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एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण में बड़ी कामयाबी

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नई दिल्ली, 23 सितंबर। पूर्वोत्तर राज्य असम में स्थित काजीरंगा नैशनल पार्क को दुनिया में एक सींग वाले गैंडों का सबसे बड़ा घर कहा जाता है. लेकिन इसके सींग से जुड़े मिथकों की वजह से हर साल ऐसे कई गैंडे अवैध शिकारियों के हाथों मारे जा रहे हैं.

Provided by Deutsche Welle

असम के वन मंत्री परिमल वैद्य दावा करते हैं कि बीते तीन वर्षों के दौरान अवैध शिकार में कमीआई है. बावजूद इसके अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं. गैंडे की सींग से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए बुधवार को विश्व गैंडा दिवस के मौके पर असम सरकार ने ऐसी करीब ढाई हजार सींग को आग से जला कर नष्ट कर दिया.

हर साल 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद इस जानवर के संरक्षण के उपायों को बढ़ावा देना है. बीते साल 'विश्व गैंडा दिवस' के अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिए 'राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति' जारी की थी. एक-सींग वाले गैंडों को इंटरनैशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने 2008 में लाल सूची में डाल दिया था.

भारत पहले स्थान पर

भारत दुनिया में एक-सींग वाले गैंडों की संख्या लिहाज से पूरी दुनिया में पहले स्थान पर है. पूरे देश में करीब तीन हजार ऐसे गैंडे हैं और इनकी आबादी असम के काजीरंगा और मानस नेशनल पार्क के अलावा पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा है.

अवैध शिकार के बढ़ते मामलों की वजह से सत्तर के दशक में इस दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की तादाद घट कर कुछ सौ तक आ गई थी. लेकिन संरक्षण के उपायों के कारण अब इनकी तादाद तेजी से बढ़ी है. वर्ष 2018 में हुई आखिरी गिनती के मुताबिक काजीरंगा में 2,413 गैंडे हैं.

ताजा अनुमान के मुताबिक राज्य में कुल 2,640 गैंडे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 से अब तक अवैध शिकारियों ने एक सींग वाले 22 गैडों की हत्या कर दी है. इन मामलों में अब तक छह सौ से ज्यादा शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है.

वन विभाग का दावा है कि वर्ष 2021 के दौरान अब तक एक गैंडे की ही मौत हुई है. इन आंकड़ों के हवाले ही वन मंत्री परिमल वैद्य दावा करते हैं कि बीते तीन-चार वर्षों के दौरान अवैध शिकार के मामलों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा चुका है.

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वैद्य कहते हैं, "राज्य सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की वजह से अवैध शिकार के मामले तेजी से कम हुए हैं. वर्ष 2016 में जहां 22 गैडों की शिकारियों के हाथों मौत हो गई थी. वहीं इस साल अब तक महज एक ही गैंडा मारा गया है."

वन मंत्री का कहना है कि हर साल बीमारी, आपसी संघर्ष, बाढ़ और दूसरी प्राकृतिक वजहों से करीब सौ गैडों की मौत हो जाती है. अकेले काजीरंगा में इस साल बाढ़ से 18 गैंडों की मौत हो चुकी है.

काजीरंगा नैशनल पार्क के निदेशक शिवा कुमार बताते हैं, "बीते साल बाढ़ में पार्क के 263 जानवरों की मौत हो गई जिनमें कई गैंडे भी शामिल थे. लेकिन वन विभाग के प्रयासों की वजह से इस साल मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा चुका है."

काजीरंगा में एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण और शिकार-रोधी उपायों की जानकारी के लिए वर्ष 2016 में ब्रिटेन के प्रिंस विलियम और उनकी पत्नी केट ने भी इस पार्क का दौरा किया था.

क्यों होता है शिकार?

दरअसल, इन गैडों की शिकार उनके सींग के लिए होता है. दक्षिण एशियाई देशों में उसकी भारी मांग है और यह बेहद ऊंची कीमत पर बिकता है. इसके साथ यह मिथक जुड़ा है कि इससे बनने वाले दवाएं पौरुष बढ़ाने में काफी फायदेमंद हैं.

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वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, "गैंडों के सींग के पाउडर का इस्तेमाल कई तरह की पारंपरिक चीनी पद्धतियों से इलाज के लिए किया जाता है. इनमें कैंसर से लेकर हैंगओवर तक शामिल है. वियतनाम में तो गैंडे के सींग रखना प्रतिष्ठा का प्रतीक समझा जाता है." इस अधिकारी के मुताबिक, इन देशों में भारी मांग के कारण गैंडों के शिकारी हमेशा सक्रिय रहते हैं और उनपर हमेशा नजर रखनी पड़ती है.

वर्ष 2013 और 2014 में गैंडों के शिकार के मामले ने काफी तूल पकड़ा था. उस दौरान सींग के लिए 27 गैंडों का शिकार किया गया था. लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट आई है. बावजूद इसके इस अवैध शिकार से कई गिरोह जुड़े हैं और इस मामले में लापरवाही नहीं बरती जा सकती.

एक सींग वाला गैंडा पहले आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार खतरे वाली श्रेणी में था, उसे अब 'असुरक्षित' के रूप में सूचीबद्द किया गया है.

सींग जलाए गए

वन विभाग की ओर से बीते कुछ वर्षों के दौरान शिकारियों के कब्जे से करीब ढाई हजार सींग बरामद किए गए थे. अब गैंडा दिवस के मौके पर उनको काजीरंगा नैशनल पार्क के ही बोकाखात में जला दिया गया है. असम सरकार और वन विभाग ने इसे गैंडा संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर बताया है.

Provided by Deutsche Welle

उसका कहना है कि इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद शिकारियों और तस्करों को यह संदेश देना है कि सींग से जुड़े मिथक बेबुनियाद हैं. असम के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन एम. के. यादव कहते हैं, "इसका मकसद गैंडे के सींगों से जुड़े मिथकों को तोड़ना है."

इस बीच, असम के एक पर्यावरण संरक्षण संगठन आराण्यक ने कहा है कि जानवरों की अवैध तस्करी पर्वारण के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा है. उसका कहना है कि अतीत में ऐसे कई मामलों की जांच से यह बात सामने आई है कि गैंडे की सींग की तस्करी करने वाले गिरोह के संबंध राष्ट्रविरोधी संगठनों के साथ है.

आराण्यक के महासचिव विभा तालुकदार कहते हैं, "हाल में एक सींग वाले गैंडों के शिकार में कुछ कमी जरूर आई है लेकिन इस ओर से उदासीनता बरतना उचित नहीं है. गैंडों के रहने वाले इलाकों में अवैध शिकारियों की गतिविधियों पर निगरानी और चुस्त की जानी चाहिए."

Source: DW

English summary
what india is doing to save one horn rhino
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