GN Saibaba: दिल्ली विश्वविद्यालय का माओवादी शिक्षक पुलिस के हत्थे कैसे चढ़ा
अगस्त 2013 में गढ़चिरौली पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि महेश करीमन टिर्की, पांडू पोरा नारोते प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) के साथ मिलकर काम कर रहे है। अतः पुलिस ने उन पर नजर रखना शुरू कर दिया।
25 अगस्त 2013 में दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र हेम मिश्रा और पांडू के बीच संबंधों की जानकारी पुलिस को मिली। अतः दोनों को एफआईआर (FIR) संख्या 3017/13 के अंतर्गत गिरफ्तार कर उन पर यूएपीए - Unlawful Activities Prevention Act (UAPA) लगा दिया गया।
पूछताछ में महेश और पांडू ने पुलिस को बताया कि उन्हें एक नक्सली महिला डीवीसी नार्मदाक्का (DVC Narmadakka) ने बताया की हेम मिश्रा कुछ जरुरी सामान के साथ दिल्ली से आ रहा है। उसे अहेरी से गोरेवाडा के जंगलों में सुरक्षित पहुँचाना है। डीवीसी नार्मदाक्का सीपीआई (माओवादी) और उसके संगठन आरडीएफ (Revolutionary Democratic Front - RDF) से जुडी थी।
हेम मिश्रा ने हिरासत में पुलिस को बताया कि जीएन साईंबाबा ने उसे एक मेमोरी कार्ड को कागज में लपेटकर डीवीसी नार्मदाक्का को देने के लिए भेजा था। हेम मिश्रा नक्सल - लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिज्म Left Wing Extremism (LWE) के लिए कूरियर का काम करता था। 2 सितम्बर 2013 को हेम मिश्रा की जानकारी के आधार पर प्रशांत राही और विजय टिर्की को भी गिरफ्तार किया गया था।
सितम्बर 2013 से जनवरी 2014 के बीच, हेम मिश्रा और प्रशांत राही से मिली जानकारियों के बाद पुलिस ने 9 जनवरी 2014 को दिल्ली स्थित जीएन साईंबाबा के घर छानबीन की। यह छानबीन जांच अधिकारी सुभास बवाचे के नेतृत्व में की गयी।
16 फरवरी 2014 को पुलिस ने जुडिशीयल मजिस्ट्रेट ऑफ़ फर्स्ट क्लास, अहेरी की कोर्ट में पाँचों अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। फिर 9 मई को साईंबाबा को भी गिरफ्तार कर कोर्ट के समक्ष पेश किया गया।
15 मई 2014 को जाँच एजंसियों ने साईंबाबा के ईमेल और अन्य प्राप्त सबूतों के आधार पर खुलासा किया कि उसने छत्तीसगढ़ में माओवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से किसी एक छात्र को भर्ती किया है। उस विद्यार्थी को साईंबाबा 'गोस्वामी' के नाम से संबोधित करता था।
13 जून 2014 को डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट, गढ़चिरौली ने साईंबाबा को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन्हें ठीक प्रकार से मेडिकल सुविधाएँ दी जा रही है। मगर बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने विजय टिर्की को जमानत दे दी।
25 अगस्त 2014 को नागपुर पीठ ने साईंबाबा की जमानत अर्जी ख़ारिज कर दी और कहा कि वे प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से जुड़े है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस को मिले दस्तावेजों के आधार पर प्रतिबंधित माओवादी, साईंबाबा की मदद से हिंसक गतिविधियों को फैलाना चाहते थे। हालाँकि कोर्ट ने प्रशांत राही को जमानत पर रिहा कर दिया।
17 नवम्बर 2014 को सेशन जज ने साईंबाबा की जमानत याचिका फिर ख़ारिज कर दी और उसे दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया। 4 मार्च 2015 को एक बार फिर साईंबाबा की जमानत अर्जी को रद्द कर दिया गया और कोर्ट ने उसे मिल रही मेडिकल सुविधाओं पर संतोष जताया।
18 अप्रैल 2015 को साईंबाबा भूख हड़ताल पर चला गया और कुछ दिनों बाद एक बार फिर से सेशन कोर्ट में जमानत याचिका दायर की। कोर्ट ने फिर से जमानत देने से मना कर दिया और साईंबाबा को मिल रही मेडिकल सुविधाओं पर संतुष्टि व्यक्त की।
10 जून 2015 को पूर्णिमा उपाध्याय ने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक मेल भेजकर साईबाबा को मेडिकल हालात पर जमानत देने का अनुरोध किया। न्यायाधीश ने इस विषय पर स्वतः संज्ञान लेते हुए ईमेल को याचिका (Criminal PIL ST। No। 4/2015) में बदलकर मामलें पर सुनवाई शुरू कर दी।
आखिरकार 30 जून 2015 को साईबाबा को तीन महीनें के लिए इलाज के बहाने जमानत मिल गयी। कुछ दिनों बाद हेम मिश्रा को भी जमानत दे दी गयी।
जमानत की अवधि खत्म होने पर साईबाबा ने 20 नवम्बर 2015 को फिर जमानत के लिए अर्जी दी जिसे 23 दिसंबर 2015 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया। इसी बीच पुलिस ने साईबाबा पर एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कर दी। इसके बाद साईबाबा ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी और उसे वहां से 4 अप्रैल 2016 जमानत मिल गयी।
7 मार्च 2017 को इन पाँचों अभियुक्तों पर गढ़चिरौली सेशन कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। जज सूर्यकांत शिंदे की कोर्ट को पुलिस ने बताया कि इन सभी को भारत के खिलाफ युद्ध थोपने, हिंसक एवं अराजक गतिविधियाँ फैलाने, और प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से सम्बन्ध रखने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस ने यह भी बताया कि छानबीन के दौरान साईबाबा के पास से माओवादी गतिविधियों को भारत में चलाने की योजनाओं का प्रारूप मिला है। 'नक्सलबाड़ी एक ही रास्ता' के पम्पलेट भी साईंबाबा के घर से मिले है।
पुलिस ने बताया कि साईंबाबा खुद को आरडीएफ का डिप्टी सेक्रेटरी बताता है। पुलिस को उसके घर से एक वीडियो क्लिप (Exh।3/films /s1/RDF/2/ VIDEO _TS /VTS_01_1) भी मिली जिसमें वह कश्मीर में अलगाववाद को समर्थन देने की बातें करता हुआ दिखाई देता है। इसके अलावा, साईबाबा, लेनिन और माओ के लोकतंत्र विरोधी हिंसक विचारों को भारत में थोपना चाहता है।
हेम मिश्रा से मिली जानकारी में पुलिस ने कोर्ट को बताया कि उसने इन माओवादी गतिविधियों को चलाने के लिए प्रकाश और जड्डू नाम के माओवादियों से पैसे मांगे थे और उसे पहले 1।5 लाख और फिर 75 हजार रुपए भी मिले थे।
पुलिस ने कोर्ट को बताया कि साईबाबा ने लन्दन, हॉलैंड और बर्मिंघम की विदेश यात्रायें की थी। साईंबाबा ने कई भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल माओवादियो के साथ आईएलपीएस (International League of Peoples' Struggle) के टीआईए (Third International Assembly) में शिरकत की थी। आईएलपीएस की भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कई जानकारियां सामने आ चुकी है।
इन दलीलों के आधार पर कोर्ट ने पाँचों अभियुक्तों को यूएपीए और आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के अंतर्गत दोषी करार दिया। महेश टिर्की, पांडू, प्रशांत, साईंबाबा एवं हेम मिश्रा को आजीवन कारावास और विजय टिर्की को अलग-अलग मामलों में पांच से दस साल का सश्रम कारावास सुनाया
14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे उच्च न्यायालय की दो सदस्यों वाली खंडपीठ - जस्टिस अनिल पंसारे और जस्टिस रोहित देव ने प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से जुड़े साईंबाबा सहित महेश टिर्की, पांडु पोरा नारोते, हेम मिश्रा और प्रशांत को भी बरी कर दिया।
उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मुकदमे की कार्यवाही के लिए यूएपीए कानून की धारा 45 (1) के तहत जरूरी वैध अनुमति नहीं ली गई थी। अतः इसके अभाव में गढ़चिरौली सेशन कोर्ट के फैसलें को अमान्य घोषित कर दिया।
हालाँकि, अगले ही दिन महाराष्ट्र सरकार की अपील पर उच्चतम न्यायालय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस फैसलें पर रोक लगा दी और इन सभी माओवादियों के रिहा होने की उम्मीदों पर फिलहाल पानी फिर गया है।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)