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क्या अपनी खोई हुई पहचान फिर पा सकेगा सर्कस?

By Konark Ratan
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3 घंटे का खेल। हवा में करतब दिखाते लोग। अपने यंत्रों पे उनका बैलेंस। लोगों का मनोरंजन करते ये कलाकार, यह नजारा होता है सर्कस का। एक समय था जब यह मनोरंजन का सबसे अहम साधन माना जाता था। लोग सर्कस लगने का इंतजार सालों साल करते थे, इसका टिकट खरीदने के लिए लंबी कतारें लगती थी तब जाकर टिकट नसीब होता था लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, इसका अस्तित्‍व खत्म सा होता गया।

आज के समय की आधुनिकता और भाग दौड़ भरी जिंदगी ऐसी है कि लोगों के पास अपने काम को छोड़कर मनोरंजन का समय ही नहीं है। हां जब समय मिलता है तो लोग कुछ समय के लिए अपने काम को छोड़कर मनोरंजन के लिए फिल्में देखते हैं या घूमने के लिए माल वगैहरा का रूख करते हैं इत्यादि लेकिन आज की पीढ़ी के छोटे बच्चे जो सिर्फ मूवीज या घूमने के लिए माल्स वगैहरा को पसंद करते हैं, उनके अभिभावकों को चाहिए कि उन्‍हें इस प्रकार के मनोरंजन की भी जानकारी दें।

आज जब कभी भी कहीं भी सर्कस लगता है तो उसमें बड़ी मुश्किल से दर्शकों की भीड़ होती है, सर्कस के कलाकारों की जिंदगी कैसी होती है यह किसी से छुपी नहीं है। वे जगह जगह अपने शोज करते हैं, पूरा दिन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन करने की कोशिश करते हैं लेकिन उनके प्रर्दशन करने के समय जो मुस्कान उनके चेहरे पर दिखार्इ देती है, उसके पीछे ना जाने कितना दर्द उन्होंने छुपा रखा होता है। जाने कितने दिनों से अपने घरों से दूर रहने के दर्द के बावजूद वे दर्शकों के चेहरों पे मुस्कान लाने और उनसे अपने लिए ताली बजवाने का हर संभव प्रयास करते हैं।

सर्कस से जुड़ी कुछ अहम बातें पढ़ें स्लाइडर में-

गजब का बैलेंस

गजब का बैलेंस

लड़कियों का एक पहिये की साइकिल चलाने पर बैलेंस हो या हाथी का लड़की को अपने सूंड़ पर बिठाना हो या रिंग मास्टर का शेर के साथ खेल हो या जाली के बीच में लड़के लड़कियों का एक तरफ से दूसरे तरफ जाना हो, यह सब आश्चर्यचकित होने पर मजबूर करता है लेकिन इतने जोखिम भरे करतब दिखाने में वे जरा भी नहीं हिचकते।

रोजी-रोटी का सवाल

रोजी-रोटी का सवाल

यही उनकी रोजी-रोटी है लेकिन जब वे यह सब हैरान करने वाले करतब दिखाते हैं तो हर बार इसी प्रार्थना के साथ सामने आते हैं कि इस बार उन्हें देखने के लिए जनता पहुंची हो लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि जैसी भीड़ का वे अनुमान लगाते हैं वह उन्हें बड़ी मुश्किल से मिलती है।

दादा-दादी की कहानियों में सर्कस

दादा-दादी की कहानियों में सर्कस

हमारे बाबा दादा जब अपने समय की कहानियां सुनाते हैं तब बताते हैं कि क्या ठसा-ठस भीड़ होती थी सर्कस को देखने के लिए। गांवो में तो लोग दूर-दूर से पैदल ही चले आते थे, लोगों में सर्कस देखने का एक गजब का उत्साह होता था लेकिन अब सब कुछ वीराना सा लगता है।

जमाना आगे निकल गया

जमाना आगे निकल गया

सूंड़ हिलाता हाथी मानो गुहार कर रहा होता है कि काश पहले के दिन वापस आ जाएं लेकिन उसे क्या मालूम कि आज जमाना कितना आगे निकल चुका है। उसे क्या मालूम कि अब उसके वजन और सूंड़ में वो बात नहीं रही कि वह दर्शकों को अपनी ओर खींच सके।

सर्कस के बुरे हाल

सर्कस के बुरे हाल

हालात चाहे जैसे हों लेकिन सर्कस मनोरंजन का एक अभिन्न हिस्सा है, मैं तो बड़ा उधेड़बुन में हूं कि इसका क्या हल है, इसलिए यह प्रश्न मैं अपने पाठकों के लिए छोड़ना चाहता हूं, वही फैसला करें कि इसका क्या उपाय है कि सर्कस को अपनी खोयी हुर्इ पहचान वापस मिल जाए।

English summary
There is a big sad story about Circus in India. Most of the circuses are ruined. Very few are existing because of lesser public interest.
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