मोदी हो या नीतीश सभी के सामने है कड़ी चुनौती
पटना( मुकुंद सिंह)। लोकसभा चुनाव में आम जुमला था कि देश के नरेन्द्र मोदी मजबूरी व बिहार के लिए नीतीश कुमार जरूरी। उसका असर लोकसभा की अपार बहुमत और अब बिहार विधानसभा की आपार बहुमत सामने है।
नीतीश कुमार: युवा लोकदल के अध्यक्ष से पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद तक
बिहार व उतरप्रदेश देश के दो प्रदेश है जहां के चुनाव से देश की दशा व दिशा तय होती है। बिहार का चुनाव हुआ अब उतर प्रदेश की बारी है। बिहार चुनाव के बाद जो जनादेश मिला उसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व बिहार के सीएम नीतीश कुमार दोनों के सामाने चुनौती है। नीतीश कुमार के सामने चुनौती होगी एक विपरीत विचारधारा वाले गठबंधन को लेकर चलने की। महागठबंधन में राजद व कांग्रेस एक साथ उनके पास आए है। राजद कल्चर में अफरशाही का कहीं वजूद नहीं था। राजशाही यानी शासक वर्ग हावी रहा। विधायक जो चाहे उसका चले।
मोदी हो या नीतीश सभी के सामने है कड़ी चुनौती
विधायक के मर्जी से जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक व थानेदार व प्रखंड विकास पदाधिकारी तक की पदस्थापना व बदली शामिल था। यह कल्चर पिछले दस साल से बाजार से गायब रही। दस साल में एक कल्चर यह हुआ कि भाजपा कल्चर यानी कि बॉस इज अलवेज राइट । भाजपा ने नीतीश कुमार को नेता चुना और जबतक साथ रहे किसी विधायक व सांसद की प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं रही। अगर कुछ रहा होगा तो अनरूनी तौर पर रही। इस प्रमाण पटना व इसके अासपास जिले में दिखा ।
हाल यह रहा कि वह सर्वमान्य नेता रहे। कई बार तो राजग की जनसभा में मंच पर भाजपा का झंडा तक नहीं लगता था लेकिन उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी से लेकर अन्य नेता दिखते रहे। इस कल्चर के साथ बिहार विकास की पटरी पर चला। स्पीडी टरायल सडक व पुल पुलिया निर्माण, अलग'अलग आयोग का गठन तक हआ। अब नयी पारी में राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर बिहार की विकास की गाडी को लेकर चलना है। यह चैलेंज है अगर यह चैंलेज नीतीश कुमार सफलता पूर्वक पास कर जाते है तो वह आने वाले दिन में पश्चिमच बंगाल के सीएम ज्योति बसू का इतिहास रिकार्ड तोडने में सफल होंगे।
पीएम नरेन्द्र मोदी के सामने होगी चुनौती ----- पीएम नरेन्द्र मोदी व भाजपा के नेशनल अध्यक्ष अमित शाह के सामने भी चुनौती। पीएम के सामने यह चुनौती है कि जनसभा व रैली में आने वाली भीड को वोट में बदलने का मेकनिजम। बिहार में बिना गठबंधन के पूरे सीट पर तैयारी व चुनाव लडने की तैयारी होनी चाहएि। इस बार के चुनाव में गठबंधन के साथी लोजपा के सुप्रीमो सांसद रामविलास पासवान या रालोसपा के सुप्रीमो सांसद उपेन्द्र कुशवाहां व हम के सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने जिस हिसाब से सीट लिया उसके हिसाब से वोट नहीं करवा पाये यानी मिली 85 सीट और जीते केवल पांच सीट। इस बार लोजपा ने 40 सीट, रालोसपा 23 और हम ने 25 सीट पर चुनाव लडी।
एनडीए के साथ 85 में केवल पांच सीट पर आकर टिका। नमो के लिए यह चैलेज होगा कि वह अपने दल के सहयोगी के हिस्सेदारी पर समीक्षा करे। अपने दल में बिहार में अभी से एक चेहरा पर सहमत होकर चुनाव लडे इससे कम से कम एक कौम तो बेस में होगा। भाजपा अध्यक्ष के पास संगठन में बयानबीर नेताओं को लगाम लगाने की जरूरत है। भाषण में संयम होना चाहिए। इस बार चुनाव में पिछडावाद, हिंदूवाद को जमीन तक ले जाने व उसके खिलाफ बनी एकजुटता को एनडीए के साथी कहीं न कहीं असफल रहे इसका परिणाम सामने है चुनावी जीत व उसके आए सीट।
अगर आने वाले दिन में नमो व नीतीश अपने चैलेंज को स्वीकार कर लेते है तो बिहार का भला होगा तथा जिस राह पर पीएम नमो व अमित शाह बिहार के विकास व संकट को ले जाना चाहते वह भी सामने होगा तथा यहां की जनता को बदलते बिहार के विकास का स्वाद मिलेगा। दानेां के सामने दो चुनौती और जनता तो जनता है उसको क्या वह तो मन बनाया था कि केन्द्र में नमो व बिहार में नीतीश वह दिखा।