आखिर चार सालों में ही क्यों डूब गया ‘कप्तान खान’ का जहाज? क्या पाकिस्तान इमरान के ‘लायक’ नहीं है?
पाकिस्तान के पूर्व स्विंग गेंदजाब और 1992 विश्व कप विजेता कप्तान को पाकिस्तानी डीप स्टेट और रावलपिंडी जीएचक्यू के समर्थन से और "नया पाकिस्तान" देने के वादे पर चुना गया था, लेकिन उन्होंने फौज में फूट डालने की कोशिश की...
इस्लामाबाद, मार्च 30: पाकिस्तान की राजनीतिक गलियारों में एक कहावत है... कि जब कोई नया शख्स प्रधानमंत्री बनता है, तो पहले साल वो सेना की हर बात मानता है। दूसरे साल अपने 'चापलूसों' की वजह से सेना के सामने खड़ा होना शुरू कर देता है। तीसरे साल वो खुद को 'वास्तविक प्रधानमंत्री' समझते हुए सेना को फरमान देना शुरू कर देता है और चौथे साल, सेना उस 'प्रधानमंत्री' को कुर्सी से उतारकर बहुत दूर फेंक देती है। इमरान खान के साथ भी यही हुआ है....
‘कप्तान खान’ क्लीन बोल्ड!
स्विंग बॉलिंग के उस्ताद रहे इमरान खान पाकिस्तान की उस राजनीतिक पिच पर सेना को ही बोल्ड करने का ख्वाब देख रहे थे, जहां का अंपायर भी सेना, फिल्डर भी सेना और बल्लेबाज भी सेना ही है। लिहाजा, तेज गेंद फेंकने के लिए भाग रहे इमरान खान को अंपायर ने लंगड़ी मारी और बॉल फेंकने से पहले ही इमरान खान फटाक से जमीन पर गिर पड़े। अब बस, उन्हें राजनीतिक स्टेडियम से बाहर ले जाना ही बाकी बचा है। तमाम सहयोगियों ने साथ छोड़ दिया और संसदीय गणित अब इमरान खान को दिन में तारे दिखा रही है। अभी तक उम्मीद लग रही थी, कि किसी तरह से इमरान खान संसद में जोड़- तोड़ के जरिए सरकार बचा भी सकते हैं, लेकिन 27 फरवरी को इस्लामाबाद के डी-चौक पर इमरान खान ने 'साजिश का कागज' निकाला, उसी वक्त तय हो गया, कि इमरान खान को संसद में अविश्वास प्रस्ताव साबित करने का भी मौका नहीं मिलेगा। प्रमुख सहयोगी पार्टी एमक्यूएम के समर्थन वापस लेते ही इमरान खान की सरकार अल्पमत में आ चुकी है, यानि कप्तान खान क्लीन बोल्ड हो चुके हैं।
संसद में कैसे हारेंगे इमरान खान?
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने 'आजतक' से बात करते हुए कहा कि, इमरान खान को अब अपनी ही पार्टी के सांसदों पर भरोसा नहीं है, लिहाजा उन्होंने 31 मार्च को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस के बाद वोटिंग में भाग लेने से मना कर दिया है। हामिद मीर के मुताबिक, इमरान खान के 14 सांसद पहले ही कह चुके हैं, कि वो विपक्ष के साथ हैं, जबकि इमरान खान की पार्टी के 8 सांसद 'गुप्त' तौर पर विपक्ष के साथ मिल चुके हैं। यानि, इमरान खान के 22 सांसद टूट चुके हैं, जबकि सिर्फ 10 सांसदों के ही टूटने से इमरान खान की सरकार अल्पमत में आ जाती है। वहीं, प्रमुख सहयोगी पार्टी एमक्यूएम ने आज समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया है, जो इमरान खान की सरकार की ताबूत में आखिरी कील है।
172 का जादुई आंकड़ा
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने कहा कि, संसद में विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव पास कराने के लिए 172 सांसदों के समर्थन की जरूरत है, जबकि विपक्ष के पास अभी भी 190 सांसद हो चुके हैं। लिहाजा, इमरान खान नहीं चाहते हैं, कि उनकी पार्टी के सांसद अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में शामिल हों। बकौल हामिद मीर... इमरान खान को डर है, कि सिर्फ 24 ही नहीं, बल्कि कम से कम 40 सांसद उन्हें धोखा दे सकते हैं और विपक्षी खेमे में शामिल हो सकते हैं। यानि, इमरान सरकार का गिरना तय है। आपको बता दें कि, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (जैसे भारत में लोकसभा) में एमएनए (भारत में सांसद) की संख्या 342 होती है और सरकार बनाने के लिए 172 एमएनए की जरूरत होती है। इमरान खान ने अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनाई थी और संसद में उनके पास 179 एमएनए का समर्थन हासिल था। इमरान खान की पार्टी के पास 155 सांसद हैं, जबकि उन्हें चार पार्टियों ने समर्थन दिया था। लेकिन, अब इन चार सहयोगी पार्टियों में से तीन पार्टी ने इमरान खान सरकार से समर्थन वापस ले लिया है।
इमरान के पास अभी भी जनता का समर्थन?
पाकिस्तान के राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि, इमरान खान के पास कुछ जनसमर्थन अभी भी मौजूद है, लेकिन अब उनकी राजनीति की बत्ती बुझा दी गई है। पाकिस्तानी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सेना ने अपना फैसला कर लिया है, क्योंकि जिस तरह से इमरान खान को सेना की तरफ से फ्री हैंड दिया गया था, उसे संभालने में वो नाकाम रहे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, पाकिस्तान में सेना अंपायर की भूमिका में थी और अंपायर का साथ इमरान खान को मिला हुआ था। लेकिन, इमरान खान चाह रहे थे, कि गेंद उनके बैट पर लगे या ना लगे, अंपायर हर बार छक्के के लिए ही हाथ उठाए। जिसे करने से सेना ने मना कर दिया और इमरान खान को साफ साफ कह दिया, कि आपकी जिम्मेदारी छक्का मारने की है, लेकिन इमरान खान घरेलू मोर्चे के साथ साथ विदेशी मोर्चे पर भी फेल साबित होते चले गये, लिहाजा अब सेना भी अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों से घबराने लगी और इमरान खान को हटाने के अलावा सेना के पास कोई और रास्ता बचा नहीं था।
सेना और इमरान में रिश्ता क्यों बिगड़ा?
पाकिस्तान के पूर्व स्विंग गेंदजाब और 1992 विश्व कप विजेता कप्तान को पाकिस्तानी डीप स्टेट और रावलपिंडी जीएचक्यू के समर्थन से और "नया पाकिस्तान" देने के वादे पर चुना गया था, लेकिन इमरान खान ने विदेश नीति के साथ-साथ देश को भी आर्थिक रसातल में धकेल दिया है। कई राजनीतिक एक्सपर्ट का कहना है कि, इमरान खान एक नेता नहीं, बल्कि एक तानाशाह की तरह व्यवहार करते हैं, जो अपने हर फैसले को देश का आखिरी फैसला मानता है। इमरान खान ने लगातार कूटनीति को भी अपने घमंडों के आधार पर ही तोलने की कोशिश की, जिससे पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ।
इमरान खान का अड़ियल रवैया
इस्लामाबाद के अड़ियल रवैये के कारण बलूचिस्तान और सिंध में अलगाववादी आंदोलनों के निर्माण के साथ एक अत्यधिक कट्टरपंथी समाज के भीतर आंतरिक कलह का जन्म हुआ। यहां तक कि काबुल में अनुकूल तालिबान शासन भी रावलपिंडी के लिए वैचारिक सहयोगी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह के साथ शांति स्थापित नहीं कर पाया। बलूच और सिंध समूहों की तरह, टीटीपी भी पाकिस्तान सेना और सुरक्षा बलों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हमले कर रहा है। वहीं, तालिबान के समर्थन के लिए इमरान खान ने जोर शोर से चंदा मांगा, जिससे पाकिस्तान बदनाम हुआ, फिर भी तालिबान और पाकिस्तान सरकार के बीच रिश्ते खराब हो गये। इसके लिए भी इमरान खान के घमंड को जिम्मेदार ठहराया गया है।
सेना में फूट डालने की कोशिश
पाकिस्तान की सेना के इमरान खान से नाराज होने की कई वजहें हैं। सबसे पहली वजह ये थी, कि इमरान खान ने अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए सेना के अंदर ही फूट डालने की कोशिश की थी और सेना के कई अधिकारियों को अपने पाले में करने के लिए 'लालच' दिया था, जो सार्वजनिक हो गया। वहीं, सेना ने भारत के साथ व्यापार बहाल करने के लिए इमरान खान को कहा था, लेकिन इमरान खान ने वोट बैंक को देखते हुए भारत से व्यापारिक रिश्ते बहाल करने से इनकार कर दिया, जबकि पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के साथ पिछले साल फरवरी में ही सीमा पर सीजफायर का ऐलान कर दिया। वहीं, इमरान खान ने कई बार सार्वजनिक मंचों से सेना को 'भ्रष्ट' कहना शुरू कर दिया और भारतीय सेना के भ्रष्ट नहीं होने की प्रशंसा कर दी, जिससे पाकिस्तान की आर्मी भड़क गई, लेकिन फिर भी शांत रही। लेकिन, स्थिति उस वक्त पूरी तरह से बिगड़ गई, जब आईएसआई चीफ की नियुक्ति पर इमरान खान ने अपनी अकड़ दिखा थी और करीब 3 हफ्ते तक उस फाइल पर साइन नहीं किया, जिसे आर्मी चीफ ने भेजा था। वहीं, इमरान खान की सत्ता की ताबूत पर आखिरी कील उस वक्त लगी, जब आईएसआई के पूर्व चीफ फैज हमीद, जिसे सेना ने हटाया था, उसे ही अगला आर्मी चीफ बनाने निकल पड़े, और फिर सेना ने इमरान खान के सिर से हाथ खींच लिया।
इमरान के लायक नहीं पाकिस्तान?
इमरान खान ने पिछले महीने कहा था, कि वो पाकिस्तान की सूरत बदल देना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान ही तैयार नहीं है। तो फिर सवाल उठता है, कि क्या वाकई ऐसा है? तो राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, अपनी नाकामयाबी के लिए जनता के सिर ठीकरा फोड़ देना नेताओं की पुरानी आदत रही है और इमरान खान भी ऐसा ही कर रहे हैं। पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, इमरान खान जो कहें, वही सही होना चाहिए और अपनी अहंकार का इस्तेमाल उन्होंने अमेरिका, चीन और भारत के साथ भी किया। बाइडेन के फोन नहीं करने को उन्होंने पाकिस्तान का नहीं, बल्कि पर्सनल मुद्दा बनाकर अमेरिका से खुन्नस पाल लिया, लिहाजा पाकिस्तान अमेरिका के संबंध ऐतिहासिक स्तर पर खराब हो गये। वहीं, जिस लोन लेने की प्रथा का इमरान खान आलोचना करते थे, सत्ता में आने के बाद इमरान खान हर देश के सामने हाथ फैलाने लगे, लिहाजा, ये कहना पूरी तरह से गलत है, कि जनता विकास के लिए तैयार नहीं थी, असल में इमरान खान के पास कोई लक्ष्य ही नहीं था।
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