Collegium System: धनखड़, रिजीजू की गुगली में फंस गई कांग्रेस
हाईकोर्ट के जजों की नियुक्तियों में यदि राज्य सरकारों की सुनी जाएगी, तो वे कोलेजियम की मनमानी के खिलाफ मोदी सरकार के साथ खड़े होंगे। लेकिन कोलेजियम सिस्टम का समर्थन करके कांग्रेस ने अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मार दी है।
Collegium System: विधि मंत्री किरन रिजीजू द्वारा सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखी चिठ्ठी की बड़ी चर्चा है| मुद्दा वही है, जिसकी चर्चा पिछले डेढ़ महीने से चल रही थी| जजों की नियुक्ति को लेकर पांच जजों के कोलेजियम के बारे में पहले ज़ुबानी तीर चल रहे थे और अब कागजी तीर चलने शुरू हो गए हैं| इस चिठ्ठी में क्या क्या लिखा है, पूरी बात तो अभी सामने नहीं आई है, लेकिन इतनी बात जरुर सामने आई है कि सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्टों के कोलेजियम में सरकारी प्रतिनिधि रखने की मांग की गई है|
कितने प्रतिनिधि रखने की बात कही गई है, यह बात अभी साफ़ साफ़ नहीं आई है| सरकार ने जो न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाया था, उसमें तो विधिमंत्री के अलावा दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों का जिक्र था, जिनका चयन प्रधानमंत्री, सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष का नेता मिलकर करते| इसे सुप्रीमकोर्ट ने ठुकरा दिया था| अब सरकार अगर कोलेजियम में बहुमत पर जोर नहीं भी देगी, तो भी बराबरी तो चाहेगी ही|
मोदी का मिशन साफ़ है कि न्यायपालिका में भाई भतीजावाद और परिवारवाद को खत्म करना है| कोलेजियम के माध्यम से जज एक दूसरे के रिश्तेदारों को वैसे ही जज बना रहे हैं, जैसे परिवारवादी दलों में विधायक सांसद बनते हैं| जजों की नियुक्तियों में कैसे परिवारवाद चल रहा है, और कैसे एक दूसरे के बेटे बेटी को प्रमोट किया जा रहा है, आप को उस का उदाहरण देता हूँ।
जब वाई.वी. चन्द्रचूड चीफ जस्टिस थे, तो उन्होंने अपनी सिफारिश से बी.एन. किरपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनवाया था| बाद में सुप्रीमकोर्ट के जिस कोलिजियम में जस्टिस बी.एन. किरपाल थे, उस कोलेजियम ने जस्टिस वाई.वी. चन्द्रचूड के बेटे मौजूदा चीफ जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड को 39 साल की उम्र में ही बोम्बे हाईकोर्ट का जज बनवाया था, जबकि आयु 40 साल होनी चाहिए थी| अब जब पिछले साल डी.वाई. चन्द्रचूड कोलेजियम के सदस्य थे, तो बी.एन. किरपाल के बेटे सौरभ किरपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनवाने के लिए सिफारिश भेजी गई थी| अभी हाल ही में सरकार ने जो नाम अस्वीकार कर के वापस भेजे हैं, उनमें सौरभ किरपाल का नाम भी है| अब आप समझ गए होंगे कि कोलेजियम बनने के पहले से यह भाई भतीजावाद चल रहा है, जिस पर अब मोदी निर्णायक चोट करने की ठान चुके हैं|
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केशवानंद भारती केस के फैसले की आलोचना करके शांत समुद्र में पत्थर फैंका था, वह राजनीतिक गुगली थी| केशवानंद भारती केस के फैसले से ही कोलेजियम बनाकर मनमानी करने का रास्ता खुला था| जिसमें कहा गया था कि संसद संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर नहीं बदल सकती| संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर तो यह था कि जजों की नियुक्ति में जहां राष्ट्रपति द्वारा चीफ जस्टिस से सलाह लेने की बात कही गई थी, तो वह सिर्फ सलाह थी, राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं थी|
इसके अलावा जजों के नाम सरकार की ओर से चलाए जाते थे, लेकिन 1993 में उलटा कर दिया कि जिन नामों पर विचार होगा, वह कोलेजियम खुद तय करेगा| और कोलेजियम के फैसले सरकार और राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होंगे| तो बेसिक स्ट्रक्चर तो खुद सुप्रीमकोर्ट ने 1993 में कोलेजियम बना कर भंग किया| सरकार अब यह तब्दीली भी चाहती है कि नामों की सिफारिश राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी करेंगी| सरकार का साफ़ संदेश है या तो बदलो या कोलेजियम सिस्टम खत्म होगा|
हालांकि 1993 में सुप्रीमकोर्ट ही नहीं, 1975 में इंदिरा गांधी ने भी इमरजेंसी लगा कर और 1976 में 42वां संविधान संशोधन कर के संविधान के पूरे बेसिक स्ट्रक्चर को बदल डाला था| तब सुप्रीमकोर्ट कुछ नहीं बोली, जब लोकसभा की अवधि बढाकर छह साल कर दी गई थी, या जब यह संशोधन कर दिया गया था कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती|
केशवानंद भारती फैसले के बाद संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को खत्म करने वाली कांग्रेस ने अब केशवानंद भारती फैसले की आलोचना पर कड़ी आपत्ति दायर की है| कांग्रेस ने केशवानंद भारती फैसले का समर्थन करके साफ़ संदेश दे दिया कि वह कोलेजियम प्रणाली का समर्थन करेगी| यही वह गुगली थी, जो जगदीप धनखड़ ने फैंकी थी| विधि मंत्री किरिन रिजीजू ने जगदीप धनखड़ का अधूरा काम पूरा कर दिया है|
आप देखिए चिठ्ठी 6 जनवरी को लिखी गई, लेकिन उसे जगदीप धनखड़ के भाषण और उस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया के बाद 16 जनवरी को लीक किया गया| विधि मंत्री ने इस चिठ्ठी में कहा है हाईकोर्टों की कोलेजियम में राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे| कांग्रेस की तो सिर्फ तीन राज्यों में सरकारें हैं, पंजाब, दिल्ली, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश , तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और पूर्वोतर के पांच राज्यों में तो बाकी अलग अलग दलों की सरकारें हैं|
हाईकोर्ट के जजों की नियुक्तियों में उन 15-16 दलों की सुनी जाएगी, तो वे कोलेजियम की मनमानी के खिलाफ मोदी सरकार के साथ खड़े होंगे| अगर सुप्रीमकोर्ट से बातचीत करके बात नहीं बनती, और मोदी सरकार कोलेजियम सिस्टम हटाने के लिए कोई नया बिल बना कर संसद में लाती है और उसमें हाईकोर्टों के जजों की नियुक्ति में राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का प्रावधान होता है तो संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस अलग थलग हो जाएगी|
मेरा शुरू से मानना रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जजों की नियुक्तियों में जजों की मनमानी को हर हालत में खत्म करके रहेंगे| अपने 13 जनवरी के लेख में मैंने यह भी कहा था कि अपना एजेंडा पूरा करने के लिए ही प्रधानमंत्री जगदीप धनकड़ को ढूंढ कर लाए हैं, जो राम जेठमलानी की तरह न्यायपालिका से दो दो हाथ करने का माद्दा रखते हैं|
जब किरिन रिजीजू को विधि मंत्री बनाया गया था, तब भी मुझे हैरानी हुई थी। उस समय रवि शंकर प्रसाद मंत्रिमंडल में थे, लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले का केस उन्हीं ने खड़ा किया, लड़े और जीते थे| रविशंकर के मंत्री होने के बावजूद किरिन रिजीजू को विधि मंत्री इसी एजेंडे के अंतर्गत बनाया गया था, क्योंकि वह अरुण जेटली कैंप के ही माने जाते थे| अब जगदीप धनखड़ और किरिन रिजीजू की जोड़ी अपने मिशन ज्यूडिशियरी में जुट गई है|
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)