Kanpur: पुलिस की एक क्रूर हरकत की वजह से सब्जी विक्रेता ने गवाए दोनों पैर, रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया था तराजू
उत्तर प्रदेश की कानपुर पुलिस का क्रूर चेहरा सामने आया है। जहाँ एक गरीब सब्जी विक्रेता असलम हाथ जोड़ कर पुलिस से कहते रहा कि साहब! घरवाले भूख से मर रहे हैं। रहम करो, लेकिन पुलिस ने एक न सुनी। हाल ही में हुई इस घटना को पुलिस की दबंगई कहे या लापरवाही लेकिन पुलिस के इस कृत्य की वजह से एक युवक ने अपने दोनों पैर गवा दिए और उसके परिवार की खुशियां पलभर में ही मातम में बदल गई। सब्जी विक्रेता ट्रेन की चपेट में आया और उसकी दोनों टांगे कट गई।
असलम के कट गए दोनों पैर
दरअसल, कानपुर के कल्याणपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत असलम नाम का युवक सड़क किनारे सब्जी बेच रहा था। तभी वहां पर पहुंचे इंदिरा नगर पुलिस चौकी के पुलिसकर्मियों ने सब्जी बेच रहे लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया और असलम के पास पहुंचे। एक पुलिसकर्मी राकेश ने उसका तराजू उठाकर रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया। इसके बाद जैसे ही असलम रेलवे ट्रैक पर अपना तराजू उठाने पहुंचा तो वहां से निकल रही मेमो ट्रेन की चपेट में आ गया। ट्रेन की चपेट में आने से असलम के दोनों पैर कट गए । वहीं घटना देख पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए। मौके पर पहुंची थाने की पुलिस ने घायल को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया।
कांस्टेबल राकेश कुमार को किया निलंबित
वहीं घटना के बाद उसके साथी सब्जी विक्रेताओं ने हंगामा करना शुरू कर दिया। इसके बाद कमिश्नरेट पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए आरोपी हेड कांस्टेबल राकेश कुमार को निलंबित कर दिया और पूरी घटना की जांच एसीपी कल्याणपुर को सौंप दी। डीसीपी पश्चिम विजय ढुल ने जानकारी देते हुए बताया कि उक्त घटना में घायल असलम का इलाज कराया जा रहा है। वही प्रथम दृष्टया जांच में दोषी पाए जाने पर हेड कांस्टेबल राकेश कुमार को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही घटना की जांच एसीपी कल्याणपुर पांडे को सौंपी गई है, जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
पुलिस की समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका
पुलिस
हमारे
समाज
का
एक
अभिन्न
अंग
है
और
न्याय
के
आपराधिक
प्रशासन
की
प्रणाली
में
एक
महत्वपूर्ण
भूमिका
निभाती
है,
क्योंकि
पुलिस
मुख्य
रूप
से
शांति
बनाए
रखने
और
कानून
और
व्यवस्था
को
लागू
करने
और
व्यक्ति
और
व्यक्तियों
की
संपत्ति
की
सुरक्षा
से
संबंधित
है।
पुलिस
को
किशोर
अपराध
और
महिलाओं
और
बच्चों
के
खिलाफ
अत्याचार
को
भी
रोकना
होता
है।
हालांकि
पुलिस
के
लक्ष्य
और
उद्देश्य
महान
हैं,
लेकिन
उनकी
आलोचना
और
निंदा
की
गई
है,
जो
कि
बिल्कुल
विपरीत
हैं
और
ऐसा
इसलिए
है
क्योंकि
उन्हें
अपनी
सामाजिक
जिम्मेदारियों
को
पूरा
करने
के
लिए
दी
गई
शक्तियों
का
उनके
द्वारा
समुदाय
के
संवैधानिक
अधिकारों
को
रौंदने
के
लिए
दुरुपयोग
किया
जाता
है।
पुलिस कदाचार या पुलिस मिसकंडक्ट
पुलिस
अधिकारियों
का
प्राथमिक
कर्तव्य
मानव
जाति
की
सेवा
करना,
अपराध
को
रोकना,
मानवाधिकारों
को
बनाए
रखना
और
उनकी
रक्षा
करना
और
अपराधों
की
जांच
और
पता
लगाना
और
अभियोजन
को
सक्रिय
(एक्टिव)
करना,
सार्वजनिक
अव्यवस्था
को
रोकना,
बड़े
और
छोटे
संकट
से
निपटना
और
उन
लोगों
की
मदद
करना
है
जो
परेशानी
में
हो।
लेकिन
अक्सर
यह
देखा
गया
है
कि
सरकारी
कर्तव्यों
का
निर्वहन
करते
हुए
पुलिस
अधिकारी
अपनी
जिम्मेदारियों
को
सही
तरीके
से
नहीं
निभाते
हैं
और
व्यक्तिगत
या
आधिकारिक
लाभ
के
लिए
अपनी
शक्ति
का
दुरुपयोग
करते
हैं।
वे
अपने
सामाजिक
अनुबंध
को
तोड़ते
हैं
और
विभिन्न
अनैतिक
गतिविधियों
में
लिप्त
होते
हैं।
ऐसी
अवैध
कार्रवाई
या
अनुचित
कार्रवाई
को
पुलिस
कदाचार
(पुलिस
मिसकंडक्ट)
के
रूप
में
परिभाषित
किया
जा
सकता
है।
पुलिस
अधिकारियों
द्वारा
ये
अनुचित
कार्य
या
उससे
अधिक
शक्ति
का
उपयोग
उचित
रूप
से
आवश्यक
है,
जिससे
न्याय
के
साथ
घोर
अन्याय
किया
जाता
है,
भेदभाव
होता
है
और
न्याय
में
बाधा
उत्पन्न
होती
है।
पुलिस की बर्बरता
पुलिस की बर्बरता नागरिक अधिकारों के उल्लंघन का एक उदाहरण है, जहां एक अधिकारी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है और एक व्यक्ति को उस बल से प्रताड़ित करता है, जो आवश्यकता से कहीं अधिक है। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न हिरासत में मौतें हुई हैं, जिसका रिकॉर्ड अभी भी खोजा जाना है और कानून के समक्ष पेश किया जाना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित अधिकारों के बारे में पुलिस के इस क्रूर कृत्य को घोर उल्लंघन माना गया था। नीलाबती बेहरा बनाम स्टेट ऑफ़ उड़ीसा और अन्य का मामला, पुलिस की बर्बरता के कारण हुई मौत का एक ज्वलंत (विविड) उदाहरण है। इस विशेष मामले में राज्य को उत्तरदायी ठहराया गया था और अपीलकर्ता को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था।
पुलिस अधिकारियों को ऐसी कार्रवाई से बचना होगा
पुलिस की बर्बरता में पुलिस अधिकारियों की लापरवाही भी शामिल है। पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह अपनी हिरासत में प्रत्येक व्यक्ति को उचित और सही देखभाल प्रदान करे, इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह दोषी या निर्दोष है। हिरासत में लिए गए व्यक्ति या सामान्य रूप से किसी भी व्यक्ति को अनावश्यक उत्पीड़न स्वीकार नहीं किया जाता है और इसकी अत्यधिक अवहेलना की जाती है। यहां तक कि लॉकअप में बंद व्यक्ति के साथ भी पुलिस द्वारा उस पर पुष्टि की गई शक्ति के अनुसार व्यवहार किया जाना चाहिए, लेकिन किसी भी तरह से वह यह नहीं चाहता। पुलिस अधिकारियों को ऐसी कार्रवाई करने से बचना चाहिए, जो कानून द्वारा निषिद्ध है और इसका हिस्सा नहीं है।
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