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Cracks in Houses: जोशीमठ ही क्यों, इन शहरों में भी विकास परियोजनाओं के कारण लोग हो चुके बेघर

बड़े प्रोजेक्ट्स की वजह से देश के कई शहरों में जोशीमठ की तरह धंसाव और घरों में दरार आने का मामला समय-समय पर आता रहा है। इसके बावजूद सरकारों के पास न इसका कोई समाधान है और न ही कोई नीति।

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Joshimath Sinking people of these cities also have become homeless due to development projects

Cracks in Houses: ऐतिहासिक शहर जोशीमठ में जमीन धंसाव और घरों में पड़ी दरारों की वजह से प्रशासन सुरक्षित स्थानों पर 4,000 प्रीफ्रेबिकेटेड कमरे बनाने की तैयारियों में जुट गया है। जानकारी के मुताबिक पहाड़ों पर लगातार निर्माण कार्यों की वजह से जोशीमठ के 561 घरों में दरारें आ चुकी हैं। इसलिए प्रशासन ने एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग बाइपास के निर्माण पर रोक लगा दी हैं। इससे पहले प्रशासन ने एशिया के सबसे बड़े (जोशीमठ से औली) रोप-वे को बंद करा दिया था।

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यह आपदा अचानक से आई है। दरअसल साल 1976 में जोशीमठ में लगातार बन रहे घर और कंस्ट्रक्शन को लेकर मिश्रा कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में उस शिकायत का जिक्र था जो बढ़ती जनसंख्या के कारण भवन निर्माण से भूस्खलन और सड़क में दरार के बारे में लोगों ने की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ भूस्खलन क्षेत्र में है और यह शहर पहाड़ से टूटे टुकड़ों पर बसा हुआ है। यही वजह है इसकी नींव कमजोर है। इन जगहों का अध्ययन करने वाले देहरादून के वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का मानना है कि जोशीमठ का कुछ क्षेत्र हर साल 85 मिलीमीटर की गति से धंसता जा रहा है।

हालांकि, देश में कंस्ट्रक्शन को लेकर घरों में आने वाली दरारों का मामला कोई नया नहीं है। इससे पहले भी कई दूसरे शहरों में भी मेट्रो निर्माण, सीवर निर्माण, पानी की पाइपलाइन वगैरह के निर्माण के कारण घरों में दरारें आने के कई मामलें सामने आ चुके हैं। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए आखिर राज्य और केंद्र सरकार के पास क्या पॉलिसी होती है? कोई ऐसा आयोग है जो इसकी विशेष निगरानी करता हो?

केंद्र सरकार और राज्य सरकार की क्या है योजना?

दरअसल सच तो यह है कि ऐसे मामलों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के पास कोई खास पॉलिसी ही नहीं है। ऐसी घटनाओं के समय राज्य सरकारें अपने स्तर पर ही इसका निपटान करती है, हालांकि केंद्र उस पर नजर जरूर बनाए रखता है। जब मामला भूस्खलन से जुड़ा है तो आपदा प्रबंधन के फंड से ही उसमें मदद की जाती है। जैसा कि जोशीमठ के लोगों को वहां से निकालने और उनके लिए वैकल्पिक घर बनाने का काम आपदा प्रबंधन फंड से ही किया जा रहा है।

जोशीमठ के कई लोगों ने सुरक्षित स्थानों पर किराये के मकान लिए हैं जिसके लिए उत्तराखंड सरकार प्रति परिवार 4000 रुपये किराये के तौर पर दे रही है। आपदा प्रबंधन के लिए सरकार ने 11 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है। साथ ही एक करोड़ की धनराशि जिलाधिकारी चमोली को हस्तांतरित की गई है।

अलीगढ़ में पाइप लाइन के कारण घरों को हुआ नुकसान

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के कंवरीगंज इलाके में कुछ दिनों पहले घरों में अचानक दरारें आ गयी थी। लोगों के अनुसार सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी योजना के तहत पाइप लाइन बिछाई जा रही थी, जो अब कथित तौर पर लीक हो रही है, जिससे घरों में दरारें आ रही हैं। इस पर नगर निगम के अपर आयुक्त राकेश कुमार यादव ने कहा कि हमें सूचना मिली है कि कांवरीगंज क्षेत्र में कुछ मकानों में दरारें आ गई हैं। मामला अभी पूरी तरह से संज्ञान में नहीं आया है।

कोलकाता मेट्रो प्रोजेक्ट से भी घरों को पहुंचा नुकसान

कोलकाता मेट्रो के निर्माण और संचालन के कारण शहर में भूमि धंसने के कई मामले सामने आए हैं। कोलकाता मेट्रो भारत की सबसे पुरानी मेट्रो है। मेट्रो सिस्टम के पहले चरण का निर्माण, जो 1970 के आसपास शुरू हुआ, इसमें सुरंगों की खुदाई और भूमिगत स्टेशनों का निर्माण शामिल था। तब से अब तक कई क्षेत्रों में जमीन धंसने के मामले सामने आए हैं। जैसे ताजा मामला अक्टूबर 2022 में बऊबाजार में 200 मीटर की दूरी पर कम से कम 10 इमारतों में दरारें आने का हैं। वहां ईस्ट-वेस्ट मेट्रो टीम 2 सुरंगों को जोड़ने का काम कर रही थीं, जिसकी वजह से लगभग 137 लोगों को उनके घर छोड़ने पड़े और कई दिनों तक होटलों में रहना पड़ा। हालांकि, यह खर्चा उस वक्त प्रशासन ने ही उठाया था। ऐसा ही हादसा 11 मई 2022 और 31 मई 2019 को भी हुआ था, जब कुल 81 घरों और बिल्डिंगों को नुकसान पहुंचा था।

ओडिशा में माइनिंग ने किया लोगों को बेघर

फरवरी 2020 में ओडिशा के बुधियापाली और साहूपाड़ा गांव के लोगों ने आरोप लगाया कि तालाबीरा क्षेत्र में माइन्स में ब्लास्ट होने के कारण दोनों गांव के घरों को क्षति पहुंची है। दोनों गांव के लोगों का आरोप है कि लाइन पर ब्लास्ट के कारण लगभग 20 से ज्यादा घरों को नुकसान पहुंचा है। दोनों गांवो के लोगों ने स्थानीय प्रशासन से मांग की कि अगर माइनिंग जारी रहती है तो उन्हें सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया किया जाना चाहिए, जिसके बाद दोनों गांवो के लोगों को रहने के लिए अलग स्थान उपलब्ध कराया गया था।

दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट ने नहीं दिया मुआवजा

दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट में 2015 में जब जहांगीरपुरी से बवाना के बीच अंडरग्राउंड मेट्रो लाइन बन रही थीं, तब मॉडल टाउन की कई बिल्डिंगों में दरारें आ गई थी। जब इस अंडरग्राउंड मेट्रो लाइन का कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ तब से ही कई लोग अपने घरों में आने वाली दरारों की समस्या को लेकर दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के पास पहुंचे थे लेकिन तब DMRC ने कहा था कि वे इन नुकसानों का ध्यान रखेंगे और इसकी भरपाई करेंगे। हालांकि, जिन लोगों के घरों को क्षति पहुंची थी, उन्हें आज तक अपने नुकसान की कोई भरपाई नहीं हुई। जैसे-जैसे दिल्ली मेट्रो अपना नेटवर्क फैलाती जा रही है वैसे-वैसे उस क्षेत्र के लोगों को मेट्रो के कंस्ट्रक्शन के कारण होने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे कई मामले वर्ष 2013, 2019 आदि में भी सामने आए थे। इस बीच साल 2019 में मेट्रो के कारण दक्षिण दिल्ली के भी कई घरों में दरारें आई तब एक ट्रस्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट जाने का फैसला किया और मुआवजे के लिए याचिका दायर की थी।

अहमदाबाद मेट्रो प्रोजेक्ट ने भी पैदा की समस्या

अगस्त 2018 में अहमदाबाद में जमीन धंसने का मामला सामने आया था। जब गोमतीपुर नगर निगम के स्टाफ क्वार्टर धंसने लगे क्योंकि उस दौरान स्टाफ क्वार्टर्स से सिर्फ 150 मीटर की दूरी पर अहमदाबाद मेट्रो की अंडरग्राउंड टनल का काम चल रहा था। इस मामले में एजेंसियों ने 13 परिवारों को क्वार्टर से सुरक्षित बाहर निकाला। स्टाफ क्वार्टर्स में रह रहे लोगों ने अपना दुख जाहिर करते हुए कहा कि हम यहां पर 60 साल से रह रहे हैं और कुछ सरकारी अधिकारी हमें होटल में रहने के लिए कह रहे हैं या फिर ₹500 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन देने की बात कर रहे हैं।

बाजोली-होली हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट (BHHPP) में कोई सुनवाई नहीं

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हिमाचल प्रदेश के चंबा क्षेत्र के अंडर कंस्ट्रक्शन बाजोली-होली हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट 180 मेगा वाट का हाइड्रो पावर प्लांट है। दिसंबर 2021 में BHHPP सुरंग परीक्षण से रिसाव और भूस्खलन हुआ और झरौता गांव में घरों को नुकसान पहुंचा। इस दौरान ग्रामीणों ने पहली बार वन क्षेत्र में सुरंग में रिसाव देखा था। कुछ दिन बाद उन्होंने स्टेट हाइवे के पास मकानों में दरारें देखी। साल 2007 में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का कॉन्ट्रैक्ट एक प्राइवेट कंपनी को सरकार द्वारा दिया गया था और तब से ही इस गांव के लोग अपने घरों और गांव की चिंता को लेकर सरकार के हाइड्रो पावर प्लांट बनाने के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन को लेकर साल 2014 में झरौता गांव की 31 महिलाओं को गिरफ्तार भी कर लिया गया था। इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के निर्माण से 27 गांव और वहां के घरों को नुकसान पहुंचा हैं। वहीं मामला जब सरकार के पास पहुंचा तो कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद जब यह मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने भी पीड़ितों की पिटीशन को खारिज कर दिया।

यह भी पढ़ें: Joshimath Sinking: जोशीमठ में दरकते पहाड़ का संकेत समझिए

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English summary
Joshimath Sinking Cracks in Houses in these cities people homeless due to development projects
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