दो प्रधानमंत्रियों की हत्या, एक को फांसी, दो और को जेल, कितनी खतरनाक है पाकिस्तान की राजनीति
इस्लामाबाद, 30 मार्च। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान राजनीति के भंवर में फंसे हुए हैं। यहां राजनीति करना, तलवार की धार पर चलने के बराबर है। जब तक संतुलन है सत्ता का लुत्फ उठाइए। संतुलन से चूके तो जान पर आफत। पाकिस्तान में राजनीति का खेल केवल हार जीत तक सीमित नहीं है। यह जानलेवा भी है। पाकिस्तान के एक प्रधानमंत्री की पद पर हत्या हो गयी थी। एक प्रधानमंत्री की पद से हटने के बाद हत्या हुई थी। एक प्रधानमंत्री को पद से हटने के बाद फांसी पर लटका दिया गया था। इसके अलावा पाकिस्तान के कई प्रधानमंत्री गिरफ्तार भी हो चुके हैं जिन्हें गंभीर मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा है।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के मामले में 10 साल की सजा हुई थी। जेल जाना पड़ा था। अभी लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। शाहिद खगान अब्बासी भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे हैं। उन्हें भी भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान की स्पेशल कोर्ट नें 2019 में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनायी थी। अभी वे दुबई में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। हाल ही में संजय दत्त के साथ एक तस्वीर वायरल होने के बाद मुशर्रफ चर्चा में रहे थे।
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री
लियाकत अली खां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे। उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना का दायां हाथ माना जाता था। लियाकत अली खां के पिता करनाल (हरियाणा) के जागीरदार थे। 1946 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की अंतरिम सरकार बनी थी। इस सरकार में मुस्लिम लीग भी शामिल थी। लियाकत अली खां भारत के वित्त मंत्री थे। देश के बंटवारे के बाद 1947 में लियाकत अली खां प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना नये मुल्क के पहले गवर्नर जनरल बने। लेकिन बीमारी के कारण 1948 में जिन्ना की मौत हो गयी। तब शासन की पूरी बागडोर लियाकत अली खां के हाथों में आ गयी। पाकिस्तान एक मुल्क तो बन गया था लेकिन वहां लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी। लियाकत अली खां के खिलाफ माहौल तैयार होने लगा। सेना के कुछ अधिकारियों और साम्यवादी नेता लियाकत अली के शासन को खत्म करना चाहते थे। पाकिस्तान के कुछ सैन्य अफसर इसलिए नाराज थे कि ब्रिटिश अफसरों के कारण उनकी तरक्की नहीं हो पा रही थी। कहा जाता है कि तत्कालीन सोवियत संघ के इशारे पर पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी भी सत्ता परिवर्तन के लिए सेना का सहयोग कर रही थी। आजादी के चार साल बाद ही (मार्च 1951) पाकिस्तान में पहली तख्तापलट की कोशिश हुई। मेजर जनरल अकबर खान के नेतृत्व में हुई यह कोशिश नाकाम हो गयी थी। मशहूर शायर फैज अहमद फैज साम्यवादी दल से जुड़े थे। इन पर भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगा था। फैज गिरफ्तार हुए और चार साल तक जेल में रहना पड़ा था।
पहले प्रधानमंत्री की हत्या
लियाकत अली खां मार्च 1951 में तख्तापलट से तो बच गये लेकिन सात महीने बाद उनकी हत्या हो गयी। 13 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी के कंपनी गार्डन में वे एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। करीब एक लाख लोगों की भीड़ थी। सईद अकबर नाम का एक अफगानी मंच के ठीक सामने बैठा था। अचानक उसने भाषण दे रहे लियाकत अली खां को गोली मार दी। दिनदहाड़े और इतनी भीड़ में प्रधानमंत्री की हत्या एक बहुत बड़ी घटना थी। मौके पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने अकबर को पकड़ने की बजाय गोलियों से भून दिया। कहा जाता है कि लियाकत अली खां की हत्या एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा थी। इसमें कई बड़े लोगों के शामिल थे। कहीं साजिश का भंडाफोड़ न हो जाए, इसलिए अकबर की मौका ये वारदात पर ही मार गिराया गया था। लियाकत अली खां को जहां गोली मारी गयी थी, उसको कुछ ही देर के बाद पानी से धो दिया गया था। इसलिए जितने भी फॉरेंसिक सबूत थे वे खत्म हो गये थे। इस राज पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका।
बेनजीर भुट्टो की हत्या
ये अजीब दुखद संयोग है कि जिस स्थान पर लियाकत अली खां की हत्या हुई थी उसी जगह पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को भी मौंत की नींद सुलाया गया था। बेनजीर भुट्टो किसी मुस्लिम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। पाकिस्तान में किसी महिला को हुकूमत करते देखना कई लोगों के पसंद नहीं था। 2008 में पाकिस्तान में आम चुनाव होना था। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने फिर पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतने का एलान कर दिया था। वे आठ साल से विदेश में रह थीं। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के इरादे से पाकिस्तान आयीं थीं। 27 दिसम्बर 2007 में वे रावलपिंडी के कंपनी गार्डन में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहीं थीं। वे रैली को संबोधित कर के लौटने लगीं तो बिलाल नाम का शख्स उनके पास पहुंच गया। उसने बेनजीर भुट्टो को पहले गोली मारी। फिर खुद को आत्मघाती बम से उड़ा लिया। जोर का धमाका हुआ जिसमें बेनजीर समेत 20 लोग मारे गये। उस समय ये कहा गया था कि बिलाल ने पाकिस्तानी तालिबान के इशारे पर बेनजीर भुट्टो की हत्या की थी। बाद में परवेज मुशर्रफ ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि बेनजीर की हत्या में फौज के भी कुछ लोग शामिल थे। इस घटना के बारे में कई बातें कहीं गयीं। कुछ लोगों ने परवेज मुशर्रफ को इसके लिए जिम्मेवार माना था। कई लोगों ने बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी पर भी ऊंगली उठायी। क्योंकि बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को जीत मिली थी और जरदारी राष्ट्रपति बने थे। कहा जाता है कि पुलिस जांच इस तरह की गयी थी ताकि असली कातिल की पहचान न हो सके। जांच के नाम लीपापोती की गयी।
जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी
जुल्फिकार अली भुट्टो 1971 से 1973 पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। कहा जाता है कि उनकी महत्वाकांक्षा के कारण पूर्वी पाकिस्तान में युद्ध हुआ था जिसके कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ था। 1973 में पाकिस्तान में नया संविधान अपनाया गया और जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बने। भुट्टो धीरे धीरे तानाशाही की ओर बढ़ते रहे। उन्होंने अपने विश्वासपात्र जियाउल हक को सेनाध्यक्ष बनाया था। वे 1973 से 1977 तक प्रधानमंत्री रहे। लेकिन उनके शासन के खिलाफ गहरी नाराजगी उभरने लगी। उनका विरोध करने के लिए 9 पार्टियों ने एक गठबंधन बनाया। मार्च 1977 में फिर चुनाव हुए। भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को 155 सीटों मिलीं। विपक्षी गठबंधन को केवल 36 सीटें मिलीं। विरोधी दलों ने चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया। विरोध प्रदर्शन बढ़ते बढ़ते हिंसक हो गया। भुट्टो ने विरोध को दबाने की की कोशिश की लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। 4 जुलाई 1977 की रात को जियाउल हक ने सैनिक विद्रोह कर जुल्फिकार अली भुट्टो की सत्ता पलट दी। भुट्टो गिरफ्तार कर लिये गये। उन पर विपक्षी नेता अहमद रजा कसूरी के पिता की हत्या का आरोप लगा। कोर्ट ने इस मामले में मृत्युदंड की सजा सुनायी। 3 अप्रैल 1979 की रात दो बजे जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इससे समझा जा सकता है कि पाकिस्तान में राजनीति की राह कितनी खतरनाक होती है।
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