एक न एक दिन पाकिस्तान से मुक्त होगा पीओके
महाराजा हरि सिंह की रियासत जम्मू कश्मीर के भारत में विलय हुए साढे़ छह दशक बीत चुके हैं। यह विलय भी ठीक वैसे ही दस्तावेज पर दस्तखत के माध्यम से हुआ था, जैसे विलय-पत्र पर देश के अन्य राजे-रजवाड़ों ने हस्ताक्षर किए थे। विलय से लेकर आज तक भारत सरकार दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक निरंतर इस को आग्रहपूर्वक दुनियां से कहती रही है कि विलय की वैधानिकता संदेह और सवालों से परे है।
इस आधिकारिक स्थिति का एक अर्थ यह है कि रियासत के जिन हिस्सों पर पाकिस्तान ने विभाजन के समय कब्जा कर लिया था, वह भारत की भूमि है और वहां बसने वाले नागरिक भारतीय नागरिक। हम एक न एक दिन देश के उस हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करवाएंगे, यह बात कहीं न कहीं भारतीय मानस में आज तक कायम रही है। सरकारों ने इस भावना को अब तक न केवल जिंदा रखा है बल्कि समय समय पर पुख्ता भी किया है।
पल भर के लिए ओझल नहीं होने दिया बिछुड़े कश्मीर को
भारत ने बिछुडे़ जम्मू कश्मीर के हिस्से पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर), जिसे पाकिस्तान आजकल आजाद जम्मू कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान कहता है, को पल भर के लिए अपनी स्मृति से ओझल नहीं होने दिया। भारत के आधिकारिक मानचित्र में जो जम्मू कश्मीर राज्य दिखाई देता है, वह पूरे का पूरा जम्मू कश्मीर है। वह रियासत जो कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए महाराजा हरि सिंह ने भारत को सौंपी थी।
पाकिस्तानी कब्जे वाला रियासत का हिस्सा और पाकिस्तान द्वारा अपने आका चीन को हस्तांतरित कर दिया गया क्षेत्र भी इसमें समाहित है। भारत की आबादी और साक्षर-शिक्षित भारतीय नागरिकों में से अधिकांश को तो यह भी एहसास शायद न हो कि इस मानचित्र में दर्शाए गए एक बडे़ भूखंड पर चीन और पाकिस्तान काबिज हैं।
पाकिस्तान के कब्जे वाला हमारा इलाका एक न एक दिन वापस हमें मिलेगा यही सोच कर जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें बीते साढे़ छह दशक से खाली रखी जा रही हैं। इन सीटों को इंतजार है पाकिस्तान के नाजायज कब्जे से इन क्षेत्रों की मुक्ति का। उस दिन का जब वहां भी भारत के संविधान,संसद और ध्वज के प्रभावक्षेत्र का विस्तार होगा और वहां के नागरिक अपन जनप्रतिनिधि चुनकर श्रीनगर भेजेंगे।
भारत के इस घोषित राष्टीय संकल्प को हमारी संसद ने 1994 में नए सिरे से पुरजोर ढंग से दोहराया था। संसद ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान और दुनिया को याद कराया था कि समूचा जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान को अपने अवैध कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करना होगा। अभिप्राय यह कि पाकिस्तान का दर्जा उसके कब्जे वाले जम्मू कश्मीर में एक हमलावर का था और रहेगा। पी.वी.नरसिम्हाराव की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में संसद ने यह प्रस्ताव पारित किया था। इस सवाल पर सब दल दलगत सियासत से उपर उठकर एकजुट थे।
चौंकाने वाले पीड़ादायी तथ्य
मगर चौकाने वाला और पीड़ादायी तथ्य यह है कि हाल ही में जम्मू कश्मीर पर जारी हुई वार्ताकारों की रिपोर्ट में भारत के इस वैधानिक, संवैधानिक और भावनात्मक पक्ष पर सीधा कुठाराघात किया गया है। बीते साढे़ छह दशक में पहली बार किसी सरकारी भारतीय दस्तावेज में वैधानिक और संसदीय भावनाओं को ताक पर रख कर पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित कश्मीर कहने का दुस्साहस किया गया है।
रिपोर्ट भारत प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की बात करती है। कुल मिलाकर रिपोर्ट में वार्ताकारों की तिकड़ी ने कश्मीर के मामले में भारत और पाकिस्तान को एक स्तर पर, बराबरी के पटल पर लाकर खड़ा करने की कोशिश की है। पड़गांवकर और उनकी मंडली से कोई पूछे कि भला असल मालिक और कब्जाधारी के लिए एक जैसी शब्दावली का प्रयोग उन्होंने क्या सोच कर किया है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग इस राज्य को भारत से अलग करने की रट लगाने वाले घाटी के मुट्ठीभर अलगाववादियों द्वारा किया जाता रहा है। हमारे अपने वार्ताकारों का इस तरह देशविरोधियों की बोली में बोलना तमाम तरह के सवाल खड़ा करता है। और यह सवाल तीन में से दो वार्ताकारों की कथित अलगाववादियों के साथ निकटता, नरमी और सहानुभूति के सार्वजनिक आरोपों को और अधिक पुष्ट करते हैं।