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Medha Patkar: मेधा पाटकर कैसे बन गई गुजरात का चुनावी मुद्दा

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Gujarat assembly elections 2022 political issue on Medha Patkar

Medha Patkar: राहुल गांधी ने गुजरात विधानसभा के चुनाव में राजकोट और सूरत में दो चुनावी रैलियां करने के लिए 21 नवंबर को भारत जोड़ो यात्रा स्थगित की है। खबर है कि वहां कांग्रेस की हालत काफी खस्ता हो रही है और कांग्रेस के भीतर ही राहुल गांधी के प्रचार के लिए नहीं आने की आलोचना शुरू हो गई थी।

Gujarat assembly elections 2022 political issue on Medha Patkar

लेकिन राजनीति के अनाड़ी राहुल गांधी ने गुजरात पहुंचने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी को ऐसा मुद्दा थमा दिया था, जिसका अब उन्हें जवाब देते नहीं बन रहा। महाराष्ट्र में प्रवेश के बाद से राहुल गांधी की यात्रा विवादों में फंसना शुरू हो चुकी है, जो अब उनका पीछा गुजरात और मध्य प्रदेश में भी कर रही है।

महाराष्ट्र में वीर सावरकर के खिलाफ बार बार अपमानजनक टिप्पणी करके प्रदेश के कांग्रेस समर्थकों को रूष्ट कर दिया तो वहीं सहयोगी दल शिवसेना के साथ टकराव ले लिया। अब गुजरात पहुंचने से पहले, बीस साल तक नर्मदा बाँध का निर्माण रोकने वाली मेधा पाटकर को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल कर के गुजरात में कांग्रेस की जड़ों में मठ्ठा डाल लिया।

आम आदमी पार्टी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में खुद को रेस में शामिल करने से पहले मुश्किल से मेधा पाटकर से पीछा छुड़ाया था। विधानसभा चुनाव शुरू होने से काफी पहले भारतीय जनता पार्टी ने यह कहते हुए आम आदमी पार्टी के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था कि वह नर्मदा परियोजना का विरोध करने वाली अर्बन नक्सल मेधा पाटकर को मुख्यमंत्री के तौर प्रोजेक्ट करने वाली है।

केजरीवाल को मेधा पाटकर के नाम से पीछा छुडाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने एनजीओ के दिनों के दोस्तों के माध्यम से मेधा पाटकर से बयान दिलवाया कि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही आम आदमी पार्टी छोड़ दी थी और उन का गुजरात के चुनाव से कुछ लेना देना नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मेधा पाटकर मुम्बई ईस्ट से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार थी।

30 अगस्त को मेधा पाटकर ने ट्विट किया - "मैंने 2014 में ही कुछ महीनों के भीतर पार्टी छोड़ दी और मैं कभी भी दलगत राजनीति का हिस्सा नहीं रही हूं।" फिर सितंबर में केजरीवाल खुद मेधा पाटकर के नाम पर भड़के और अंतत: ईसुदान गढवी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना कर मेधा पाटकर से पीछा छुडाया।

अब राहुल गांधी ने मेधा पाटकर का नाम कांग्रेस के साथ जोड़ कर भाजपा को अपने खिलाफ जबर्दस्त मुद्दा थमा दिया है। गुजरात में जिसका भी नाम मेधा पाटकर से जुड़ेगा उसे चुनावी घाटा होगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह कांग्रेस के मेधा पाटकर प्रेम को खूब भुना रहे हैं, क्योंकि वह 30 साल तक नर्मदा बाँध परियोजना में बाधा डालती रही थीं।

हालांकि नर्मदा बांध परियोजना का नींव का पत्थर 1961 में जवाहर लाल नेहरू ने रखा था, लेकिन कांग्रेस सरकारों ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। अस्सी के दशक में जब कांग्रेस की राज्य सरकार ने गंभीरता से लेना शुरू किया और वर्ल्ड बैंक से कर्ज भी मंजूर हुआ, तब मेधा पाटकर ने नर्मदा विरोधी आन्दोलन शुरू कर दिया।

नर्मदा परियोजना का विरोध करती रही मेधा पाटकर और गुजरात सरकार के बीच सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाईयों का लंबा इतिहास रहा है। इसे समझ लेना जरूरी है, ताकि यह अंदाज लग सके कि कांग्रेस की मेधा पाटकर के साथ साझेदारी उसे कितना नुकसान पहुंचा सकती है।

दिसम्बर 1990 में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने परियोजना के खिलाफ दिल्ली के राजघाट से मध्य प्रदेश से होते हुए गुजरात तक पदयात्रा निकाली थी, जिसमें विदेशी धन से प्रायोजित विभिन्न एनजीओ के 6000 लोग शामिल हुए। नतीजा यह निकला कि वर्ल्ड बैंक ने 1991 में बांध की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन किया।

आयोग पर दबाव बढाने के लिए 1993 में मेधा पाटकर ने भूख हडताल शुरू कर दी। उधर 1993 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आ गयी। सत्ता में आने के बाद मध्य प्रदेश की दिग्विजय सरकार ने तो मेधा पाटेकर के आन्दोलन के सामने पूरी तरह घुटने ही टेक दिए।

उधर वर्ल्ड बैंक के आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि परियोजना का कार्य वर्ल्ड बैंक और भारत सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं हो रहा है। इस तरह वर्ल्ड बैंक ने इस परियोजना से 1994 में अपने हाथ खींच लिए। लेकिन वर्ल्ड बैंक के परियोजना से हाथ खिंच लेने के बावजूद 1995 में गुजरात में सत्ता में आई भाजपा सरकार ने परियोजना जारी रखने का निर्णय लिया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दर्ज कर के यह आदेश हासिल कर लिया कि विस्थापितों के पुनर्वास तक सरकार बांध के बाकी कार्यों को रोक दे।

गुजरात की भाजपा सरकार ने परियोजना के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट में जोरदार ढंग से केस लड़ा। लंबी लड़ाई के बाद 18 अक्टूबर, 2000 को सुप्रीमकोर्ट ने बांध के कार्य को फिर शुरू करने और इसकी उचाई 90 मीटर तक बढ़ाने की मंजूरी दे दी।

इन सब बाधाओं के बावजूद 2002 में मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने और 2003 में मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद परियोजना पर तेजी से काम शुरू हुआ। तब मेधा पाटकर ने मोदी सरकार के साथ दो दो मोर्चों पर लड़ाई शुरू कर दी। वह 2002 के दंगों को ले कर विदेश पोषित एनजीओ की ओर से मोदी के खिलाफ चलाए गए आन्दोलन की भी अगुआ बन गई।

दूसरी तरफ 2006 में वह एक बार फिर नर्मदा परियोजना के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट पहुंच गई थी। मेधा पाटकर के साथ लंबी लड़ाई के बावजूद नर्मदा परियोजना को पूरा करना और नर्मदा का पानी गुजरात के सूखा क्षेत्रों के अलावा राजस्थान तक पहुंचाना गुजरात में मोदीराज की सब से बड़ी उपलब्धि है। उसे भुनाने का मोदी को एक बार फिर मौक़ा मिल गया है।

इसकी तैयारी भाजपा ने तभी शुरू कर दी थी, जब मेधा पाटकर का नाम आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर उभरा था। मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की कोतवाली थाना पुलिस ने बाकायदा उनके खिलाफ साढ़े तेरह करोड़ रूपए के गबन का एक मामला दर्ज किया है।

बड़वानी जिले के राजपुर ब्लॉक के टेमला गांव के प्रीतमराज बड़ोले ने शिकायत दर्ज करवाई है कि आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के नाम पर मिली दान की राशि का दुरुपयोग राष्ट्र विरोधी सहित अन्य गतिविधियों में किया गया है। डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा राशि की बैंक से नकद निकासी की गई।

मेधा पाटकर द्वारा संचालित ट्रस्ट के 10 खातों में से 4 करोड़ से अधिक राशि की अज्ञात निकासी हुई है। ट्रस्ट ने बच्चों की पढ़ाई के लिए एकत्रित किए दान का रुपया विकास परियोजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए डायवर्ट किया। आरोप यह भी है कि मेधा पाटकर के सेविंग अकाउंट में 19 लाख से अधिक राशि आई है, जबकि मेधा ने कोर्ट में आय मात्र 6 हजार रुपए प्रतिवर्ष दिखाई है।

यह भी पढ़ें: Election Commissioner: जानें कौन हैं अरुण गोयल, जिन्हें गुजरात चुनाव से पहले बनाया चुनाव आयुक्त

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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