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संयुक्त राष्ट्र: बाल श्रम दो दशकों में पहली बार बढ़ा, संकट अभी टला नहीं!

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नई दिल्ली, 10 जून। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि दुनिया ने 20 साल में पहली बार बाल श्रम में बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोरोनो वायरस संकट से और अधिक किशोरों को एक ही भाग्य की ओर धकेले जाने का खतरा है. बाल मजदूरों की संख्या 2016 के 15.2 करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ हो गई है. यह दर्शाता है कि 2000 के बाद से हासिल प्रमुख लाभ, जब 24.6 करोड़ बच्चे श्रम में लगे हुए थे, वह पलट रहा है.

Provided by Deutsche Welle

साझा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बड़े कदम नहीं उठाए गए तो 2022 के अंत तक यह आंकड़ा 20.6 करोड़ तक जा सकता है. यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक, "हम बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में जमीन खो रहे हैं, और पिछले साल ने उस लड़ाई को आसान नहीं बनाया है." उनके मुताबिक, "अब, वैश्विक लॉकडाउन के दूसरे साल में स्कूल बंद होने, आर्थिक व्यवधान और सिकुड़ते बजट के कारण परिवारों को दिल तोड़ने वाले विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. "

चिंताजनक स्थिति

बाल मजदूरों में सबसे बड़ी बढ़ोतरी अफ्रीका में मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि, संकट और गरीबी के कारण देखी गई. उप-सहारा अफ्रीका में, पांच से 17 वर्ष की आयु के लगभग एक चौथाई बच्चे पहले से ही बाल श्रम में हैं, जबकि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह 2.3 फीसदी है. एजेंसियों ने चेतावनी दी कि कोरोना संकट पहले से ही बाल श्रम करने वाले बच्चों को लंबे घंटे और बिगड़ती परिस्थितियों में काम करने की ओर धकेल सकता है.

रिपोर्ट की सह लेखक और यूनिसेफ सांख्यिकी विशेषज्ञ क्लाउडिया कापा के मुताबिक, "अगर सामाजिक सुरक्षा कवरेज मौजूदा स्तरों से फिसल जाती है तो खर्च में कटौती और अन्य कारकों के परिणामस्वरूप बाल श्रम में पड़ने वाले बच्चों की संख्या अगले साल के अंत तक (अतिरिक्त) 4.6 करोड़ तक बढ़ सकती है."

हर चार साल में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि पांच से 11 साल की उम्र के बच्चों की संख्या वैश्विक संख्या के आधे से अधिक है. हालांकि लड़कों के बाल श्रम में जाने की संभावना ज्यादा है. रिपोर्ट कहती है कि पांच से 17 साल के बीच के बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो सप्ताह में 43 घंटे से अधिक समय तक खनन या भारी मशीनों के साथ "खतरनाक काम" में लगे हुए हैं. आईएलओ के महानिदेशक गाए रायडर ने एक बयान में कहा, "नए अनुमान एक चेतावनी हैं. बच्चों की एक नई पीढ़ी को जोखिम में जाता हुए हम नहीं देख सकते. हम एक महत्वपूर्ण क्षण में हैं और हम कैसे प्रतिक्रिया देते हैं इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है."

कम उम्र में ही खतरनाक काम करते हैं बच्चे

तुरंत कदम उठाने होंगे

संयुक्त राष्ट्र ने साल 2021 को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष के रूप में घोषित किया है. यूएन ने 2025 तक देशों से इसे खत्म करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई करने के लक्ष्य हासिल करने का आग्रह किया है. यूएन का कहना है कि इस दिशा में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है क्योंकि कोविड-19 के कारण अधिक बच्चे खतरे में आते दिख रहे हैं और सालों की प्रगति संकट में पड़ती दिख रही है.

भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है. लेकिन स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं. इस प्रावधान का नियोक्ता और मानव तस्कर व्यापक रूप से शोषण करते हैं. बिहार जैसे राज्यों में जहां साढ़े चार लाख बच्चे मजदूरी करते हैं, वहां ऐसे तंत्र तैयार किए जा रहे हैं जिससे बाल श्रम को मैप किया जा सके. पूरे देश में 5 से 14 साल तक की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है.

एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)

Source: DW

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English summary
world first increase in child labor in 2 decades un report
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