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जनजातीय गौरव दिवस: आजादी के बाद Birsa Munda के सम्मान में सरकारों ने क्या कदम उठाये?

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जनजातीय गौरव दिवस: अशिक्षा, गरीबी और भुखमरी के बीच बिरसा मुंडा का जन्म रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर उलिहातु गाँव में 15 नवंबर 1875 को हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा व माता का नाम करमी मुंडा था।

जनजातीय गौरव दिवस: आजादी के बाद Birsa Munda के सम्मान में सरकारों ने क्या कदम उठाये?

एकदिन चाईबासा मिशन में लोग प्रार्थना के लिए जमा हुए थे। पादरी नोट्रोट ईश्वर के राज्य के विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने भूतखेत, पहनाई आदि मुंडा गांवों के पास जंगल को मिशन के हाथ सौंपने की बात की। वहाँ उपस्थित मुंडा लोगों ने इस पर आपत्ति जताई, तभी नोट्रोट क्रोधित हो गया और मुंडाओं को ठग, बेईमान व चोर कहने लगा।

नोट्रोट के मुंह से अपनी जाति के प्रति अपमानजनक शब्द सुनकर वहाँ उपस्थित 14 वर्षीय बिरसा ने विरोध किया। उन्होंने कहा, "आप किसे ठग, बेईमान, चोर कह रहे हैं? हम वनवासियों ने आज तक किसी को ठगा नहीं है। जो कुछ पाया है, उसका पैसा चुकाया है। मुंडाओ जैसे सरल लोग आपको पूरे विश्व में नहीं मिलेंगे। आप लोग गोरी चमड़ी वाले हो और शासक भी गोरे हैं, इसलिए आप उनका पक्ष लेते हो?"

बिरसा मुंडा ने वनवासियों के बीच अनेक समाज सुधार के कार्य भी किये। सिंगबोंगा मुंडाओं के मुख्य स्थानीय देवता थे। उनके अलावा बनिता बोंगा, बुरु बोंगा, धारयी बोंगा, इफिर बोंगा भी देवताओं के नाम थे। उनके समक्ष पशुओं की हत्या की एक परंपरा थी। बिरसा मुंडा ने अपने गांवों के लोगों को इन विकृतियों व रूढ़ियों से मुक्त कर एक संशोधित और व्यवस्थित रूप देने का निश्चय किया।

उन्होंने ईसाईयत में धर्मान्तरित लोगों को समझाया कि यह हमें अपने पूर्वजों से विमुख करेगा। और ब्रिटिश लोग हमारी जमीनों पर कब्जा कर रहे है इसलिए हमें हमारी जमीन वापस लेनी होगी। उन दिनों ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देशभर में आन्दोलन किये जा रहे थे।

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उन्होंने सिंहभूम और रांची के आसपास एक फौज तैयार कर ली। ब्रिटिश अधिकारियों और मिशनरियों के खिलाफ यह फौज लगातार मोर्चा लेने लगी और उनका नेतृत्व बिरसा मुंडा कर रहे थे। 1899-1900 के बीच वे उस क्षेत्र के सर्वोच्च नेता बन चुके थे।

जल्दी ही उनका झुकाव वैष्णव दर्शन को ओर हो गया। वे तुलसी पूजा के साथ जनेऊ भी धारण करने लगे। 1895 तक बिरसा धार्मिक सुधारक के तौर पर पहचाने जाने लगे। उनके अनुयायी अब उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे थे।

ब्रिटिश सरकार से संघर्ष

1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन शुरू किया। भगवान बिरसा के इस अभियान से ईसाई मिशनरियों को समस्या पैदा होनी लगी। इसलिए उन्होंने इसकी जानकारी ब्रिटिश सरकार को दी। अंग्रेजो ने षड्यंत्र करके बिरसा को 2 वर्ष के लिए जेल भेज दिया।

बिरसा और उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी जो उन्होंने किया भी। बिरसा मुंडा ने अपने जीवन काल में ही महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकाराते और पूजते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। 1897 से 1900 के बीच बिरसा और अंग्रेजों के बीच युद्ध होते रहे। बिरसा ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।

1898 में तांगा नदी के किनारे बिरसा मुंडा की भिड़ंत अंग्रेजों की सेना से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से वनवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं।

बलिदान

जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर बिरसा एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। ब्रिटिश फौज ने उस पहाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इस संघर्ष में औरतें और बच्चे भी मारे गए। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ्तार कर लिये गये। आखिरकार 9 जून 1900 को बिरसा का जेल में ही निधन हो गया।

1899 में गिरफ़्तारी के वक़्त उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों ने उनके व्यापक असर को देखते हुए उन्हें कारागार में ज़हर दे दिया। दूसरा मत यह भी है कि उनका निधन हैजे से हुआ था।

आज़ादी के संग्राम में पहला परिचय

भारत के सामान्य लोगों ने बिरसा के वीरतापूर्ण संघर्ष के बारे में सबसे पहले 1940 में सुना, जब रांची के निकट रामगढ़ में कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में बिरसा के सम्मान में मुख्य द्वार का नाम बिरसा मुंडा द्वार रखा गया। इसके बाद अनेक लोगों को यह जानने की जिज्ञासा हुई कि आखिर यह बिरसा मुंडा कौन थे।

संसद भवन में तस्वीर

बिरसा मुंडा को बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के वनवासियों में 'बिरसा भगवान' कहकर याद किया जाता है। वहां के स्थानीय लोगों को ब्रिटिश सरकार के दमन और मिशनरियों के झूठे प्रचार के विरुद्ध खड़ा करके बिरसा मुंडा ने यह सम्मान अर्जित किया था। इसलिए बिरसा एक मात्र ऐसे वनवासी है जिनकी तस्वीर संसद भवन में लगी हुई है।

बिरसा की प्रतिमा एवं डाक टिकट

बिरसा और उनके आंदोलन से अधिकतम लोगों को परिचित कराने और उनकी याद को ताजा बनाए रखने की दिशा में बिहार के राज्यपाल रहे डॉ. जाकिर हुसैन (1957-62) और अनंतशयनम आयंगर (1962-67) का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

राज्यपाल अनंतशयनम आयंगर के कार्यकाल में बिरसा की गरिमा के अनुकूल किसी राजमार्ग पर सुगोचर एवं महत्वपूर्ण स्थल पर उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए भारी इंजीनियरी निगम (एच़. ई़. सी.) के मुख्य द्वार के पास रांची-खूंटी मार्ग के चौराहे को चुना गया।

मूर्ति बन जाने पर 9 जून 1966 को बिरसा की पुण्यतिथि पर एक सादे समारोह में राज्यपाल आयंगर ने इसका अनावरण किया। उसके बाद इस स्मारक स्थल पर बिरसा की जयंती और पुण्यतिथि पर कई आयोजन होने लगे। केंद्र सरकार ने 1988 में बिरसा जयंती पर विशेष डाक टिकट जारी किया।

यूनिवर्सिटी, कॉलेज और एअरपोर्ट के नाम

कई राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी और कॉलेज के नाम बिरसा मुंडा पर रखे गए हैं। इसमें 1981 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा स्थापित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी जैसे नाम शामिल हैं। इसके अलावा, बिहार इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी का साल 2000 में नाम बदलकर बिरसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी किया गया था। साल 2009 में बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम बनाया गया। साल 2010 में पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार द्वारा सिद्धो कान्हो बिरसा यूनिवर्सिटी स्थापित की गयी। रांची एअरपोर्ट का नाम भी बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है।

जनजातीय गौरव दिवस

साल 2021 में भारत सरकार ने घोषणा कर कहा कि भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। 10 नवम्बर 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित करने को मंजूरी दी थी।

यह दिन वीर आदिवासी स्‍वतंत्रता सेनानियों की स्‍मृति को समर्पित है ताकि आने वाली पीढ़ियां देश के प्रति उनके बलिदानों के बारे में जान सकें। संथाल, तामार, कोल, भील, खासी और मिज़ो जैसे कई जनजातीय समुदायों द्वारा विभिन्न आंदोलनों के जरिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया गया था।

यह भी पढ़ें: Birsa Munda Jayanti: कौन थे बिरसा मुंडा, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ी थी निर्णायक लड़ाई?

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English summary
Janjatiya Gaurav Divas what steps taken by governments in honor of Birsa Munda heritage
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