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रूस-यूक्रेन तनाव का भारतीय बजट पर पड़ेगा गंभीर असर, टेंशन में सीतारमण! कैसे निपटेगी मोदी सरकार?

देश में उच्च महंगाई दर से सरकार को तेल और दूसरे पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए गये टैक्स में कटौती करने के लिए मजबूर करेगी, खासकर जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार चल रहे हों।

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नई दिल्ली, जनवरी 28: भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी एक फरवरी को भारत का बजट पेश करने वाली हैं, लेकिन यूक्रेन संकट ने कई तरहों से भारत पर भी गंभीर असर डाल सकता है। खासकर यूक्रेन संकट के बीच पूरी दुनिया में तेल की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है और गुरुवार रात कच्चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल के निशान को पार कर चुका है और कई विश्लेषकों का कहना है कि, कच्चे तेल की कीमत बहुत जल्द 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर सकता है, ऐसे में भारतीय बजट पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है।

कच्चे तेल की कीमत में रिकॉर्ड इजाफाौ

कच्चे तेल की कीमत में रिकॉर्ड इजाफाौ

साल 2014 के बाद ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल की सीमा रेखा को पार कर जाएगा और विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक, ये आंकड़ा 100-110 डॉलर की सीमा रेखा को भी पार कर सकता है, ऐसे में कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित होने और डिमांड बढ़ने की वजह से भारत जैसे देशों में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में हाहाकार मचना तय है। 2 दिसंबर 2021 को कच्चे तेल की कीमत 65.88 डॉलर प्रति बैरल थी और उसके बाद से लगातार कीमतों में इजाफा ही हो रहा है और अगर रूस यूरोपीयन देशों के तेल गैस की सप्लाई बंद करता है, तो फिर कीमतों में भयानक स्तर पर इजाफा हो सकता है। लिहाजा, भारत सरकार के लिए तेल की कीमतों पर लगाए गये टैक्स पर विचार करना आवश्यक हो जाएगा। लिहाजा, जब एक फरवरी को भारतीय वित्तमंत्री देश का बजट पेश करेंगी, तो बजट पर तेल का असर साफ दिख सकता है।

क्यों बढ़ रहे हैं तेल के दाम?

क्यों बढ़ रहे हैं तेल के दाम?

वर्ष की शुरुआत के साथ ही कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि दुनिया भर में कोविड संक्रमण बढ़ने की वजह से तेल उत्पादक देशों ने मांग में कमी होने की संभावना के आधार पर कच्चे तेल का प्रोडक्शन कम कर दिया था, लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट उतना असर बाजारों पर नहीं डाल पाया, लिहाजा तेल की मांग में कमी नहीं आई, जबकि तेल उत्पादन संगठन ओपेक प्लस ने तेल का प्रोडक्शन कम कर दिया था। दूसरी तरफ मध्य पूर्व में सऊदी अरब-यूएई का यमन के साथ विवाद और रूस-यूक्रेन के बीच ताजा तनाव से तेल की आपूर्ति बाधित होने की अटकलें तेज हो रही हैं। प्रमुख तेल उत्पादक देशों ने भी बढ़ती मांग के बावजूद कच्चे तेल की आपूर्ति में वृद्धि जारी रखी है। ओपेक प्लस ने साल 2020 में कोविड की वजह से आपूर्ति में तेजी से कटौती करने के लिए सहमति जताई थी, लिहाजा उसके बाद से ओपेक प्लस तेल का प्रोडक्शन धीमी रफ्तार से कर रहा है।

भारतीय बजट पर तेल का असर

भारतीय बजट पर तेल का असर

इस साल के बजट में यह माना गया है कि, तेल की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहने वाली हैं। जबकि, पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच तेल की कीमतों में ज्यादातर वक्त 60-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में कारोबार हुआ। अक्टूबर में यह बढ़कर 86 डॉलर प्रति बैरल हो गया था, जो फिर से घटकर 65.86 डॉलर प्रति बैरल हो गया। तब से कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है और बुधवार को कोविड के बाद के अब तक के उच्चतम 90.5 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर गई है। तेल की बढ़ती कीमतों से न केवल महंगाई बढ़ती है, बल्कि एलपीजी और केरोसिन सब्सिडी की राशि भी बढ़ जाती है, जिसका सरकार को भुगतान करना होता है। हालांकि, सकारात्मक पक्ष पर पिछले दो वर्षों में तेल और दूसरे पेट्रोलियन पदार्थों से टैक्स में सरकारी खजाने में भी वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, देश में खुदरा महंगाई दर दिसंबर में पहले ही पांच महीने के उच्च स्तर 5.59 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि थोक महंगाई दर इसी महीने बढ़कर 13.56 प्रतिशत हो गई है।

महंगाई से मजबूर होगी सरकार

महंगाई से मजबूर होगी सरकार

देश में उच्च महंगाई दर से सरकार को तेल और दूसरे पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए गये टैक्स में कटौती करने के लिए मजबूर करेगी, खासकर जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार चल रहे हों, वैसी स्थिति में सरकार नहीं चाहेगी, कि देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा हो और वोटर नाराज हो, लिहाजा सरकार के बजट पर इसका साफ तौर पर असर दिखेगा। डेलॉयट इंडिया के एक पार्टनर देबाशीष मिश्रा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, ''तेल की कीमतें अगले सप्ताह पेश किए जाने वाले बजट और भारत के ओवरऑल वित्तीय गणित में एक बड़ा कारक हैं, क्योंकि, भारत अपनी जरूरतों का 85 फीसदी से ज्यादा तेल खरीदता है।''

सरकार के पास उपाय कम

सरकार के पास उपाय कम

उन्होंने कहा कि, ''तेल आयात बिल पहले ही पिछले वर्ष की तुलना में 70 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है और यह भुगतान संतुलन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। तेल मार्केटिंग कंपनियों ने आगामी चुनावों के कारण पिछले 80 दिनों से खुदरा कीमतों में वृद्धि नहीं की है, और पहले से ही केंद्रीय वित्त मंत्री के पास उत्पाद शुल्क बढ़ाने के लिए हेडरूम नहीं मिला है। लिहाजा, आगामी बजट के वक्त, जब तेल की कीमत तीन अंको के निशान से आगे जा सकता है, उस वक्त सरकार के पास टैक्स में कटौती करने के अलावा कोई और उपाय नहीं होगा।''

पिछले साल सरकार ने घटाए थे दाम

पिछले साल सरकार ने घटाए थे दाम

पिछले साल नवंबर और दिसंबर महीने में सरकार ने पेट्रोल और डीजल के सेल्स टैक्स में कटौती की थी, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 5 रुपये से 10 रुपये की कमी आई थी। वहीं, ज्यादातर राज्यों ने पेट्रोल और डीजल पर वैल्यू एडेड टैक्स में भी कमी की है। करों में कटौती के बाद से, तेल कंपनियों ने कीमतों में इजाफा नहीं किया है, लेकिन सवाल ये है, कि आखिर कब तक कीमतें नहीं बढ़ाई जाएंगी और सरकार कब तक अपने खजाने पर और बोझ पहन कर सकता है।

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English summary
The Russia-Ukraine crisis can have a serious impact on India's budget and the question is, how will the Modi government deal with this situation?
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