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Smoking को प्रतिबंधित करके यह छोटा सा देश क्यों पछता रहा है ? जानिए

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नई दिल्ली, 30 मई: तंबाकू का सेवन करना जानलेवा हो सकता है, यह कोई नई बात नहीं है। दशकों से स्वास्थ्य विशेषज्ञ तंबाकू के दुष्प्रभावों के बारे में बताते रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार इसके खतरे को लेकर आगाह करता रहा है। भारत में लगभग हर बजट में तंबाकू उत्पादों पर टैक्स सबसे ज्यादा थोपा जाता है। इसके प्रमोशन के खिलाफ भी काफी सख्तियां की गई हैं। लेकिन, हकीकत ये है कि तंबाकू इस्तेमाल करने वालों की संख्या घटती नहीं है। हिमालय की गोद में एक सुंदर सा देश है, भूटान। यहां करीब दो दशक पहले तंबाकू को प्रतिबंधित ही कर दिया गया था। लेकिन, आज वह जिस स्थिति में है, उससे पूरे विश्व को सीखने की जरूरत है।

भूटान के अनुभव से सीखने की आवश्यकता

भूटान के अनुभव से सीखने की आवश्यकता

2021 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था कि तंबाकू दुनिया के लिए अब तक के सबसे बड़े खतरे में से एक है। ऐसा लगा की तंबाकू पर पाबंदी ही समाधान है। मतलब, तंबाकू वर्जित कर दो और समस्या का हल मिल सकता है। लेकिन, हिमालय की गोद में बसे छोटे से खूबसूरत देश भूटान का अनुभव काफी मायने रखता है; और दुनिया का कोई भी देश सीधे तंबाकू के पाबंदी की सोचता है तो उसे भूटान के अनुभव पर गौर जरूर करनी चाहिए। भूटान को न सिर्फ अपने सख्त फैसले को वापस लेने को मजबूर होना पड़ा है, बल्कि वह ऐसे संकट में उलझ गया है, जिससे उबरने में उसे दशकों लग सकते हैं।

2004 में भूटान में तंबाकू पर लगी थी पाबंदी

2004 में भूटान में तंबाकू पर लगी थी पाबंदी

थोड़ा बैकग्राउंड में चलते हैं। 2004 में भूटान ने अपने देश में तंबाकू की बिक्री, प्रचार, खेती और वितरण पर पाबंदी लगा दी थी। यदि कोई निजी इस्तेमाल के लिए कम मात्रा में तंबाकू उत्पाद गैरकानूनी तरीके से आयात करता है, तो उसपर 100% टैक्स लगा दिया। इसके अलावा गैरकानूनी तरीके से तंबाकू का इस्तेमाल करने वालों पर जुर्माना भी ठोका जाता था। तब तंबाकू को प्रतिबंधित करने की दलील ये दी गई है कि यह जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए और बौद्ध धर्म के तहत महापाप से बचाने के लिए किया गया है।

दो साल बाद तंबाकू का सेवन बढ़ चुका था-सर्वे

दो साल बाद तंबाकू का सेवन बढ़ चुका था-सर्वे

2006 में एक सर्वे किया गया। इसमें पता चला कि भूटानियों ने धूम्रपान करना नहीं छोड़ा (बिहार में नीतीश सरकार का शराबबंदी का फैसला इसका एकदम मिलता-जुलता स्वरूप ) है। भूटान के लोगों ने काला बाजार से तंबाकू उत्पाद खरीदना शुरू कर दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे में पता चला कि सिर्फ 30 दिनों में 13 से 15 साल की उम्र के बच्चों में 23.7% ने तंबाकू का सेवन किया था। तंबाकू उत्पादों की गैरकानूनी तस्करी जब बढ़ती चली गई, तो 2010 में सरकार ने 2004 की पाबंदी को और कठोर कर दिया। बाकी सारे प्रतिबंध जारी रखने के साथ ही इसे चौथे-डिग्री का अपराध घोषित कर दिया गया। अब कोई तंबाकू की खेती, सप्लाई,उत्पादन या वितरण करता पकड़ा जाता तो उसे तीन से पांच साल की सजा होती। तय सीमा से ज्यादा तंबाकू रखना भी इसी अपराध में शामिल कर लिया गया।

2013 में तंबाकू इस्तेमाल में विश्व में सबसे आगे था

2013 में तंबाकू इस्तेमाल में विश्व में सबसे आगे था

लेकिन, भूटान सरकार का सख्त रवैया, ज्यादा कारगर नहीं साबित हुआ। 2011 में सरकार ने अगले सत्र में इसे वापस लेने का ऐलान किया, क्योंकि 'इसकी वजह से जनता को तकलीफ हो रही थी।' इस अपराध के तहत 59 लोग भूटान की जेल में बंद थे। 2012 में जो बदलाव लागू हुआ, इसमें तंबाकू रखने संबंधित नियम काफी ढीले कर दिए गए। सिर्फ सीमा से चार गुना ज्यादा रखने पर ही चौथी-डिग्री का अपराध माना गया। 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भूटान के युवाओं का एक और सर्वे किया। इसमें पाया गया कि धुआं-रहित तंबाकू का इस्तेमाल 2009 के 9.4% के मुकाबले 21.6% तक पहुंच गया था। जबकि किसी भी तरह के तंबाकू का इस्तेमाल 2009 के 18.8% से बढ़कर 30.3% तक पहुंच गया था। यह सिर्फ इस क्षेत्र में नहीं, बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा था।

कोविड के बाद भूटान को बदलनी पड़ी रणनीति

कोविड के बाद भूटान को बदलनी पड़ी रणनीति

2014 में एक राष्ट्रीय सर्वे फिर हुआ। इसमें 25% व्यस्कों के तंबाकू इस्तेमाल की बात सामने आई, जो ज्यादातर धुआं-रहित था। 2019 में 13 से 15 साल की उम्र के 22.2% बच्चे किसी न किसी रूप में तंबाकू का इस्तेमाल कर रहे थे। फिर कोविड महामारी आ गई। तंबाकू तस्करों की वजह से केस बढ़ने लगे। सरकार ने तंबाकू की वाणिज्यिक जरूरतों के लिए इसकी बिक्री, वितरण और आयात पर से प्रतिबंध को वापस ले लिया। हालांकि, घरेलू खेती, उत्पादन और निर्माण पर बैन जारी रखा गया। अब सरकार ने स्वास्थ्य कारणों से तंबाकू के इस्तेमाल के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने पर जोर देना शुरू कर दिया। इसने निकोटिन के विकल्पों पर भी ध्यान देना आरंभ किया।

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जागरूकता ही सबसे कारगर

जागरूकता ही सबसे कारगर

भूटान का अनुभव इसी बात की ओर इशारा करता है कि तंबाकू पर पाबंदी से हालात और भी जटिल होती चली जाती है और नई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। पाबंदी से खपत कम होने की जगह और ज्यादा बढ़ने लग जाती है और तस्करी का एक नया धंधा चल (बिहार के सीएम नीतीश कुमार के लिए भी यह सीख हो सकती है, क्योंकि बिहार से अक्सर शराब की तस्करी और जहरीली शराब से मौतों की खबरें आती रहती हैं।) निकलता है। अगर तंबाकू का इस्तेमाल रोकना है, तो इसका सबसे कारगर उपाय इसके खिलाफ जागरूकता ही हो सकती है। (यह आर्टिकल पीटीआई में छपे यूनिवर्सिटी ऑफ ओकलोहोमा के माइकल गिवेल के लेख पर आधारित है।)(तस्वीरें- प्रतीकात्मक)

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English summary
Bhutan saw a ban on smoking, the number of tobacco users increased. Awareness against it is the best option
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