हाईकोर्ट: न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग बर्दाश्त नहीं, 50 हजार की कॉस्ट, जबलपुर नगर निगम को फटकार
जबलपुर, 22 जुलाई: दैनिक वेतन भोगी नगर निगम कर्मचारी के नियमितीकरण मामले को लेकर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देना नगर निगम को महंगा साबित हुआ। दरअसल जबलपुर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला दिया। उस फैसले के खिलाफ नगर निगम ने हाईकोर्ट की डबल बेंच फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जहाँ से याचिकाएं ख़ारिज कर दी गई। उसके बाबजूद फिर हाईकोर्ट जब याचिका दायर हुई तो कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए जबलपुर नगर निगम को 50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाईं है।

मप्र हाईकोर्ट ने यह कॉस्ट जबलपुर नगर निगम के दैनिक वेतन भोगी कर्मी रहे केदारनाथ सिंह के नियमितीकरण के खिलाफ दायर याचिका पर लगाईं है। केदारनाथ जब दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में निगम में कार्यरत थे, तो उनकी ओर से नियमितीकरण को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में शामिल सभी तथ्यों पर गौर करते हुए 2016 में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने केदारनाथ के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन जबलपुर नगर निगम ने इस फैसले को हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दे दी। यहाँ से याचिका खारिज हो गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की गई और नगर निगम की याचिका वहां से भी खारिज हो गई।

डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका
डबल बेंच फिर सुप्रीम कोर्ट दोनों जगह से याचिकाएं खारिज होने के बाबजूद नगर निगम द्वारा हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की। जिस पर अदालत ने पाया कि एक ही विषय पर बार-बार न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग किया जा रहा है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ व जस्टिस विशाल मिश्रा की डिवीजन बेंच ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर जबलपुर नगर निगम पर तल्ख़ टिप्पणी भी की। इसके साथ ही 50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाईं। गौरतलब है कि 2016 के पहले नगर निगम के कई दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया गया था, कुछ ऐसे कमर्चारी जो पात्रता रखते थे, जब उन्हें नियमितीकरण का लाभ नहीं मिला तो उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली थी।
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