'साइकिल' छोड़ प्रवीण निषाद ने थामा 'कमल' का साथ, दिलचस्प हुआ गोरखपुर का चुनावी समीकरण
Gorakhpur news, गोरखपुर। सपा-बसपा गठबंधन से नाता तोड़ निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। भाजपा नेता जेपी नड्डा ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाते हुए कहा कि राष्ट्रीय निषाद पार्टी एनडीए गठबंधन में हमारी सहयोगी बनी है। चर्चा है कि प्रवीण निषाद को भाजपा गोरखपुर सीट से मैदान में उतार सकती है। बहरहाल, सपा-बसपा के गठबंधन से नाता तोड़ बीजेपी का दामन थामना अब निषादों के लिए कितना शुभ होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि जहां निषादों को बीजेपी का साथ मिलने के बाद ताकत मिलेगी, वहीं बीजेपी की राह भी इनके आने से आसान हो जाएगी।
प्रवीण निषाद ने तोड़ा था 29 सालों का रिकॉर्ड
गोरखपुर यानी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़। ये माना जाता था कि गोरखपुर की राजनीती का दरवाजा मंदिर से हो कर ही गुजरता है। यही वजह थी कि 29 सालों से मंदिर के इर्द-गिर्द ही ये सीट घूमती रही, लेकिन पिछले उपचुनाव में 29 साल का रिकॉर्ड एक नौजवान प्रत्याशी इंजीनियर प्रवीण निषाद ने तोड़ दिया था। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में प्रवीण निषाद चुनाव जीतकर गोरखपुर सदर से सासंद बने।
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सपा-बसपा के गठबंधन से आया नया मोड़
इस बार चुनाव में फिर प्रवीण को सपा से टिकट मिलना था और इसको लेकर तैयार भी जोरों से चल रही थी, लेकिन बसपा-सपा का गठबंधन होते ही राजनीती में नया मोड़ आ गया। ये लग रहा था कि इस बार बीजेपी की राह और मुश्किल होने वाली है, लेकिन अचानक डॉ. संजय निषाद ने टिकट न मिलने और कहीं भी निषाद का नाम न होने के कारण गठबंधन से किनारा कर लिया।
प्रवीण के सपा छोड़ते ही राम भुवाल उम्मीदवार घोषित
सपा का अलग होते ही संजय और प्रवीण निषाद का बीजेपी से मेल जोल बढ़ना शुरू हो गया। ये सूचना मिलने ही कि अब निषाद पार्टी बीजेपी के साथ होगी, गोरखपुर के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई। समाजवादी पार्टी ने बिना देर किए गोरखपुर से राम भुवाल का नाम घोषित कर दिया। प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही राम भुआल ने बीजेपी, निषाद पार्टी और सीएम योगी आदित्यनाथ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने बीजेपी से 50 करोड़ रुपये लेकर सौदेबाजी की है।
निषादों को मिलेगी ताकत, भाजपा की राह आसान
बहरहाल, सपा-बसपा के गठबंधन से नाता तोड़ने के बाद बीजेपी का दामन थामना अब निषादों के लिए कितना शुभ होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि जहां निषादों को बीजेपी का साथ मिलने के बाद ताकत मिलेगी, वहीं बीजेपी की राह भी इनके आने से आसान हो जाएगी।