Delhi Police Pink Booth: दिल्ली में महिला सुरक्षा के दावों की जमीनी सच्चाई हवा हवाई है
दिल्ली वालों को पिंक पुलिस बूथ दिखाकर विश्वास दिलाया गया था कि अब राजधानी में महिलाएं सुरक्षित हैं लेकिन कंझावला कांड ने दिल्ली पुलिस के दावों को हवा हवाई साबित कर दिया है।
Delhi Police Pink Booth: 31 जनवरी की रात को जब पूरा देश नए साल के जश्न में डूबा था, तब राजधानी दिल्ली की सड़कों पर एक 20 साल की एक युवती (अंजलि सिंह) को सड़कों पर घसीटा जा रहा था। जब पुलिस सूचना पाकर पहुंची, तो शव देखकर हैरान रह गई। उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। लाश की हालत ऐसी थी जिसे देखकर किसी का भी दिल दहल जाए।
पुलिस का कहना है कि 5 कार सवार युवकों ने युवती की स्कूटी को टक्कर मारी। इसके बाद युवती का शव कार में फंस गया। इसके चलते वह घिसटती चली गई। जब आरोपियों ने आगे कार रोकी तो देखा कि एक शव उनके कार में फंसा है। इसके बाद वे शव को सड़क पर छोड़कर भाग गए। लेकिन पुलिस जो नहीं बता रही है वह यह कि रास्ते में कई पुलिस बैरिकेड भी आए थे। चश्मदीदों ने दर्जनों फोन किए लेकिन पुलिस नहीं जगी।
इस घटना के एक चश्मदीद के मुताबिक 'जब वह पुलिस पीसीआर को इस अपराध की सूचना दे रहा था, उसमें मौजूद पुलिस वाला नशे में था। जब इस मामले ने मीडिया में तूल पकड़ा तो आनन फानन में कथित आरोपियों दीपक खन्ना (26), अमित खन्ना (25), कृष्ण (27), मिथुन (26) और मनोज मित्तल की गिरफ्तारी हुई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस ने इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 279 (तेजी से गाड़ी चलाना) और 304-ए (लापरवाही से मौत) के तहत मामला दर्ज किया है।
मतलब अंदर जाने से पहले इन अपराधियों के बाहर आने का रास्ता साफ कर दिया गया है। स्कूटी सवार 20 वर्षीय युवती अंजलि को टक्कर मारने के बाद कई किलोमीटर तक उसके शरीर को घसीटते हुए ले जाने वाले हत्यारों को यह एहसास ही नहीं हुआ कि उनकी कार में एक महिला दबकर मर चुकी है। यह सिर्फ एक महिला की हत्या का नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था के पतन का मामला है।
एक साल भी नहीं हुआ, जब दिल्ली में पिंक पुलिस बूथ की खूब चर्चा हो रही थी। बताया जा रहा था कि दिल्ली में महिलाओं का सड़क पर चलना अब सुरक्षित होगा। इस नए पुलिस बूथ का उद्देश्य ही था कि सड़कों पर महिला पुलिस अधिक संख्या में दिखाई दें। महिलाओं के साथ सड़क पर होने वाले अपराध में कमी आए। महिलाओं का दिल्ली पुलिस पर विश्वास बढ़े और इससे महिला शिकायतकर्ताओं में पुलिस चौकी तक आने में किसी प्रकार की झिझक ना रहे। उन्हें चौकी तक आने में डर ना लगे और उनकी शिकायत पर त्वरित कार्रवाई हो।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय की यह एक दूरदर्शी योजना है। जिसको लागू करने में दिल्ली पुलिस असफल दिखाई दे रही है। गृह मंत्रालय के सेफ सिटी परियोजना के अन्तर्गत पिंक बूथ खोलने की बात कही गई थी। इस परियोजना को लेकर जितनी मीडिया कवरेज हुई। यदि उसी गति से जमीन पर भी काम होता तो महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली की सूरत कुछ और होती।
पिंक पुलिस बूथ को उन स्थानों पर ज्यादा खोलने की जरूरत थी, जहां पर महिलाओं का आवागमन अधिक है। उस बूथ पर महिला पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाना था। जहां महिलाओं से जुड़ी शिकायतों का निपटारा किया जाता। पिंक पुलिस बूथ में महिलाओं की सुविधा के लिए रेस्ट रूम का होना, एक वॉशरूम, शिकायत कक्ष, किचन से लेकर प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था तक की बात परियोजना का हिस्सा है लेकिन जब आप किसी पिंक पुलिस बूथ पर जाते हैं तो अधिकांश बूथ में यह सारी व्यवस्थाएं खानापूर्ति ही नजर आती हैं। जो महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली पुलिस के रवैए पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।
तिमारपुर के अन्तर्गत संगम विहार और वजीराबाद को जोड़ने वाली सड़क पर एक पुलिस चौकी हुआ करती थी, जहां हमेशा आधा दर्जन से अधिक पुलिस के सिपाही मौजूद होते थे। वहां एक पुलिस बैरिकेड भी लगा होता था। जिसकी वजह से सड़क पर होने वाली छीना झपटी और छोटे मोटे अपराध पर लगाम भी लगा हुआ था। एक दिन दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को लगा कि यहां एक पिंक पुलिस बूथ बनाना है और गुलाबी रंग से उस चौकी को रंगकर, पिंक पुलिस बूथ का नाम दे दिया गया।
उसके बाद से ही वह चौकी विरान ही रहने लगी है। पिंक पुलिस बूथ महिलाओं में सुरक्षा का एहसास दिलाने के लिए था लेकिन वजीरबाद में पुलिस के काम काज को इसने मुश्किल बनाने का काम किया। जहां हमेशा पुलिस के खड़े होने का विश्वास स्थानीय लोगों को रहता था। अब पहले जैसी बात वहां नहीं रह गई। पिंक पुलिस बूथ भी आम तौर पर बंद ही रहता है।
एक समाचार पत्र ने अपने रियलिटी टेस्ट में पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाना अन्तर्गत आने वाले आनंद विहार पिंक पुलिस बूथ के बाहर ढेर सारा कचरा पसरा हुआ पाया। बूथ के बाहर ताला लटक रहा था। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह कभी कभी ही खुलता है। जबकि औद्योगिक क्षेत्र होने और रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन होने की वजह से यहां महिलाओं के साथ छेड़खानी और छीना झपटी की वारदात अक्सर होती है। दिलशाद गार्डन पिंक पुलिस बूथ पर महिला पुलिस बहुत कम ही दिखाई देती हैं। सत्यवती कॉलेज के पास जो पिंक बूथ बना है, उसका भी हाल दिलशाद गार्डन जैसा ही मिला। इन उदाहरणों से अंतर किया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस महिला सुरक्षा को लेकर दावे क्या कर रही है और उन दावों की जमीनी सच्चाई क्या है?
पिछले साल नवंबर की बात है, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को सड़कों से मानव रहित बैरिकेड हटाने को कहा था। जगह जगह दिल्ली पुलिस बैरिकेड लगाकर आम आदमी को अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाती है लेकिन वास्तव में यह उपस्थिति का एहसास नहीं होता बल्कि पुलिस की कई बार लापरवाही होती है।
लापरवाही की बात को इस तरह भी समझा जा सकता है कि दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में जो स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल किया है, उसमें कहा है कि अबसे दिल्ली की सड़कों पर मानवरहित बैरिकेड नहीं रहेंगे। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर मानव रहित बैरिकेड हटा लिए थे। मगर अब भी मानव रहित बैरिकेड सड़कों पर पड़े रहते हैं। यह पुलिस की लापरवाही नहीं तो और क्या है?
08 नवंबर को दिल्ली पुलिस का एक ट्वीट है। जिसमें वह कह रही है कि यदि सड़क पर कहीं भी कोई मानवरहित बैरिकेड दिखता है तो तुरंत 112 पर कॉल कर दिल्ली पुलिस को सूचना दे सकते हैं। बात आम आदमी को मानव रहित बैरिकेड से होने वाली सिर्फ असुविधा की नहीं है। इस लापरवाही का लाभ अपराधी उठा ले जाते हैं जैसा कि कंझावला में एक लड़की अंजलि के साथ हुआ है।
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दिल्ली वालों को पिंक पुलिस बूथ दिखाकर विश्वास दिलाया गया था कि अब राजधानी में महिलाएं सुरक्षित हैं। अब कोई निर्भया कांड नहीं होगा। कोई बेटी सड़क पर निर्वस्त्र नहीं की जाएगी। पिंक पुलिस बुथ का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा देना था। दिल्ली की संकरी गलियों और सुनसान इलाकों में खाकी वर्दी में महिलाएं गश्त करती तो जाहिर है कि महिलाओं और लड़कियों को सुरक्षित वातावरण का एहसास होता। लेकिन यह सारी बातें कागजी कार्रवाई और परियोजनाओं तक ही रह गई। इसे जमीन पर उतारने में दिल्ली पुलिस असफल साबित हुई है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)