह शशि थरूर ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करने की मंशा के साथ एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि धार्मिक पहचान की राजनीति देश को तबाह कर देगी. उनका कहना है कि हिंदुत्व की सांप्रदायिकता का जवाब इस्लामी सांप्रदायिकता नहीं हो सकती, यह सिर्फ़ मुसलमानों की लड़ाई नहीं है बल्कि भारत की आत्मा को बचाने का संघर्ष है.

धार्मिक पहचान का पक्ष

तीन जनवरी को इरीना अकबर ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक ही था--'वाइ आइ प्रोटेस्ट एज़ ए मुस्लिम' यानी मैं मुसलमान के तौर पर विरोध प्रदर्शन क्यों कर रही हूँ.

इस लेख में उन्होंने शशि थरूर से असहमत होते हुए लिखा, "अगर मुसलमान अपने धार्मिक नारों के साथ अपनी धार्मिक पहचान पर ज़ोर दे रहे हैं तो इसकी वजह यही है कि वे मुसलमान होने की वजह से ही निशाने पर हैं. अगर सरकार मुसलमान होने की वजह से मुझे धमकाना चाहती है तो मैं सार्वजनिक तौर पर अपनी पहचान पर ज़ोर दूँगी."

सीएए-एनआरसी
Getty Images
सीएए-एनआरसी

उन्होंने यहूदी राजनीतिक विचारक हाना एरेंड्ट का हवाला दिया है, हाना को जान बचाने के लिए नाज़ी जर्मनी से भागना पड़ा था, हाना ने कहा था--"अगर किसी पर यहूदी होने की वजह से हमला होता है तो उसे अपना बचाव भी यहूदी की ही तरह करना होगा न कि जर्मन की तरह या सामान्य इंसान की तरह."

धार्मिक पहचान सही नहीं

इसी तरह इंडियन एक्सप्रेस में सोमवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छात्रा हयात फ़ातिमा का लेख छपा है जिसका शीर्षक है - नॉट जस्ट एज़ मुस्लिम यानी सिर्फ़ मुसलमान की तरह नहीं.

उनका कहना है कि ला इलाहा इल लल्लाह जैसे नारों से सीएए विरोधी प्रदर्शनों का दायरा सिमट जाता है.

उनकी दलील है कि "ला इलाहा इल लल्लाह और अल्लाह ओ अकबर जैसे नारे लगने चाहिए जब कि हमला धर्म पर हो रहा हो, यहाँ हमला नागरिकता पर हो रहा है. ऐसे नारों के लिए यह सही समय नहीं है".

हयात फ़ातिमा आगे लिखती हैं कि सीएए के विरोध में कहीं केवल मुसलमानों के प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं. उनका कहना है, "मैं पसंद नहीं करूँगी कि जय श्रीराम, जीसस सन ऑफ़ गॉड के नारे लगाए जाएं, भले ही मैं मुद्दे पर पूरी तरह उनके साथ हूँ, उसी तरह हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि उन्हें ला इलाहा इल लल्लाह का नारा पसंद आएगा, भले ही वे सीएए के ख़िलाफ़ हों."

शशि थरूर विवाद को शांत कराने की कोशिश में यही कह रहे हैं कि यह बहस ग़ैर-ज़रूरी है, लेकिन ऐसा लगता है कि धार्मिक पहचान बहस का बड़ा मुद्दा बन गया है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
CAA-NRC: Muslims in dilemma over religious identity?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X