
Inclusive Development: विकास के लिए सबका समावेश जरूरी
Inclusive Development: भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और आने-वाले कुछ समय में यह जर्मन अर्थव्यवस्था को पार कर चौथे नंबर पर जाएगी। 2027 में जापान को भी पीछे छोड़ कर तीसरे नंबर पर जाने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय मंच भी भारत की प्रगति की प्रशंसा कर रहे हैं। फिर भी यहाँ का विरोधी पक्ष खुश नहीं है और आए दिन विपक्षी नेता भारत की प्रगति पर सवाल खड़े करते रहते हैं। भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय सर्वेक्षण करके प्रगति के आंकड़े देते रहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हाल ही में "भारतीय राज्यों पर सांख्यिकी हैंडबुक 2021-22" जारी की है। इससे भारतीय प्रगति की दिशा और दशा समझी जा सकती है।

भारतीय विकास की दिशा
भौगोलिक दृष्टि से दुनिया में भारत सातवां विशाल देश है। जनसंख्या में भी नंबर दो पर है। भारत की जनसंख्या 140 करोड़ पहुंच चुकी है और अगले साल ही भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा जहां सबसे अधिक नौजवान होंगे। विशाल होने के कारण आए दिन यहाँ नैसर्गिक आपदाएँ भी आती रहती है और उसका मुक़ाबला करने के लिए भी व्यवस्था करनी पड़ती है जो अपने आप में एक बड़ा काम है। ब्रिटिश जब भारत छोड़ गए तब देश को कंगाल करके गए थे और तब यहाँ लोग खाने के लिए भी मोहताज थे। भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी से झगड़ते इस देश ने गत 75 वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है।
अनाज में आत्मनिर्भरता
अनाज के संदर्भ में भारत ने आत्मनिर्भरता हासिल की है जो गत 75 वर्षों की उपलब्धि है। स्वतंत्रता के बाद वर्षों तक भारत अनाज आयात करके अपनी जरूरत पूरी करता था। आज की स्थिति में भारत कृषि उत्पाद निर्यातक बना हुआ है और प्रगति की यह दिशा अच्छी ही कही जाएगी। कृषि उत्पादन का सूचकांक जो 1950-51 में 46.2 था वह 2021 में 141 तक पहुँच गया है। अनाज का उत्पादन जो 1950-51 में 50.8 मिलियन टन था वो 2021 में 310.74 मिलियन टन हो गया है। 1951 में प्रति व्यक्ति प्रति दिन अनाज की उपलब्धता सिर्फ 395 किलोग्राम थी जो 2021 में बढ़कर 508 किलोग्राम हो गई है जो प्रगति ही कहलाएगी।
शहरीकरण और औद्योगीकरण
भारत में शहरीकरण और उससे संबधित औद्योगीकरण बढ़ रहा है। 35% से ज्यादा लोग अब शहरों में रहने लगे है। अनुमान है कि 2035 तक 43% से भी ज्यादा आबादी शहरों में होगी। आज भारत का हर गांव और शहर विस्तृत हो रहा है तथा ग्रामीण लोग शहर की तरफ उम्मीद के साथ पलायन कर रहे हैं। शहरों का बढ़ना कई वस्तु और सेवाओं की मांग बढ़ाता है, लोगों को रोजगार भी देता है जिससे उनकी आय भी बढ़ती है।
औद्योगिक सूचकांक जो 1951 में 8 था अब वह 143 से ज्यादा है। भारत में अब कारखानों की संख्या करीब ढाई लाख है। औद्योगिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार 28 प्रकार के उद्योगों में से ज्यादा रोजगार निर्माण करने वाले उद्योगों में खाद्य उद्योग, कपड़ा उद्योग, मूल धातु उद्योग तथा मोटर उद्योग प्रमुख है। कारखानों से संबंधित ज्यादा लोग तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र में पाये गए हैं। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।
सेवा और सुविधा बढ़ी
प्रगति की पहचान नागरिकों को मिलने वाली सेवा और सुविधाओं से भी देखी जा सकती है। भारतीय रेल दुनिया की चौथी बड़ी व्यवस्था है जो 67000 से ज्यादा रेल रूट बना चुकी है। बिजली की उपलब्धता 1947 में प्रति व्यक्ति सिर्फ 16 यूनिट थी जो 2022 में 1115 यूनिट हो गई है। सड़कें भी अब 54 लाख किलोमीटर हैं। सौ में से अब 85 लोगों के पास फोन सुविधा उपलब्ध है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के पहले 40 हजार लोगों में एक ब्रांच सुविधा थी और अब 9000 लोगों के लिए एक ब्रांच है। 1972 में एक हजार लोगों में से 16 लोगों के डिपॉज़िट खाते थे अब प्रति हजार नागरिक 1600 खाते हैं। आरोग्य की सेवाएं भी इसी तरह बढ़ी हैं। बेरोजगारी की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्र में 1000 में से 33 लोग और शहरी क्षेत्र में 67 लोग बेरोजगार हैं।
फिर भी सब कुशल मंगल नहीं
इसमें कोई शंका नहीं कि भारत प्रगति पथ पर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सब कुछ कुशल मंगल है। भारत में ऐसी दो योजनाएँ हैं - प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना - जिनके चलने का मतलब ही यह है कि भारत अब भी पिछड़ा हुआ है और इसकी अर्थव्यवस्था अपने बहुत सारे लोगों को रोजगार देने एवं उनको सही आय स्रोत देने में समर्थ नहीं है। लेकिन यह भी सराहनीय है कि भारत ऐसी योजना चला रहा है जो अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रतीक है। एक योजना में 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त अनाज देने की बात है तो दूसरी में हर काम कर सकने वाले ग्रामीण वयस्क को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी है।
प्रगति की दशा पर ध्यान देना जरूरी
राष्ट्र की प्रगति हेतु जरूरी है कि सब का विकास हो और सभी क्षेत्रों की दशा ठीक हो। लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। पहले तो भारत का प्रशासन कार्यक्षम और भ्रष्टाचार मुक्त होना जरूरी है। न्याय प्रक्रिया शीघ्र और सरल होने से भी समग्र विकास में मदद मिलती है।
दूसरे, कृषि विकास और कृषि उत्पादन बढ़ने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में समृद्धि नहीं आ रही है। ग्रामीणों का शहर की ओर पलायन कम नहीं हुआ है। किसान को अपनी फसल का किफायती दाम नहीं मिलने से कर्ज में डूबा किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। मौसम में बदलाव हो रहे हैं, जिससे कृषि जोखिम भरी हो गई है। 'फसल बीमा' जैसी योजनाएँ असफल होना इस जोखिम को और बढ़ाता है।
तीसरे, रोजगार की कमी प्रगति का एक गहरा दाग कहा जाएगा। भारत की शिक्षण व्यवस्था बेरोजगार पैदा करती है और इससे छुटकारा मिलना आवश्यक है। नई तकनीक और ऑटोमेशन की वजह से भी भारत के उद्योगों में रोजगार कम हो रहे है।
चौथे, भारत आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है और बहुत से क्षेत्रों को आयात मुक्त करना चाहता है, लेकिन जिस चीन की वजह से सुरक्षा खर्च बढ़ रहा है, उसके साथ भारत अपने लिए घाटे का व्यापार बढ़ा रहा है।
पाँचवां, भारत में अभी भी इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है और सरकार देश-विदेश के निजी पूंजी का इंतजार कर रही है। और तो और, अच्छे सरकारी उद्योगों का भी निजीकरण करने की नीति अपनाए हुए है। इसलिए यह कह सकते हैं कि भारत ने प्रगति की अच्छी दिशा में तो है लेकिन इसको समावेशी बनाना जरूरी है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)