Temple Economy: क्या है मंदिरों का स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार में योगदान?
भारत देवी-देवताओं और मंदिरों का देश है। भारत में धार्मिक पूजा (प्रवचन), त्यौहार आदि काफी बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं। भारत के कुछ प्रमुख मंदिरों में हर साल लाखों/करोड़ों लोग दूर-दूर से पहुचते हैं। जिसके कारण मंदिर के आस-पास छोटे दुकानदारों और पर्यटन से जुड़े लोगों को बड़ा फायदा होता है। प्रत्येक छोटे बड़े मंदिर के कारण आसपास लगी दुकानों, स्टालों, उन पर बिकने वाले सामान के निर्माण और मंदिर आने जाने वाले श्रद्धालुओं के परिवहन के काम में लगे अनेक लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिलता है।
भारत
में
मंदिरों
का
अर्थशास्त्र
एनएसएसओ
(राष्ट्रीय
नमूना
सर्वेक्षण
संगठन)
के
मुताबिक
भारत
की
कुल
घरेलू
सकल
उत्पाद
(जीडीपी)
में
धार्मिक
यात्राओं
की
कुल
हिस्सेदारी
2.32
प्रतिशत
है
और
भारत
में
मंदिरों
की
इकोनॉमी
3
लाख
करोड़
है।
आपको
जानकर
हैरानी
होगी
कि
55
प्रतिशत
हिंदू,
धार्मिक
यात्राओं
में
अपने
यात्रा
व्यय
का
50
प्रतिशत
हिस्सा
खर्च
करते
हैं।
एनएसएसओ द्वारा भारतीयों के व्यय का तुलनात्मक अध्ययन किया, जिसमें भारतीयों का धार्मिक यात्रा पर प्रति व्यक्ति व्यय लगभग 2,717 रुपए प्रतिदिन, सामाजिक यात्रा पर व्यय 1,068 रुपए प्रतिदिन, जबकि शैक्षणिक यात्रा पर व्यय 2,286 रुपए प्रतिदिन है। यानि सभी यात्रा खर्चों में धार्मिक खर्च दोगुना है।
भारत में धार्मिक यात्रा पर खर्च 1316 करोड़ रुपए प्रतिदिन होता है। वहीं धार्मिक यात्रा पर सालाना खर्च 4.74 लाख करोड़ रुपए है।
एनएसएसओ का आंकड़ा बताता है कि भारतीय बिजनेस यात्रा से ज्यादा तीर्थांटन करते हैं और शिक्षा हेतु की जाने वाली यात्रा से ज्यादा खर्च तीर्थ यात्रा पर करते हैं। सरकार खर्च के इसी पैमाने को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ने की कोशिश भी कर रही है।
भारत में धनी मंदिर
भारत का सबसे धनी मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर हैं। इस मंदिर के खजाने में हीरे, सोने के गहने और सोने-चांदी की मूर्तियां हैं। माना जाता है कि मंदिर के पास 20 अरब डॉलर की संपत्ति है और गर्भ गृह में 500 करोड़ रूपये की भगवान विष्णु जी की मूर्ति है। इस मंदिर की देखभाल त्रावणकोर के शाही परिवार द्वारा की जाती है।
धनी मंदिरों में दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर है। वैष्णव समाज का यह मंदिर दान के मामले में सबसे अमीर मंदिर है। हर साल 680 करोड़ रुपए मंदिर में दान आता है। तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु जी का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के पास 9 टन सोना, 14000 करोड़ रुपए बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में रखे हैं।
तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र के शिरडी में साईं बाबा का मंदिर हैं। हर वर्ष मंदिर को 380 करोड़ का दान आता है। इसके अलावा बैंकों में 460 किलो सोना, 5428 किलो चांदी और डॉलर-पाउंड जैसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा को मिलाकर 18000 करोड़ रुपए जमा है।
शक्तिपीठ में से एक माता वैष्णों देवी मंदिर में हर वर्ष 500 करोड़ का दान आता है। इस मंदिर में देश और दुनिया से लाखों लोग हर वर्ष दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर जम्मू-कश्मीर में स्थित हैं। इस मंदिर के कारण आस-पास रहने वाले हजारों कश्मीरी लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है।
उज्जैन महाकाल मंदिर का भी खजाना भक्तों ने दिल खोल कर भरा है। मंदिर समिति के मुताबिक वर्ष 2022 में 81 करोड़ का दान मंदिर ने एकत्रित किया, जो वित्तीय वर्ष पूरा होने पर 100 करोड़ पार होने का अनुमान है। इसके अलावा सितंबर 2022 तक मंदिर के पास 34 लाख का सोना तथा 88 लाख 68 हजार की चांदी प्राप्त हुई है।
मीनाक्षी मंदिर मदुरै (तमिलनाडू) की सालाना कमाई 6 करोड़ रुपए है। इसमें हर रोज लगभग 30 से 40 हज़ार लोग दर्शन करने आते हैं।
मंदिर ही नहीं, कई तरह के धार्मिक आयोजनों में भी लाखों, करोड़ों का कारोबार होता है। 2019 को प्रयागराज में 50 दिन तक चलने वाले कुभ मेले में उत्तर प्रदेश सरकार को लगभग 1 लाख करोड़ का राजस्व मिला। विदेशों से आए पर्यटकों के कारण एयरलाइंस कंपनियों को 1.5 लाख करोड़ मिला। इसके अलावा 49 हज़ार टूर ऑपरेटर, 95 हज़ार पर्यटन और मेडिकल से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिला।
मंदिर
कहाँ
करता
है
खर्च
केरल
का
पद्मनाभ
मंदिर
वेतन
व
आने
वाले
भक्तों
पर
करोड़ों
रुपए
सालाना
खर्च
करता
है।
विशाल
खजाने
के
बावजूद
मंदिर
की
आय
का
अधिकांश
भाग
व्यय
हो
जाता
है
और
कोरोना
संकट
के
दौरान
मंदिर
का
व्यय
उसकी
आय
से
अधिक
हो
गया
था।
शिरडी
साईं
बाबा
ट्रस्ट
द्वारा
अपनी
आय
का
50
फीसदी
हिस्सा
चिकित्सा,
शिक्षा
आदि
कार्यों
में
खर्च
किया
जाता
है।
इसके
अलावा
सुपर-स्पेशिलिटी
अस्पताल,
सड़क
निर्माण,
जल
प्रबंध
और
शिरडी
हवाई
अड्डे
के
विकास
के
साथ
ही
मुख्यमंत्री
राहत
कोष
में
भी
योगदान
किया
है।
ये भी पढ़ें:- Indian Constitution: भारतीय संविधान के साथ की गई सबसे चर्चित 'छेड़छाड़'
मंदिर
दान
या
ख़जाने
पर
है
क्या
कोई
टैक्स?
किसी
भी
धार्मिक
संस्थान
पर
कोई
टैक्स
का
प्रावधान
नहीं
है।
धार्मिक
संस्थानों
को
मिले
दान
को
आय
नहीं
माना
जाता
है।
इसलिए
न
उस
पर
आयकर
लगता
है,
न
कोई
सेल्स
टैक्स
या
सर्विस
टैक्स।