श्रीलंका में आर्थिक संकट: राष्ट्रपति की दुनिया से अपील, हम संकट में हैं, हमारी मदद करें
राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से देश के गंभीर आर्थिक संकट जैसे मुद्दे को दूर करने के लिए दवाओं, खाद्य आपूर्ति और ईंधन की आवश्यकताओं को पूरा करने में श्रीलंका की मदद करने का आह्वान किया।
कोलंबो, 27 मई : आजादी के बाद के सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को आर्थिक तौर पर फिर से मजबूत करने के लिए वहां की सरकार जुट गई है। भारत सहित अन्य कई देश श्रीलंका की मदद को आगे आए है। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश की हालात को सुधारने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता की मांग की है। बता दें कि, श्रीलंका आर्थिक तौर पर दिवालिया हो चुका है और वह कर्ज में इतना डूब चुका है कि उसे वहां से निकलने में सालों लग सकते हैं। इतना ही नहीं वह चीन समेत अन्य देशों से लिए कर्ज को चुका पाने में भी असमर्थता जाहिर कर चुका है।
राष्ट्रपति ने मदद की गुहार लगाई
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से देश के गंभीर आर्थिक संकट जैसे मुद्दे को दूर करने के लिए दवाओं, खाद्य आपूर्ति और ईंधन की आवश्यकताओं को पूरा करने में श्रीलंका की मदद करने का आह्वान किया। डेली मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति राजपक्षे ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जापान के टोक्यो में आयोजित फ्यूचर ऑफ एशिया (Nikkei) पर 27वें अतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार लगाई। उन्होंने कहा, हम आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। देश की आर्थिक संकट ने यहां के लोगों के जीवन में गहरा प्रभाव डाला है, जिसके कारण यहां सामाजिक अशांति फैलती जा रही है।
श्रीलंका की स्थिति हो रही है खराब
राष्ट्रपति ने कहा, ऐसे कठीन समय में हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अपने मित्र देशों से तत्काल मदद की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि वे अन्य श्रीलंका के अन्य मित्रों से अपील करते हैं कि वे इस कठीन परिस्थिति में श्रीलंका के लिए समर्थन और एकजुटता बढ़ाने की संभावना को तलाशे। बता दें कि, दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाला श्रीलंका वित्तीय और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। प्रदर्शनकारी कर्फ्यू के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसी स्थिति में देश में दिन प्रतिदिन अशांति और अराजकता का माहौल बनता जा रहा है। साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस वक्त सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे इस देश में महंगाई के कारण बुनियादी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। बता दें कि, वहां की जनता सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए और विरोध प्रदर्शन हिंसक होने के बाद सरकार की नींव तक हिल गई।
गलत नीतियों ने श्रीलंका को ले डूबा
जानकारों का कहना है कि श्रीलंका में संकट कई सालों से पनप रहा था, जिसकी एक वजह सरकार का गलत प्रबंधन भी माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज के तौर पर ली। बढ़ते कर्ज़ के अलावा अन्य दूसरी चीजों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की। जिनमें प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है। साथ ही रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध, जिसके कारण किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं।
स्थिति कैसे बदतर हुई, जानें
स्थितियां 2018 में तब बदतर हो गई, जब राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। इसके एक साल बाद 2019 के ईस्टर धमाकों में चर्चों और बड़े होटलों में सैंकड़ों लोग मारे गए। वहीं, 2020 के बाद से कोरोना महामारी ने प्रकोप दिखाया जिसने देश की कमर ही तोड़कर रख दी। वहीं, दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की। हालांकि, ये कदम सही नहीं था जिसके कारण सरकार के राजस्व पर खराब असर पड़ा। इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया, जिसका मतलब कि श्रीलंका ने विदेशी बाजारों तक अपनी पहुंच खो दी।
संकट और अधिक गहरा गया
सरकारी कर्ज का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार से सहायता लेना पड़ा। जिसके कारण इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था। इससे ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात पर बुरा असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं। अंत में हालात ऐसे उत्पन्न हुए कि श्रीलंका दिवालिया घोषित हो गया और जनता सड़कों पर आ गई।
आर्थिक तौर पर कंगाल हो चुका है श्रीलंका
पड़ोसी देश श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार दिवालिया हो गया है। ऐसी स्थिति में उसे अंतराराष्ट्रीय बाजार से कर्ज मिलना मुश्किल हो जाएगा। इससे देश की प्रतिष्ठा को भी दिवालिया होने के कारण काफी नुकसान पहुंचेगा। श्रीलंका को7 करोड़ 80 लाख डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए 30 दिनों की छूट अवधि दी गई थी, जो बुधवार को समाप्त हो गई। इसी के साथ श्रीलंका विदेशी कर्ज चुकाने से चूक गया है। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कहा है कि उनका देश आर्थिक संकट टालने के लिए कर्ज नहीं चुका रहा है। यानी ये प्रिएम्टिव डिफॉल्ट है। बता दें कि, किसी भी देश को दिवालिया तब घोषित किया जाता है जब वहां की सरकार दूसरे देशों या अंतरराष्ट्रीय संगठनों से लिया गया उधार या उसकी किस्त समय पर नहीं चुका पाती। ऐसी स्थिति में देश की प्रतिष्ठा, मुद्रा और उसकी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार से कैसे उठाएगा पैसा
तना ही नहीं किसी देश के दिवालिया होने की स्थिति में उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार से पैसा लेना भी काफी मुश्किल हो जाता है। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर पी नंदलाल वीरसिंघे से पूछा गया कि उनका देश दिवालिया हो चुका है तो उनका जवाब था, हमारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि जब तक कर्ज को रिस्ट्रक्चर नहीं किया जाता, श्रीलंका किसी भी देश को भुगतान नहीं कर पाएगा। उन्होंने आगे कहा कि, ऐसी स्थिति में इसे प्रिएम्टिव डिफॉल्ट कह सकते हैं।
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