इंडिया गेट से: केवल एक वर्ष केंद्रीय मंत्री रहे आरसीपी सिंह ने दस वर्षों में धन कहां से कमाया?
कभी नीतीश कुमार के बहुत करीबी होने के कारण रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी सिंह) राज्यसभा के सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री बने थे। मई में जब वह राज्यसभा से रिटायर हो रहे थे, तो राजनीतिक हलकों में यही सब से ज्यादा चर्चा का विषय था कि नीतीश कुमार उन्हें दुबारा राज्यसभा की सीट देंगे या नहीं। अगर उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा जाएगा, तो वह मंत्री भी नहीं रहेंगे।
अटकल यह भी थी कि उन का टिकट काट कर जेडीयू केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बाहर आ जाएगी। चौंकाने वाले निर्णय करने के लिए मशहूर नीतीश कुमार ने वही किया, उन्होंने आर.सी.पी. सिंह का टिकट काट कर झारखंड में जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को राज्यसभा का टिकट दे दिया।
यह जेडीयू को झारखंड में मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा तो था ही, ताकि झारखंड विधानसभा में भाजपा से ज्यादा सीटें ले कर भविष्य में बनने वाली झारखंड की साझा सरकार में हिस्सेदारी ली जाए। लेकिन तब से खबरें ये भी चल रहीं थीं कि नीतीश कुमार किसी बात को ले कर आर.सी.पी सिंह से बेहद खफा हैं, यह भी अटकल लगनी शुरू हो गई थी कि नीतीश कुमार उन्हें पार्टी से निकाल भी सकते हैं।
इन्हीं अटकलों के बीच रामचंद्र प्रसाद सिंह ने भी राज्यसभा का टिकट नहीं दिए जाने पर कुछ कडवे बोल बोले थे। मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने बाद जब पटना में पत्रकारों ने उन से पूछा था, तो उन्होंने कहा था कि पार्टी में किस को कौन निकालता है, इससे उन का कुछ मतलब नहीं, लेकिन पार्टी के भीतर कभी भी किसी के साथ विच हंटिंग नहीं होनी चाहिए।
दो महीने बाद अब जेडीयू ने आर.सी.पी सिंह को नोटिस दे कर पूछा है कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी के नाम पर जो बेशुमार सम्पत्ति अर्जित की है, वह उस का हिसाब पार्टी के सामने रखें। नोटिस में उन 58 प्लाटों और कृषि भूमि का बयौरा भी दिया गया है, जो उन्होंने पिछले एक दशक के दौरान ही खरीदे हैं। इन में से कई प्लाटों की जानकारी उनके चुनावी हलफनामे में भी नहीं हैं।
जदयू बिहार इकाई के अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की ओर से जारी पार्टी के नोटिस में कहा गया है कि उनकी यह बेशुमार सम्पत्ति उनकी आमदनी से कहीं ज्यादा लगती है। वह बताएं कि कैसे नालंदा जिले के दो ब्लाकों में उन्होंने चालीस बीघा जमीन खरीदी और क्या ये उनकी नियमित आमदनी से खरीदी गई है। एक कोई दान वाली जमीन का मामला भी है, जो उन्होंने अवैध तरीके से खरीद ली है, इसे भी नोटिस में उठाया गया है।
पार्टी के इस नोटिस से साफ है कि नीतीश कुमार आय से अधिक संपति को आधार बनाकर आरसीपी के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को राज्यसभा की सदस्यता से तो वंचित किया ही, पटना में उन को अलाट किया गया घर भी मुख्य सचिव को अलाट कर खाली करने पर मजबूर कर दिया।
अब जमीन का मामला सार्वजनिक कर के पार्टी से उनकी विदाई की एक तरह से औपचारिकता पूरी की जा रही है। आर.सी.पी.सिंह सिंह भले जो भी जवाब दें, पार्टी उसे असंतोषजनक बता कर उन्हें पार्टी से निलंबन करने की कार्रवाई शुरू करेगी। लेकिन उन पर केन्द्रीय मंत्री रहते हुए लालू यादव की तरह सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया गया है, यह विचित्र बात है। क्योंकि वे केवल एक वर्ष के लिए केंद्रीय मंत्री रह सके जबकि उन पर पिछले दस वर्षों में जमीनें खरीदने का आरोप लगाकर नीतीश कुमार ने अपने ही दाएं हाथ रहे आर.सी.पी. सिंह के राजनीतिक कैरियर को आग लगाने की कोशिश में कहीं खुद को ही आग न लगा ली हो?
वैसे आर.सी.पी. सिंह ने कहा कि अधिकांश प्लाट उनकी बेटियों या पत्नी के नाम पर हैं जो आयकर जमा करती हैं। विभाग में उन्होंने खरीद-बिक्री की जानकारी दे रखी थी। इसके अलावा उनके खाते या उनके नाम से कोई प्लाट की खरीद-बिक्री नहीं हुई। इसलिए उन पर लालू स्टाइल में सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है। उन्होंने पार्टी के नेताओं से पूछा कि वो बताएं कि आखिर किसी प्लाट के बदले उन्होंने किसी को उपकृत किया हो।
इस बयान से उन्होंने इस बात की पुष्टि कर दी है कि पिछले एक दशक में उन्होंने पत्नी और बेटी के नाम 58 प्लाट खरीदे हैं। नीतीश कुमार ने बड़े सलीके से आर.सी.पी सिंह को अलग थलग किया है, भविष्य में उन पर आय से अधिक सम्पत्ति की तलवार भी लटकेगी। लेकिन बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले यह प्रश्न कर रहे हैं कि जो आर.सी.पी. सिंह कल तक नीतीश कुमार के लिए फंड जुटाने का काम करते थे वे अचानक नीतीश के निशाने पर कैसे आ गए? कहीं आर सी पी सिंह की बढ़ती महत्त्वाकांक्षा नीतीश कुमार को अखर तो नहीं गयी?
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