चीन में इस्लाम छोड़ने के लिए मुस्लिमों को दी जाती हैं क्रूरतम यातनाएं!
बेंगलुरू। चीन में उइघर मुसलमानों के साथ क्रूरतम यातनाओं की खबरें एक बार फिर सुर्खियों में है। चीन के शिनजियांग प्रांत में मौजूद 20 लाख से अधिक उइघर मुसलमानों के मानवाधिकार उल्लंघन का मामला संयुक्त राष्ट्र महासभा में तब उठाया गया जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय प्रांत जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों की हालत पर राग अलापने की कोशिश की। अमेरिका ने पाकिस्तान से पूछा है कि आपको सिर्फ कश्मीर के मुसलमानों की चिंता क्यों है, चीन के मुसलमानों की चिंता क्यों नहीं है? इस दौरान इमरान खान से यह भी पूछा गया कि उन्हें सिर्फ कश्मीर में मानवाधिकार के मामलों को लेकर चिंता है या चीन में मुसलमानों के भयावह हालात पर भी कुछ कहना है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के इरादों पर पानी फेरते हुए दक्षिण और मध्य एशिया में अमेरिका के कार्यकारी असिस्टेंट सेक्रेटरी एलिस वेल्स ने संयुक्त राष्ट्र संघ की 74वीं जनरल असेंबली को संबोधित करते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के चीन के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाने को लेकर सवाल किए। एलिस वेल्स ने कहा कि चीन के जिनजियांग प्रांत में करीब 10 लाख मुसलमानों को बंदी बनाया गया, लेकिन पाकिस्तान वह मसला कभी नहीं उठाता, लेकिन कश्मीर के मुसलमानों के मुद्दे का अंतरार्ष्ट्रीयकरण करना चाहता है। एलिव वेल्स का इतना कहना था कि भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा पूरी तरह से फेल हो गया।
यह बात दीगर है कि चीन के जियजियांग प्रांत में उइघर मुसलमानों की स्थिति बेहद खराब है, जहां मुसलमानों से उनके धार्मिक अधिकार तक लगभग छीन लिए गए हैं, उन्हें इस्लाम धर्म भी त्यागने के लिए मजूबर करने के लिए डिटेंसेन सेंटर में रखा गया है। हालांकि चीन ऐसे सभी सभी रिपोर्ट्स को झुठलाता रहा है, लेकिन चीन के जुल्मों की शिकार एक महिला मीडिया के सामने आई और उसने चीनी यातनाओं से दुनिया को रूबरू करवाया।
इंडिपेंडेंट को लिखे एक लेख में चीनी जुल्मों को विस्तार से बताते हुए गुलनाज नामक एक उइघर मुस्लिम महिला ने लिखा है कि चीन में उइघर मुस्लिम हमेशा इस खौफ में जीते हैं कि कब उन्हें सरकार का कोई शख्स उठाकर ले जाए और उन्हें उनके परिवार और बच्चों से दूर कहीं नजरबंद करके रख देगा। और एक बार नजरबंद होने के बाद उन्हें नहीं पता होता है कि वो कहां हैं और वहां से कब छूटेंगे।
उल्लेखनीय है वर्ष 1949 में चीन के जियजिंयाग प्रांत में उइघर मुसलमानों की जनसंख्या का औसत 95 फीसदी था, लेकिन वर्तमान में उइगर मुसलमान और स्थानीय हान समुदाय के बीच जनसंख्या की औसत पचास फीसदी यानीबराबर हो गए हैं जबकि वर्ष 1949 में जिनजियांग प्रांत में महज 5 फीसदी ही हान समुदाय के लोग थे। यह बताता है कि चीन में उइघर मुसलमानों के साथ चीन क्या कर रहा है।
चीन में उइघर मुसलमानों की चीन की पूरी आबादी की महज 2 फीसदी है बाजवदू इसके चीन लगातार उइघर मुस्लिम परिवारों को निशाना बना रहा है। चीन तीन तरीकों से उइघर मुसलमानों को इस्लाम धर्म को त्यागने के लिए टार्चर कर रही हैं। इनमे पहला है उइघर मुस्लिम युवतियों की जबरन हान युवकों से शादी करवाई जा रही है। दूसरा, चीन में तुर्की भाषा की जगह चीनी मंडारियन को अनिवार्य कर दिया गया है और तीसरा, उइघर मुस्लिमों को इस्लामी धर्म के अनुसार दस्तूरों और रिवायतों पर पाबंदी लगा दी गई है।
मसलन, इस्लामी मान्यता के मुताबिक हिजाब नहीं पहन सकते, दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते हैं। इतना ही नहीं, 355 मस्जिदों से ध्वनि प्रदूषण के नाम कर लाउड स्पीकर उतार लिए गए। इसके अलावा मुस्लिम इलाकों में अरबी में लिखे संदेश तक हटाने के निर्देश दे दिए गए हैं।
यही नहीं, पश्चिमी जिनजियांग प्रांत में चीनी प्रशासन ने इस्लामिक धार्मिक स्थलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है, जहां सर्वाधिक संख्या में उइघर मुस्लिम रहते हैं। द गार्जियन और बेलिंगकैट ने सेटेलाइट तस्वीरों से 91 धार्मिक स्थलों की निगरानी को दौरान पाया कि पश्चिमी जिनजियांग प्रांत की करीब 31 मस्जिदों और दो महत्वपूर्ण इस्लामिक स्थलों को वर्ष 2016 से लेकर 2018 के बीच क्षति पहुंचाई गई हैं, जिनमें 15 इमारतों का नामोनिशां पूरी तरह से मिट चुका है। चीनी प्रशासन ने उइघर मुसलमानों की सबसे बड़ी कारगिलिक मस्जिद को पूरी तरह से ढहा दिया गया है। इसके अलावा स्थानीय और पुरानी युतिय एतिका मस्जिद को भी बर्बाद किया जा चुका है।
हालांकि चीन में मुस्लिम अल्पसंख्यक उइघर समुदाय के दमन के खिलाफ पूरी दुनिया में चीन की आलोचना की जा रही है, लेकिन चीन मामले को आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई से जोड़कर अपना उल्लू सीधा करता आ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक चीन में करीब 20 लाख उइघर, काजाकस, किर्गिज समेत तुर्की मुस्लिमों की आबादी है, जिन्हें प्रशिक्षण कैंप के नाम पर बीजिंग में कैद करके रखा गया है। इसके पीछ चीन का सिर्फ एक मकसद है कि मुस्लिम आबादी या तो इस्लाम धर्म त्याग दें अथवा नास्तिक हो जाएं।
विश्लेषकों की मानें तो चीनी प्रशासन ने मुस्लिम बहुल इलाकों से इस्लामिक धर्म स्थलों का सफाया इसलिए कर रही है ताकि चीन में इस्लाम धर्म की पहचान को पूरी तरह से मिटा जा सके। इसके अतिरिक्त चीन में धार्मिक स्थलों पर जाने वाले मुस्लिमों पर कई तरह की पाबंदियां भी लगा रखी है, जिससे मुस्लिम धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करने में अक्षम होते हैं। इनमे दाढ़ी पर पाबंदी प्रमुख हैं।
गौरतलब है वर्तमाव समय में चीन में कुल 2 करोड़ मुस्लिम आबादी है और वहां करीब 35000 मस्जिदें मौजूद हैं। चीन कहता है कि हर धर्म को चीन के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप चलना होगा और उसके कानून को मानना होगा। जनवरी, 2019 में चीन नए पंचवर्षीय योजना लेकर आई थी, जिसका मकसद इस्लाम को समाजवाद के सांचे में ढालना था। विश्लेष्कों का मानना है कि चीनी सरकार की पंचवर्षीय योजना इस्लामिक इमारतों को ढहाने के अभियान का महज एक हिस्सा है।
चीनी प्रशासन द्वारा थोपी गई पाबंदियों का ही असर है कि जिनजियांग प्रांत जहां पर कभी उइघर मुस्लिम की आबादी 95 फीसदी थी, वहां के वाशिंदों ने निगरानी के डर से मस्जिदों में जाना बंद कर दिया है, क्योंकि चीनी प्रशासन उनकी कड़ी निगरानी करता है। मस्जिद में घुसने के लिए मुस्लिमों को अपनी आईडी रजिस्टर करनी होती है। मस्जिदों में वार्षिक उत्सवों का आयोजन तो कई सालों पहले ही बंद किया जा चुका है।
लंदन में बस चुकी उइघर मुस्लिम महिला गुलनाज के मुताबिक चीनी वन चाइल्ड की पॉलिसी खत्म होने के बावजूद उइघरों पर चीनी प्रशासन द्वारा विशेष नजर रखी जाती है और मुस्लिम महिलाओं का जबरन गर्भपात कराया जाता है। गुलनाज ने उइघर मुस्लिम के घरों के बाहर लग रहे क्यूआर कोड सिस्ट्म का उल्लेख किया है, जिसका मकसद उइघर मुस्लिम आबादी पर नियंत्रण और अंकुश है।
चीनी प्रशासन उइगर मुसलमान और इस्लामिक कल्चर से इतनी भयाक्रांत है कि वैश्विक आतंकवाद में मुस्लिमों की भूमिका का फायदा उठाकर उन उइघर मुसलमानों को को निशाना बना रहा है, जो उदार सूफी चिंतन से प्रभावित होते हैं। लेकिन चीन उइघर मुसलमानों को उनकी स्वाधीनता, विकास और समरसता वाली आकांक्षा को आतंकवाद का नाम देकर मनमानी कर रहा है।
दरअसल, उइगर मुसलमान उज्बेकियों के निकट हैं जबकि तालिबानी लोग पश्तून हैं। दोनों एकदूसरे के शत्रु हैं। एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलता जब कोई उइघर मुसलमान किसी फिदायीन हमले का दोषी पाया गया हो बावजूद इसके चीन ने उइघर मुसलमानों पर आतंकवादी का ठप्पा लगा दिया है जबकि यही चीन जमात-उद-दावा, जो कि पाकस्तानी आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा का सियासी अंग है और भारत में कई वारदातों को अंजाम दे चुका है उसके खिलाफ कुछ कहने और करने के बजाय उसकी खिदमत करता है।
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