उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति क्यों नहीं मानता अमेरिका? किम जोंग के साथ भारत नीति पर काम!
किम जोंग उन अपनी चौंकाने वाली भाषा के लिए जाने जाते हैं और परमाणु हथियारों को लेकर उनकी प्रतिज्ञा दुनिया की महाशक्तियों के लिए विचाराधीन है।
North Korea Kim Jong Un News: यूक्रेन में रूसी हमले के बाद अगर इस साल किसी देश ने सबसे ज्यादा दुनिया को परेशान किया है, तो वो उत्तर कोरिया है। और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन, जिन्हें इंटरनेशनल मीडिया अकसर एक जोकर की तरफ प्रोजेक्ट करता है, वो असल में अमेरिका के दो करीबी सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया के लिए सबसे बड़े 'शैतान' बन गये हैं। उत्तर कोरिया ने परमाणु बम विकसित कर लिए हैं और पिछले महीने किम जोंग उन ने दुनिया को यह कहते हुए राहत दी, कि वो कभी भी परमाणु बमों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। किम जोंग उन का ये बयान राहत से ज्यादा चौंकाने वाला था, क्योंकि किम जोंग उन ने अपने बयान में ये भी जोड़ा था, कि परमाणु हथियार "राज्य की गरिमा और देश की पूर्ण शक्ति" का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्योंगयांग उन्हें "जब तक धरती पर एक भी परमाणु हथियार मौजूद हैं" वो नये बमों का निर्माण करन जारी रखेगा।
किम की बम प्रतिज्ञा का मतलब
किम जोंग उन अपनी चौंकाने वाली भाषा के लिए जाने जाते हैं और परमाणु हथियारों को लेकर उनकी प्रतिज्ञा दुनिया की महाशक्तियों के लिए विचाराधीन है। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पत्र पर गंभीरता के साथ कानूनी हस्ताक्षर भी किए हैं। ऐसे में ध्यान इसी बात पर दिए जाने की जरूरत है, कि किम जोंग उन एक तानाशाह हैं, जिन्हें सत्ता से कोई और देश जबरन बाहर कर नहीं सकता है और किम जोंग उन वही करेंगे, जो उनकी मर्जी होगी। तो फिर, क्या उत्तर कोरिया को लेकर दुनिया को किसी और तरीके से पेश आने की जरूरत है? वहीं, यह भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है, कि उत्तर कोरिया ने इस साल रिकॉर्ड संख्या में मिसाइल लॉन्च किए हैं। उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया रिपोर्ट्स में दावा कियागया है, कि उत्तर कोरिया इस साल 20 से ज्यादा मिसाइल लॉन्च कर चुका है और अब उत्तर कोरिया सामरिक परमाणु हथियारों को क्षेत्रीय इकाइयों में तैनात कर रहा है और पूरी दुनिया में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं, कि बहुत जल्द उत्तर कोरिया सातवीं बार भूमिगत परमाणु परीक्षण करने की तैयारी कर रहा है।
उत्तर कोरिया को लेकर कैसी हो नीति?
यानि, उत्तर कोरिया के 'बम प्रेम' को देखते हुए विशेषज्ञों के बीच अब एक सवाल ये उठने लगा है, कि क्या वक्त आ गया है, जब कुदाल को कुदाल ही कहा जाए, यानि अब इस बात को स्वीकार कर लिया जाए, कि उत्तर कोरिया वास्तव में एक परमाणु संपन्न राज्य है। लेकिन, अगर ऐसा किया जाता है, तो वो उन आशावादी लोगों के लिए एक झटका होगा, जिनका अभी भी मानना है, कि उत्तर कोरिया के पास असल में परमाणु बम नहीं हैं और उत्तर कोरिया को बातचीत के जरिए इस बात के लिए राजी किया जा सकता है, कि वो परमाणु बमों का निर्माण करने की अपनी कोशिशों को रोक दे। सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में परमाणु नीति कार्यक्रम में एक स्टैंटन सीनियर फेलो अंकित पांडा ने कहा कि,"हमें उत्तर कोरिया के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसा उत्तर कोरिया है, ना कि वैसा, जैसा हम उत्तर कोरिया के साथ व्यवहार करना चाहते हैं।"
हकीकत कब स्वीकार करेगी दुनिया?
इस तथ्य की सत्यता से इनकार नहीं किया जा सकता है, कि उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार नहीं हैं। उत्तर कोरिया सालों पहले परमाणु बमों का निर्माण कर चुका है, फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो इसपर विवाद करते हैं। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स के हालिया न्यूक्लियर नोटबुक कॉलम में अनुमान लगाया गया है, कि उत्तर कोरिया के पास 45 से 55 परमाणु हथियारों के निर्माण के लिए पर्याप्त यूरेनियन विखंडर सामग्री हो सकता है और महत्वपूर्ण बात ये है, कि हाल के मिसाइल परीक्षणों से पता चलता है, कि उत्तर कोरिया के पास असल में वाकई परमाणु बमों के निर्माण के लिए सामग्रियां मौजूद हैं। हालांकि, इस सच्चाई को स्वीकार करना, और सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के लिए जोखिम भरा है। अमेरिका ऐसा इसलिए नहीं करना चाहता है, क्योंकि उसका मानना है, कि अगर उत्तर कोरिया को परमाणु संपन्न देश घोषित कर दिया गया, तो फिर एशिया में परमाणु बम निर्माण की रेस लग जाएगी। अमेरिका को डर है, कि ऐसा करने के बाद उसके लिए दक्षिण कोरिया और जापान को परमाणु बमों का निर्माण करने से रोकना काफी मुश्किल हो जाएगा, जो उत्तर कोरिया के पड़ोसी देश हैं।
हकीकत स्वीकार ना करने से क्या फायदा?
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया के परमाणु कौशल को स्वीकार करने से इनकार करना, वो भी तमाम सार्वजनिक साक्ष्य होने के बाद भी अस्वीकार करना एक ढोंग है। विशेषज्ञों का कहना है, कि रेत में सिर धंसा लेने से कुछ नहीं होता है और इससे अमेरिका के सहयोगी देश असल में और भी ज्यादा परेशान होंगे। सियोल में कूकमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और एक प्रमुख एकेडमिक अथॉरिटी आंद्रेई लैंकोव ने कहा कि, "आइए स्वीकार करें (इसे), उत्तर कोरिया एक परमाणु हथियार वाला राज्य है, और उत्तर कोरिया के पास बहुत ही कुशल आईसीबीएम (अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल) सहित सभी आवश्यक सामग्रियां हैं, जिनसे वो किसी भी वक्त परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकता है।"
उत्तर कोरिया के लिए 'भारत नीति'
कुछ एक्सपर्ट्स का सुझाव है, कि उत्तर कोरिया को लेकर इजरायल वाली नीति पर काम करना चाहिए और उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को इजरायल के समान ही व्यवहार किया जाए और उसे मौन स्वीकृति दे दी जाए। इस समाधान का मोंटेरे में मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में जेम्स मार्टिन सेंटर फॉर नॉनप्रोलिफरेशन स्टडीज के एक सहायक प्रोफेसर जेफरी लुईस ने समर्थन किया है। उनका मानना है कि, "मुझे लगता है कि (अमेरिकी राष्ट्रपति जो) बाइडेन को जो महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है, वह खुद को और अमेरिकी सरकार दोनों को स्पष्ट करना है कि हम उत्तर कोरिया को निरस्त्र करने के लिए नहीं जा रहे हैं और यह मूल रूप से उत्तर कोरिया को परमाणु संपन्न राज्य के रूप में स्वीकार करना है। जरूरी नहीं कि आपको इसे कानूनी रूप से पहचानने की जरूरत है।" उन्होंने कहा कि, इजरायल और भारत दोनों ही इस बात का उदाहरण पेश करते हैं, कि उत्तर कोरिया से निपटने के लिए अमेरिका को क्या करना चाहिए।
क्या इजरायल के पास भी है परमाणु बम?
CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यापक रूप से माना जाता है कि इजराइल ने 1960 के दशक में अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू कर दिया था और परमाणु अप्रसार संधि के लिए एक पार्टी होने से इनकार करते हुए उसने हमेशा से परमाणु हथियारों को लेकर अस्पष्टता का दावा किया है, जबकि भारत ने 1998 के परमाणु परीक्षण के साथ उस नीति को छोड़ने से पहले दशकों तक परमाणु हथियारों को लेकर अस्पष्टता की नीति को अपनाया। उन्होंने कहा कि, "उन दोनों मामलों में अमेरिका जानता था कि उन देशों के पास बम है, लेकिन सौदा यह था कि यदि आप इसके बारे में बात नहीं करते हैं, यदि आप इसे कोई मुद्दा नहीं बनाते हैं, यदि आप राजनीतिक समस्याओं का कारण नहीं बनते हैं , तो हम भी इसके बारे में चुप रहेंगे"। उन्होंने कहा कि, मुझे लगता है कि यह वही जगह है जहां हम उत्तर कोरिया के साथ पहुंचना चाहते हैं।
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