WHO की रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसने शर्मसार किया भारत को
आज भी गाँवों में घरों में शौच की सुविधा नहीं हो पायी है। इसका सबसे ज्यादा बुरा असर ग्रामीण महिलाओं पर पड़ता है। शौच के लिये खेतों में जाने को मजबूर ये महिलाएँ अत्यन्त परेशानियों का सामना करती हैं। घरों से दूर जाने के कारण ही कई महिलाएं और लड़कियां छेड़खानी और बलात्कार जैसे अपराधों का शिकार होती हैं। अखबारों में कई बार पढ़ने को मिलता है कि "शौच के लिये गई लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार" इत्यादि।
छेड़खानी, बलात्कार की वारदातों के बढ़ने का एक कारण यह भी
इससे कई तरह की बीमारियों का भी खतरा रहता है, शौच के बाद इस्तेमाल करने वाला पानी यदि स्वच्छ नहीँ, तो इससे डायरिया जैसी बीमारी के होने की सम्भावना रहती है। गाँवों में घरों में शौचालय न होने के कारण उन्हें रात-बिरात, मौसम-बेमौसम खुले में शौच जाना पड़ता है।
यूपी के गांव का हाल
अहमदपुर नाम के एक गाँव की बात करें तो ये माल ब्लॉक और मलिहाबाद तहसील का हिस्सा है। यहाँ से तहसील मुख्यालय 21 किलोमीटर दूर है। 825 की जनसंख्या वाले अहमदपुर में सरकारी शौचालय काफ़ी जर्जर हालत में है। यहाँ के 125 घरों में से केवल आठ ही ऐसे हैं, जिनमें शौचालय की व्यवस्था है। लेकिन सर्दी, गर्मी और बरसात में गाँव के बाक़ी मर्दों, औरतों और बच्चों को शौच के लिए खेतों और आम के बागों में ही जाना पड़ता था।
आंकड़ों की माने तो भारत के गाँवों में तीन में से एक में ही शौचालय का प्रबन्ध है। 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 2.466 करोड़ घरों में से सिर्फ़ 46 प्रतिशत घरों में शौचालय है, बाकी बचे 49 प्रतिशत घरों के लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं और शेष पब्लिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। भारत में मंदिरों से ज्यादा शौचालय की जरुरत है। लोगों के पास मोबाइल तो है पर घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है।
निर्मल भारत अभियान
गाँवों में शौचालय की हो रही समस्याओं को देखते सरकार ने "निर्मल भारत अभियान "नाम से एक योजना भी शुरु की है। गाँवों के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के लिये इस योजना की शुरुआत की गयी है। गाँव वालों को खुले में शौच न जाने के लिये प्रेरित करने के लिये सरकार ने 2003 में "निर्मल ग्राम पुरस्कार" नाम से एक पुरूस्कार वितरण की शुरुआत की थी।
ये पुरूस्कार उन ग्राम पंचायतों/जिला/क्षेत्रो को दिया जाता था, जो साफ़ सुथरे रहते हैं और जहाँ के लोग शौच के लिये खुले का प्रयोग नहीं करते हैं। सरकार गांवों में शौचालय निर्माण के लिये पैसा भी मुहैय्या कराती है, अब देखना ये है कि इन पैसों का इस्तेमाल गांव वालोँ की बेहतरी के लिये होता है या सरपंचों के जेबो में जाता है।
लेखक परिचय- शालू अवस्थी लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा हैं।