
Lavender Farming : 10 हजार प्रति किलो बिकता है ये तेल, किसानों के लिए शानदार विकल्प
नई दिल्ली, 17 मई : भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (CSIR) का गठन शोध कार्यों की गुणवत्ता सुधारने के मकसद से किया गया है। खेती में भी सीएसआईआर की भूमिका उल्लेखनीय है। सीएसआईआर की पहल- मिशन अरोमा के तहत किसानों को दी जाने वाली ट्रेनिंग उनकी इनकम बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है। बता दें कि लैवेंडर फ्लावर का तेल 10 हजार रुपये प्रति किलो तक की दर से बिकता है।

75 हजार तक बढ़ सकती है कमाई
2016 में शुरू हुई केंद्र सरकार की पहल- मिशन अरोमा के तहत किसानों और युवाओं को सुगंधित पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। अरोमा मिशन के तहत मेडिसिनल अरोमेटिक प्लांट की खेती को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। किसानों की फसल के आधार अरोमेटिक फार्मिंग की बदौलत उनकी आमदनी 25,000 रुपये से 75,000 रुपये प्रति हेक्टेयर तक बढ़ सकती है।

मेडिकल प्लांट्स पर सब्सिडी
सीएसआईआर के वैज्ञानिक अरोमेटिक प्लांट के उत्पाद की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बारे में किसानों का ज्ञान बढ़ाते हैं, जिससे वे सही प्लान के साथ खेती कर सकें। एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में सरकार अच्छी गुणवत्ता वाले मेडिकल प्लांट्स पर सब्सिडी देगी, ताकि अरोमेटिक फार्मिंग करने वाले लोगों को भविष्य में बड़े पैमाने पर लाभ मिल सके। इसके साथ ही अच्छी-खासी मात्रा में प्लांट सामग्री के उत्पादन को भी प्रोत्साहित करने की योजना है।

जम्मू कश्मीर में लैवेंडर की खेती
मिशन अरोमा के तहत सबसे पॉपुलर लैवेंडर की खेती रही है। लैवेंडर के रंग के आधार पर खेती की इस सफल मुहिम को पर्पल रेवोलुशन भी कहा जाता है। किश्तवाड़, भद्रवाह और राजौरी में भी लैवेंडर की खेती की जाती है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में अरोमेटिक फार्मिंग में मिली सक्सेस के बाद रामबन जिले में भी 'लैवेंडर की खेती' कराने का प्लान बना रही है। यहां भी सीएसआईआर-आईआईआईएम अरोमा मिशन के तहत अरोमेटिक फार्मिंग की जाएगी। डोडा और रामबन की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियां लगभग एक जैसी बताई जाती है। मिशन अरोमा की सक्सेस का ही प्रमाण है कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद युवाओं ने लैवेंडर के फूल की खेती शुरू की है।

किसान अब एग्री टेक्नोक्रेट
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री भी हैं। मिशन अरोमा के संबंध में इनका मानना है कि सीएसआईआर का अरोमा मिशन आत्म-आजीविका और इंटरप्रेन्योरशिप के नए रास्ते पैदा कर रहा है। उन्होंने नए जमाने के किसानों को एग्री टेक्नोक्रेट बताते हुए कहा, अरोमेटिक फार्मिंग से सुगंधित तेलों और अन्य सुगंधित उत्पादों के निर्माण में उद्यमशीलता बढ़ी है। सुगंधित तेलों का आयात कम हुआ है। देश में 60 करोड़ रुपये मूल्य के 500 टन से अधिक जरूरी तेल का उत्पादन किया गया है।

लैवेंडर की खेती में सफलता, 500 किसानों ने किया फॉलो
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में रहने वाले युवा भारत भूषण लैवेंडर की खेती में सक्सेस हासिल कर चुके हैं। भारत भूषण ने सीएसआईआर-आईआईआईएम की मदद से लगभग 0.1 हेक्टेयर जमीन पर लैवेंडर की खेती शुरू की थी। जैसे-जैसे लाभ होना शुरू हुआ, भारत भूषण ने घर के आस-पास मक्के के खेत के बड़े हिस्से में लैवेंडर की खेती की। डोडा जिले के सुदूर गांव खिलानी में रहने वाले भूषण ने लैवेंडर के बगान में 20 लोगों को काम पर भी रखा है। लैवेंडर के खेतों के अलावा भारत भूषण पौधशाला (नर्सरी) भी तैयार कर चुके हैं। उनके जिले के लगभग 500 किसानों ने मक्के को छोड़कर लैवेंडर पौधे की खेती शुरू कर दी है। लैवेंडर 12 महीनों तक उपजता है।

क्या है सीएसआईआर मिशन अरोमा
सीएसआईआर अरोमा मिशन (CSIR Aroma Mission) देश भर से स्टार्ट-अप्स और कृषकों को आकर्षित कर रहा है। मिशन के तहत 6,000 हेक्टेयर भूमि में महत्वपूर्ण औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती की जा रही है। पहले चरण के दौरान सीएसआईआर के अरोमा मिशन देश भर के 46 आकांक्षी जिलों में लागू किया गया। इसके लिए 44,000 से अधिक लोगों को ट्रेनिंग दी गई। किसानों ने करोड़ों का राजस्व अर्जित किया।
दो चरणों की योजना
अरोमा मिशन फेज वन के दौरान पूर्वोत्तर भारत में असम, महाराष्ट्र में शिरडी, उत्तर प्रदेश में बाराबंकी और हिमाचल प्रदेश के मंडी समेत कुल 46 जिलों में रहने वाले किसानों को जोड़ा गया। अरोमा मिशन के दूसरे चरण में, देश भर में 75,000 से अधिक कृषक परिवारों को लाभ पहुंचाने की योजना है। अरोमा मिशन फेज टू में 45,000 से अधिक ट्रेंड लोगों को शामिल करने का प्रस्ताव है।

औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा
पारंपरिक कृषि में शामिल किसानों की दुर्दशा और ग्रामीण क्षेत्रों से उनके पलायन को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मई, 2016 में 'अरोमा एंड फाइटो-फार्मास्युटिकल मिशन' (Aroma and Phyto-Pharmaceutical Mission)- मिशन अरोमा शुरू किया। इसके तहत लैवेंडर, मेंहदी और लेमन ग्रास जैसी सुगंधित फसलों सहित अश्वगंधा और सतावर जैसे औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं।

फसल आर्थिक रूप से अहम
अरोमा मिशन के तहत आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सुगंधित फसलों को चुना गया है। इनमें पुदीना, वेटिवर (vetiver), लेमन ग्रास, पामारोसा (palmarosa), ऑसिमम (ocimum), पचौली (patchouli), लैवेंडर, मेंहदी, टैगेट (tagetes), जम्मू मोनार्डा (Jammu monarda) और वेलेरियन (valerian) शामिल हैं। मिशन के तहत औषधीय पौधों की खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। इनमें कालमेघ (kalmegh), अश्वगंधा (ashwagandha), सतावर (satavar), सेना (senna), सिलिबम (silybum), करकुमा (curcuma) और स्वर्टिया (swertia) शामिल हैं।

इन राज्यों में लैवेंडर और अरोमेटिक फार्मिंग की पहल
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants- CIMAP) के तहत, अरोमेटिक फार्मिंग के तहत फसलों की खेती को वैसी जमीनों पर प्रोत्साहित किया जाता है, जो अनुत्पादक माने जाते हैं। इसके अलावा सीमांत और बंजर भूमि पर भी अरोमेटिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर पूर्वी राज्यों में खेती के लिए पानी की कमी, सूखा, लवणता या बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों के कारण अरोमेटिक फार्मिंग को प्रोत्साहित किया जाता है।

इन सुगंधित फसलों की खेती पर भी जोर
अरोमा मिशन के तहत आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सुगंधित फसलों को चुना गया है। इनमें पुदीना, वेटिवर (vetiver), लेमन ग्रास, पामारोसा (palmarosa), ऑसिमम (ocimum), पचौली (patchouli), लैवेंडर, मेंहदी, टैगेट (tagetes), जम्मू मोनार्डा (Jammu monarda) और वेलेरियन (valerian) शामिल हैं। मिशन के तहत औषधीय पौधों की खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। इनमें कालमेघ (kalmegh), अश्वगंधा (ashwagandha), सतावर (satavar), सेना (senna), सिलिबम (silybum), करकुमा (curcuma) और स्वर्टिया (swertia) शामिल हैं।

अरोमेटिक फार्मिंग : इन संस्थाओं से साइंस की जानकारी
औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती यानी अरोमेटिक फार्मिंग के लिए लखनऊ के चार सीएसआईआर संस्थानों को रखा गया है।
- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants- CIMAP)
- केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (CDRI)
- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI)
- भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (IITR)
इनके अलावा जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, असम और हिमाचल प्रदेश की संस्थाओं को भी सीएसआईआर अरोमेटिक फार्मिंग के काम से जोड़ा गया है। इनमें प्रमुख हैं-
- हिमालयी जैवसंसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Himalayan Bioresource Technology (CSIR-IHBT), Palampur)
- भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (Indian Institute of integrative medicine -IIIM)
- यूनिट फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑफ इन्फॉरमेशन प्रोडक्ट्स, पुणे (URDIP, Pune)
- उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, जोरहट, असम (NEIST, Jorhat)
सीएसआईआर से जुड़े ये संस्थान टेक्नोलॉजी की मदद से औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती, उत्पादों की प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन के अलावा उत्पादों की मार्केटिंग में भी मदद करेंगे।