
क्या है 5G Service in Plane जिससे फ्लाइट में उड़ान के दौरान स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना एकदम आसान हो जायेगा

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आपने हर मोबाइल फोन में फ्लाइट या एयरप्लेन मोड जरूर देखा होगा। किसी भी मोबाइल डिवाइस में यह फीचर डिवाइस को मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट से डिसकनेक्ट करने के लिए होता है। खास तौर पर विमान में यात्रा शुरू करने से पहले यात्रियों को अपने फोन को स्वीच ऑफ या एयरप्लेन/फ्लाइट मोड में डालने के लिए कहा जाता है। ऐसा इसलिए कि एयरप्लेन में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता है। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा, यात्रियों को अब फ्लाइट में भी मोबाइल नेटवर्क मिलेगा, जिसकी मदद से वो फोन कॉल और इंटरनेट इस्तेमाल कर सकेंगे। आइए, जानते हैं इस नई टेक्नोलॉजी के बारे में।
5G Service in Plane: 5G नेटवर्क के कई देशों में लॉन्च होने के बाद अब यात्रियों को उड़ते हुए विमान में बेहतर स्पीड से इंटरनेट एक्सेस मिल सकता है। हालांकि, अभी यह टेक्नोलॉजी केवल यूरोपीय यूनियन के देश ला रहे हैं। यूरोपीय यूनियन ने फ्लाइट के अंदर 5G मोबाइल सर्विस की अनुमति दी है। यूनियन ने एसोसिएटेड देशों को 30 जून 2023 तक इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की डेडलाइन जारी की है।
यूरोपीय यूनियन के एसोसिएटेड देश अगले साल जून तक एयरपोर्ट से लेकर विमान के लिए 5G उपकरण लगाएंगे। यूरोपीय यूनियन की लेजिस्टेव काउंसिल द्वारा बनाए गए कानून के मुताबिक, एयरलाइंस अपने एयरक्राफ्ट में 5G टेक्नोलॉजी इंस्टॉल कर सकते हैं, ताकि पैसेंजर विमान के अंदर अपने स्मार्टफोन या अन्य डिवाइस को आसमान में भी कनेक्ट कर सके।
आसान नहीं है राह
एयरक्राफ्ट में 5G सर्विस मुहैया कराने वाला फैसला आसान नहीं है। साल 2008 में यूरोपीय यूनियन ने कुछ फ्रिक्वेंसी बैंड्स रिजर्व करके रखे थे, जिसके जरिए इन-फ्लाइट इंटरनेट कनेक्टिविटी दी जा रही थी। सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सर्विस लेना काफी खर्चीला है, जिसकी वजह से यूजर्स इसका उपयोग नहीं करते थे।
2018 में 5G सर्विस लॉन्च होने के बाद फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ने एयरपोर्ट के आस-पास 5G मोबाइल टॉवर लगाने पर प्रतिबंध लगाया है। 5G के लिए एक रेडियो स्पेक्ट्रम C बैंड को एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल होने वाले रेडियो अल्टीमीटर में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में एयर ट्रैफिक कंट्रोल को एयरलाइंस से कम्युनिकेट करने में दिक्कत आ सकती है।
फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन को अंदेशा है कि इसकी वजह से एयरक्राफ्ट्स को कंट्रोल करने में दिक्कत आएगी और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। भारत में भी 5G सर्विस शुरू हो गई है, लेकिन टेलिकॉम कंपनियों को एयरपोर्ट के आस-पास 5G टावर लगाने की अनुमति नहीं मिली है।
भारत में इन-फ्लाइट मोबाइल सर्विस
साल 2020 में रिलायंस जियो ने इन-फ्लाइट मोबाइल सर्विस शुरू की थी। टेलीकॉम कंपनी अपने यूजर्स को कुछ एयरलाइंस में यह सर्विस उपलब्ध करा रही है। हालांकि, इन-फ्लाइट मोबाइल सर्विस इस्तेमाल करने के लिए आपको अपना फोन एयरप्लेन मोड में रखना पड़ता है। इन-फ्लाइट मोड में मोबाइल सर्विस एक्सेस करने के लिए यात्रियों को ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। साथ ही, इंटरनेट की स्पीड काफी कम रहती है।
टेलीकॉम कंपनियां एयरलाइंस ऑपरेटर्स के साथ मिलकर फ्लाइट्स के लिए मिलने वाली सैटेलाइट कनेक्टिविटी का इस्तेमाल करके यूजर्स को मोबाइल और इंटरनेट का एक्सेस देती हैं। यह तकनीक काफी खर्चीली है, जिसकी वजह से टेलिकॉम और एयरलाइंस ऑपरेटर्स यात्रियों से सर्विस लेने के लिए ज्यादा चार्ज करते हैं। साथ ही, यह सर्विस चुनिंदा एयरलाइंस में ही मिलती हैं। हालांकि, यूरोपीय यूनियन द्वारा एयरक्राफ्ट्स में 5G टेक्नोलॉजी इंस्टॉल करने की अनुमति मिलने से भारत समेत अन्य देश भी एयरलाइंस में 5G इक्वीपमेंट इंस्टॉल करने की अनुमति दे सकते हैं।
कैसे काम करेगी यह टेक्नोलॉजी?
एयरक्राफ्ट में 5G इक्वीपमेंट्स लगाए जाने के बाद एयरक्राफ्ट्स में यूजर्स को 100Mbps की स्पीड से इंटरनेट एक्सेस करने को मिलेगा। विमान यात्री जिस तरह से जमीन पर अपने स्मार्टफोन यूज करते हैं, ठीक उसी तरह से वो हवाई जहाज में भी मोबाइल इस्तेमाल कर सकेंगे, यानी यात्री अपने स्मार्टफोन से वीडियो कॉल कर सकेंगे, पसंदीदा मूवीज, वेबसीरीज OTT ऐप्स पर देख सकेंगे या फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए लोगों से कनेक्ट कर सकेंगे। 5G इक्वीपमेंट लगाए जाने के बाद एयरक्राफ्ट नजदीकी 5G मोबाइल टॉवर से कनेक्ट होगा और विमान में बैठे यात्रियों को इंटरनेट और मोबाइल सर्विस मुहैया कराएगा।
इन-फ्लाइट मोबाइल सर्विस में एयरक्राफ्ट सैटेलाइट के रेडियो फ्रिक्वेंसी की मदद से इंटरनेट की सुविधा मिल रही है। यह सुविधा काफी खर्चीली है और इंटरनेट की स्पीड भी काफी कम आती है। इन-फ्लाइट मोबाइल सर्विस को इस्तेमाल करने के लिए यात्री विमान में बैठने के बाद अपने फोन को एयरप्लेन या फ्लाइट मोड में डालते हैं। जिसके बाद ही वो इसका इस्तेमाल कर पाते हैं। नई टेक्नोलॉजी में ऐसा नहीं होगा और यह कम खर्चीली होगी।
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