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Rebel Children: मां बाप के खिलाफ विद्रोही क्यों हो रहे हैं बच्चे?

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Rebel Children: विभव ने हाई स्कूल पास करते ही अपनी मां से आईफोन की मांग कर दी। कोविड संकट का बहुत सारे परिवारों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ा है। उसकी मां सुनीता ने कहा कि अभी नहीं दिला सकते। वो ज़ोर से दरवाजा बंद करते हुए अपने कमरे में चला गया। सुनीता अपने बेटे का यह व्यवहार देखकर दुःखी हो गईं। उसे कुछ कहो तो उसे अनसुना कर देता है, और अब घर पर लोगों से बात करना भी बंद कर दिया है। क्या एक गैजेट लेकर नहीं दे पाने के कारण मां-बाप यूज़लेस हो गए बच्चों के लिए?

Temper Tantrums by children towards parents

नेहा की माँ की भी समस्या कुछ इसी तरह की है। वह परेशान है कि बेटी बात ही नहीं सुनती। अभी सिर्फ 14 साल की है और इतना मूड स्विंग होता है उसका। किसी भी बात पर चीखती चिल्लाती है। कभी रोने लगती है। हमेशा घर में तनाव का माहौल रहता है। कुछ भी कहो तो उल्टा ज़वाब देती है और सिर्फ अपने मन की करती है। वहीं बारहवीं के छात्र प्रतीक के घरवाले तो और भी परेशान हैं। वह तो आत्महत्या कर लेने की धमकी दे चुका है।

ये तीनों ही मामले सतही तौर पर अलग से लगते हैं, पर इन तीनों में समानता है। आखिर क्यों और कहां से आया यह संवेदना का अभाव, आक्रोश और हताशा भी! ऐसी घटनाएं आज के बच्चों की तरफ से क्या संदेश दे रही हैं? क्या आजकल के बच्चे इतने असंवेदनशील और संस्कारहीन या आत्मकेंद्रित हो गए हैं कि उनके लिए अपने अलावा किसी से कोई जुड़ाव नहीं महसूस होता?

हमारी भौतिकतावादी और भागदौड़ भरी जिंदगी का बच्चों के मन पर प्रभाव पड़ रहा है। आज के बच्चों से पढाई और कैरियर को लेकर अभिभावक बहुत अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, जिसके कारण उन पर मानसिक दबाव बहुत बढ़ गया है। समाज की तथाकथित कसौटियों, तुलनाओं पर खरा न उतर पाने के कारण उनमें हीनभावना भी भर सकती है। यह बच्चों में लगातार बने रहने वाले चिड़चिड़ेपन या टैंट्रम का बड़ा कारण हो सकता है।

टैंट्रम (Tantrum) होता क्या है?

आमतौर पर क्रोध या अविवेकी व्यवहार का दौर, जैसे कि किसी बात पर रोना, चीखना, चिल्लाना और वस्तुओं को फेंकना आदि, टेंट्रम कहलाता है। यदि सामान्य शब्दों में कहा जाय तो यह बच्चों के दुनियादारी सीखने का एक सामान्य हिस्सा है। एक से चार साल की उम्र के बीच, अधिकांश बच्चों में ऐसे टैंट्रम या नखरे होते हैं।

जैसे -जैसे बच्चे बड़े होते हैं वे शारीरिक रूप से अधिक स्वतंत्र होना चाहते हैं। वे अपनी मर्जी से खेलना चाहते हैं, अपनी पसंद के ही कपड़े पहनना चाहते हैं और खुद खाना चाहते हैं, चाहे वे ठीक से कर सकें या नहीं। अगर वह कुछ करने में असमर्थ है या उसे कुछ करने से रोक दिया जाय तो बच्चा रोने, चीखने, हाथ पैर पटकने या चीज़ें फेंकने जैसी हरकत करता है। स्वतंत्रता और हताशा के बीच लड़ाई टेंट्रम पैदा कर सकती है।

पर ये ध्यान रखें कि ऐसा तब भी हो सकता है जब बच्चा अधिक थका हुआ हो या फिर भूखा हो। कई बार बच्चे उपेक्षित महसूस करने पर अटेंशन के लिए भी ऐसा कर सकते हैं। यह सभी उम्र के बच्चों के साथ हो सकता है। किशोरावस्था में यदि बच्चे ऐसा करते हैं तो उन्हें अनुशासित रखना आवश्यक होता है।

आज की सामाजिक जीवन शैली में हम बच्चों को सार्थक समय नहीं दे पाते हैं। उस आवश्यकता को पैसों से या भौतिक वस्तुओं से पूरा करने का प्रयास करते हैं। यह एक गलत प्रवृत्ति है। आजकल गैजेट्स के प्रयोग की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन बच्चे विवेक और भावना के स्तर पर परिपक्व नहीं होते हैं। इसलिए उसकी गतिविधियों पर नज़र रखना और उससे विभिन्न मुद्दों पर बात करना आवश्यक होता है।

अभिभावकों की ज़िम्मेदारी

अपने बच्चे का चीखना- चिल्लाना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। ऐसे में कई बार माता पिता भी क्रोधित हो जाते हैं या निराश और हताश महसूस कर सकते हैं। यदि सार्वजनिक स्थान पर या अन्य लोगों के सामने बच्चा ऐसा करता है तो पेरेंट्स शर्मिंदगी महसूस करते हैं। एक बच्चे का माता-पिता या अभिभावक होना आसान नहीं है। हर हाल में पेरेंटिंग के नियम निर्धारित करना महत्वपूर्ण होता है। जिससे आपका बच्चा अपनी भावनाओं से निपटना सीखता है।

याद रखें, यह स्वाभाविक ही है कि बच्चे हद से आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। उसे संतुलित करने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं जो पेरेंट्स और बच्चे के लिए मददगार हो सकते हैं:

किसी भी दशा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शांत रहें और परेशान न हों। बस अपने आप को याद दिलाएं कि यह सामान्य है, और बहुत से माता-पिता इससे निपटते हैं। आश्वस्त रहें कि आप भी इसे मैनेज कर लेंगे।

कई बार बच्चे अपनी ज़िद मनवाने के लिए या अटेंशन के लिए ऐसा करते हैं। उस दौरान आप जो कुछ भी कर रहे हैं उसे शांति से जारी रखें। किसी और से बात करना, यदि बाजार में हों तो अपनी खरीदारी जारी रखें। सिर्फ इतना बार-बार देखते रहें कि आपका बच्चा सुरक्षित है। अपने बच्चे को नज़रअंदाज करना बहुत कठिन है, लेकिन अगर आप उस पर प्रतिक्रिया देते हैं, या उन्हें थप्पड़ भी मारते हैं, तो इसका मतलब वे समझ जाते हैं कि आप उनकी बात पर ध्यान दे रहे हैं जिसकी वे मांग कर रहे हैं।

इसी तरह अगर आप अपने बच्चे को यह सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि नियम कायदे महत्वपूर्ण हैं, तो पहले स्वयं आप को उनका पालन करना ज़रूरी है। क्योंकि बच्चे वो नहीं करते जो उन्हें करने को कहा जाता है, बल्कि वे वही करते हैं जो वे हमें करते हुए देखते हैं।

बच्चे के क्रिएटिव होने या उसके शांत हो कर काम करने को प्रोत्साहित करें। उस समय अपना पूरा ध्यान बच्चे की ओर रखें, उनसे गर्मजोशी और प्रशंसा के साथ बात करें। यदि आप इस तरह के नए व्यवहार को पुरस्कृत करते हैं, तो आपके बच्चे के शांत रहने और अच्छे बने रहने की अधिक संभावना रहती है।

बच्चों में जिज्ञासा और उत्सुकता पैदा करें। आप अपने बच्चे का ध्यान अधिक सीखने और जानने की ओर मोड़ कर उनके टैंट्रम से बचने में सक्षम हो सकते हैं।

बच्चों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए?

माता-पिता के साथ बिताए गए समय की पूर्ति किसी भी वस्तु से नहीं हो सकती। अभिभावकों से मिलने वाले संस्कार, शिक्षा कहीं और से नहीं मिल सकती। हाल ही में 0-14 साल के बच्चों पर हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो माता-पिता अपने बच्चों से बात करके, प्यार और विश्वास के भाव से, मिलजुल कर बच्चों के लिए कोई निर्णय लेते हैं, उनके बच्चे अधिक स्वस्थ और एक्टिव होते हैं।

इसके विपरीत जहां माता-पिता अपनी सलाह बच्चों पर थोपते हैं, उनके बच्चे काफी अकेलापन महसूस करते हैं। और नतीजा यह होता है कि बच्चा चिड़चिड़ा, सुस्त, निराश और कई तरह की समस्याओं का शिकार हो जाता है। इसलिए बच्चों की संतुलित परवरिश बेहद ज़रूरी है। अधिकतर माता-पिता इस बात को ज्यादा महत्त्व नहीं देते हैं। बच्चा या तो ज़रुरत से अधिक केयर पाता है या उपेक्षित महसूस करता है।

बच्चों की ये आत्मकेंद्रित रोषपूर्ण वृत्ति पूरी व्यवस्था के विरुद्ध है। उसके अंदर असीम ऊर्जा भरी हुई है। किन्तु उस ऊर्जा का प्रयोग मात्र सफलता के लिए करने का दबाव बचपन से ही उस पर हावी होता है। और वर्तमान में सफलता पूरी तरह से व्यावसायिक हो चुकी है। सफलता कहीं भी मूल्यपरक न होकर मात्र आर्थिक और भौतिक मान ली गयी है।

किशोरावस्था तक आते-आते बच्चों के लिए समाज, राष्ट्र के साथ-साथ अब परिवार से भी दूरी बना लेना कई बार सफलता का रास्ता समझ में आता है। ऐसे में जहां तक मनोवैज्ञानिक सलाह की बात है तो उसकी आवश्यकता केवल बच्चों को ही नहीं, माता-पिता और शिक्षकों को भी है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Temper Tantrums by children towards parents
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