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यूपी चुनाव: बीजेपी को उसी के गढ़ वाराणसी में हराने के लिए कांग्रेस-सपा गठबंधन ने उतारे अपने दिग्गज

इस सीट पर पिछले सात बार से पराजय का सामना कर रही कांग्रेस के लिए यह एक आत्मविश्वास से भरा फैसला है। वहीं कांग्रेस के इस फैसले की धमक वाराणसी के सियासी गलियारों में सभी खेमे महसूस कर रहे हैं।

By Ashwani Tripathi
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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गढ़ वाराणसी में बीजेपी को हराने ने लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने बड़े मंथन के बाद वाराणसी की दो सीटों पर अपने मजबूत प्रत्याशियों को चुनावी अखाड़े में उतारा है। जिनमे से एक पूर्व सांसद हैं तो दूसरे बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाले। अब देखना ये होगा की सपा की साइकिल, कांग्रेस के हाथ के साथ मोदी की काशी में कितनी रफ्तार से दौड़ पाती है?

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वाराणसी के शहर-दक्षिण पर कांग्रेस प्रत्याशी

वाराणसी के शहर-दक्षिण पर कांग्रेस प्रत्याशी

कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता, पूर्व सांसद और पूर्व विधान परिषद सदस्य रहे विधायक डॉ. राजेश कुमार मिश्र की उम्मीदवारी की घोषणा वाराणसी शहर दक्षिणी से कांग्रेस-सपा के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में की है। यह घोषणा वाराणसी में कांग्रेस की दमदार वापसी का संकेत है। इस सीट पर पिछले सात बार से पराजय का सामना कर रही कांग्रेस के लिए यह एक आत्मविश्वास से भरा फैसला है। वहीं कांग्रेस के इस फैसले की धमक वाराणसी के सियासी गलियारों में सभी खेमे महसूस कर रहे हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से सार्वजनिक जीवन शुरू करने वाले राजेश कुमार मिश्र 1982 में बीएचयू छात्रसंघ उपाध्यक्ष चुने गए। वह दो बार स्नातक प्रतिनिधि विधान परिषद सदस्य रहने के साथ लोकसभा में वाराणसी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लोकसभा चुनाव में शहर दक्षिणी उनका प्रमुख समर्थक क्षेत्र रहा है।

चुनाव में कितने मजबूत हैं प्रत्याशी और क्या है इनकी कमजोरी?

चुनाव में कितने मजबूत हैं प्रत्याशी और क्या है इनकी कमजोरी?

डॉ. मिश्र की उम्मीदवारी वाराणसी के कांग्रेसजनों के मनोबल और जीत के संकल्प का प्रतीक है और वाराणसी शहर दक्षिणी में बाबू संपूर्णानंद की कांग्रेस विरासत के नवजागरण का उद्घोष है।

मजबूती - कांग्रेस के इस प्रत्याशी को वाराणसी साऊथ में अच्छे समर्थन के साथ ब्राह्मणों में मजबूत पैठ का फायदा मिल सकता है।

कमजोरी - इनके सांसद कार्यकाल में वाराणसी की जनता इनसे नाखुश रही जिसके चलते इनको दोबारा के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

वाराणसी के कैंट विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी

वाराणसी के कैंट विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी

अनिल श्रीवास्तव को वाराणसी कैंट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। वाराणसी के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ अनिल श्रीवास्तव ने भी छात्र जीवन से सार्वजनिक जीवन में जगह बनाई है।

कांग्रेस के प्रति एकनिष्ठ रहे अनिल कभी अपनी राजनीतिक निष्ठा से किसी सत्ता स्वार्थ के चलते विचलित नहीं हुए। अनिल पार्टी के भीतर भी सभी लोगों और सभी पक्षों के हमेशा प्रिय रहे हैं। वहीं कांग्रेस के चुनौतीपूर्ण दौर में भी वो पार्टी के साथ रहे। उनकी उम्मीदवारी एक परंपरागत कांग्रेसी कार्यकर्ता में पार्टी नेतृत्व के भरोसे का प्रतीक है।

आनिल श्रीवास्तव ने विद्यार्थी जीवन में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था और पहली बार 1978 के चुनाव में सिटी डेलीगेसी के अध्यक्ष चुने गए। 1982 में वह बीएचयू छात्रसंघ के चुनाव में राछासं टिकट पर महामंत्री और 1985 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इस तरह देश के सबसे बड़े वि.वि. में उन्होंने जहां छात्र राजनीति के सभी लोकतांत्रिक पदों पर काम किया, वहीं आगे चलकर राछासं और युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव की अहम जिम्मेदारियां भी निभाई।

क्या है इनकी चुनावी ताकत और क्या है इनकी कमजोरी?

क्या है इनकी चुनावी ताकत और क्या है इनकी कमजोरी?

अनिल श्रीवास्तव साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कैट क्षेत्र में कुल 45,066 वोट पाकर दूसरे नंबर पर थे और 57,918 वोट वाली भाजपा से 12,852 मतों के अंतर से हारे थे। वहीं इस बार उन्हें सपा के समर्थन के बाद पिछली बार सपा को मिले 35,000 मतों का जहां सीधा इजाफा होना है, वहीं हर चुनाव में अपना वोट जनाधार बढ़ाते रहने वाले श्रीवास्तव इस बार और भी मजबूत बढ़ोत्तरी हासिल कर सकते हैं।

मजबूती - सपा-कांग्रेस का गठबंधन और कैंट विधानसभा में बीजेपी के उम्मीदवार से नाराजगी इनकी सबसे मजबूत कड़ी बन सकती है।

कमजोरी - विधानसभा के समझौते में कांग्रेस के खाते में गई इस सीट से सपा की प्रत्याशी राबिया कलाम का टिकट कटा है जिससे बागी सपाई जातिगत समीकरण पर अनिल श्रीवास्तव का खेल बिगाड़ सकते हैं।

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English summary
Congress-SP allaince stake to counter BJP in his strong constituency Varanasi
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