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कंधों पर बेबसी देख, घुटनों पर आया हाकिम, यही है असली ब्यूरोक्रेसी जानिए पूरा मामला

जबलपुर जिले के कुंडम इलाके के मखरार गांव में रहने वाले दिव्यांग सुकरन के अरमानों में ‘तालीम’ हासिल करना भी है। पैरों से भले ही वह लाचार है, लेकिन हौसला भागकर मंजिल को छू-लेने का है। अभी दसवीं क्लास की पढ़ाई कर रहा है।

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जबलपुर, 12 जुलाई: वो दिव्यांग है, पर उसका हौसला ऊँची उड़ान भरने का है...आगे खूब पढ़ना चाहता है, लेकिन स्कूल पहुँचने की राह में ऐसे कई कांटे थे, इनको हर रोज पार करना उतना आसान नही। ये कहानी मध्यप्रदेश के जबलपुर की कुंडम तहसील के एक दिव्यांग छात्र सुकरन की है। जो अपनी बेबसी के साथ पिता के कंधो पर सवार होकर कलेक्टर के दरबार पर पहुंचा। अक्सर बदनाम रहने वाले 'सरकारी सिस्टम' और इस दिव्यांग के बीच जबलपुर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने चंद मिनटों में उन काटों को उखाड़ फेंका, जो दिव्यांग की जिंदगी को बेनूर करने वाले थे। जो तस्वीर उभरी वह पूरे सिस्टम को आईना दिखाने के लिए काफी है। जबलपुर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी के प्रयासों ने संदेश दिया कि असली ब्यूरोक्रेसी यही है।

दिव्यांग सुकरन का दर्द

दिव्यांग सुकरन का दर्द

जबलपुर जिले के कुंडम इलाके के मखरार गांव में रहने वाले दिव्यांग सुकरन के अरमानों में 'तालीम' हासिल करना भी है। पैरों से भले ही वह लाचार है, लेकिन हौसला भागकर मंजिल को छू-लेने का है। अभी दसवीं क्लास की पढ़ाई कर रहा है। घर से करीब 5 किलोमीटर दूर स्कूल जाता है, लेकिन हर रोज पढ़ाई के इस सफ़र में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गांव से स्कूल पहुँचने का कोई दूसरा साधन भी नही रहता, जिससे वह हर रोज आवागमन कर सकें। बारिश के वक्त कई बार तो उसे स्कूल के रहने वाले दोस्त के घर ही सुकरन को रुकना पड़ता है। किसी तरह मेहनत मजदूरी कर उसके पिता परिवार का पेट पालते है। घर की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं कि वह सुकरन को ट्राईसाइकिल दिला सके, ताकि उसकी स्कूल जाने की राह आसान हो सकें।

कंधे पर जिगर का टुकड़ा देख कलेक्टर का पसीजा दिल

कंधे पर जिगर का टुकड़ा देख कलेक्टर का पसीजा दिल

जिंदगी में पढ़-लिखकर कुछ कर गुजरने की चाहत सुकरन को कलेक्ट्रेट खींच ले आई। इस भरोसे से कि सुर्ख़ियों में लाचार बने रहने वाले 'सरकारी सिस्टम' में शायद उसकी सुनवाई हो जाए? पिता अपने कंधे पर जिगर के टुकड़े दिव्यांग सुकरन को लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचा। जहाँ जबलपुर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने अपने सारे काम छोड़कर सुकरन की समस्या सुनी। अफसरशाही ठाठ में नही, बल्कि एक आम इंसान की तरह दिव्यांग सुकरन के सामने घुटने पर वह बैठ गए। इस नज़ारे को देखने वाले सोच में पड़ गए कि, क्या यह उसी 'सरकारी सिस्टम' के हिस्से की सुनवाई है, जिसकी बेरुखी की ख़बरें हर-रोज मीडिया की सुर्खियाँ बनती है?

मिली ट्राईसाइकिल, छात्रावास में एडमिशन की व्यवस्था

मिली ट्राईसाइकिल, छात्रावास में एडमिशन की व्यवस्था

दिव्यांग सुकरन की व्यथा सुनकर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने फ़ौरन सामाजिक न्याय विभाग को ट्राईसाइकिल देने के निर्देश दिए। इसके साथ ही सुकरन से कलेक्टर ने उसके अनुभव भी जाने। अभी तक की स्कूल शिक्षा में कम परीक्षा परिणामों पर कलेक्टर ने सुकरन को मन लगाकर और अच्छे से पढ़ाई करने कहा। ट्राइबल विभाग को छात्र की पढ़ाई के संबंध में भी निर्देशित किया कि उसे कुंडम के छात्रावास में अविलंब दाखिला दिया जाए। जिस पर अमल करते हुए संबंधित विभागों ने कुछ ही घंटो में सुकरन की, पढ़ाई में आने वाली उन अड़चनों को दूर कर दिया, जिसकी उसने उम्मीद ही छोड़ दी थी।

कलेक्टर की दरियादिली देख भावुक हुए पिता

कलेक्टर की दरियादिली देख भावुक हुए पिता

गांव से 70 किलोमीटर दूर बेटे के साथ समस्याओं को लेकर पहुंचे पिता ने कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी की खूब सराहना की। बेटे को जैसे ही नई ट्राईसाइकिल मिली, तो सुकरन के पिता भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि इस ज़माने में एक बार में जो अधिकारी समस्या जानकर एक बार में निराकरण कर दे, वैसा जबलपुर कलेक्टर, भगवान से भी बढ़कर है।

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English summary
Seeing helplessness on the shoulders, the ruler came on his knees, this is the real bureaucracy know the whole matter
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